नई दिल्ली। नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCALT) ने टाटा संस के चेयरमैन पद से साइरस मिस्त्री को हटाने के फैसले को अवैध ठहरा दिया है। ट्रिब्यूनल ने इस पद पर फिर से बहाल करने का आदेश दिया है। हालांकि टाटा समूह इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है।
NCALT ने एन चंद्रशेखरन को कार्यकारी चेयरमैन बनाने के प्रबंधन के निर्णय को भी अवैध ठहराया है। ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में उन्हें फिर से टाटा संस का एग्जीक्यूटिव चेयरमैन बनाने को कहा है। इसे साइरस मिस्त्री के लिए बड़ी जीत माना जा रहा है। वह 3 साल के बाद फिर से टाटा संस के चेयरमैन बनेंगे।
इसके पहले NCALT की मुंबई बेंच ने साइरस मिस्त्री को हटाने के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया था। यह याचिकाएं दो निवेश फर्मों साइरस इनवेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड और स्टर्लिंग इनवेस्टमेंट कॉर्प के द्वारा दाखिल की गई थीं। इसके बाद मिस्त्री ने खुद NCALT में संपर्क किया था।
उल्लेखनीय है कि मिस्त्री को अक्टूबर 2016 में टाटा संस के चेयरमैन पद से हटा दिया गया था। वह टाटा संस के छठे चेयरमैन थे। रतन टाटा की रिटायरमेंट की घोषणा के बाद वह साल 2012 में टाटा सन्स के चेयरमैन बने थे।
टाटा संस ने क्यों हटाया था मिस्त्री को : टाटा संस ने 11 नंवबर 2016 को चिट्ठी जारी कर कहा था कि सायरस मिस्त्री को काम करने के लिए 4 साल का वक्त मिला। सायरस मिस्त्री के काम को टीसीएस की आय से अलग करना होगा। टीसीएस में सायरस मिस्त्री का कोई खास योगदान नहीं रहा है।
टीसीएस ने टाटा संस से ग्रोथ के लिए कभी भी कोई पूंजी नहीं ली। साथ ही सायरस मिस्त्री के कार्यकाल में 40 टाटा ग्रुप कंपनियों का डिविडेंड 1000 रुपए से घटकर 780 करोड़ रुपए हो गया। इतना ही नहीं, 780 करोड़ रुपए की रकम में 100 करोड़ रुपए तो अंतरिम डिविडेंड के शामिल थे।
डिविडेंट घटने के साथ-साथ खर्चों में बढ़ोतरी हुई है। कर्मचारियों पर खर्च 84 करोड़ रुपए से बढ़कर 180 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। दूसरे खर्चे 220 करोड़ रुपए से बढ़कर 290 करोड़ रुपए हो गए। सायरस मिस्त्री की हिस्सा बेचने की रणनीति विफल रही और विनिवेश से कोई मुनाफा नहीं हुआ है। इम्पेयरमेंट खर्चों के लिए प्रोविजनिंग 200 करोड़ रुपए से बढ़कर 2400 करोड़ हुई। टीसीएस को छोड़ 3 साल से टाटा संस को घाटा ही हो रहा था जो चिंता का प्रमुख कारण था।