कविता : एक देश है, एक वतन है...

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
मिले हाथ से हाथ तो मिलकर,
दृढ़ ताकत बन जाते।
बड़े-बड़े दुश्मन तक इसके,
आगे ठहर न पाते।
 
ईंट से ईंट जुड़ी तो कई,
मंजिल का घर बन जाता।
अंगुली का मुट्ठी बन जाना,
किसे समझ न आता।
 
मधुमक्खी के झुंड बड़े,
शैतानों को डंस लेते।
तिनकों वाली रस्सी से, 
शेरों को भी कस देते।
 
टुकड़ों-टुकड़ों बंटे देश पर,
परदेशी क्यों छाए।
इसी फूट के कारण वर्षों,
कब्जा रहे जमाए।
 
जाति-धर्म वर्गों का बंटना,
रहा देश को घातक।
मिलकर रहने का फिर भी,
कुछ मोल न समझा अब तक।
 
रहना है तो रहो देश में,
हिन्दुस्तानी बनकर।
एक देश है, एक वतन है,
कहो सभी से तनकर।
 

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