संस्कृति और मूल्यों की टकराहट से धूमिल होती टाटा की 'छवि'

Webdunia
गुरुवार, 10 नवंबर 2016 (14:36 IST)
अधिकतर उद्योगपतियों की छवि आमतौर पर भ्रष्ट, बेईमान, मुनाफाखोर की होती है वहीं 'टाटा घराना' इसका अपवाद है। टाटा का नाम सुनते ही एक प्रतिष्ठा और विश्वास का भाव मन में पैदा होता है। एक ऐसी कंपनी जो अपने मुनाफे के साथ देश और देशवासियों के हितों का भी ध्यान रखती है। 
 
टाटा ने तो कुछ शहर भी बसा डाले। बड़ा कारखाना उन्होंने सुनसान जगह पर खोला और वहां काम करने वाले कर्मचारियों के लिए स्कूल, अस्पताल और घर बनाए ताकि वे अपने परिवार के साथ वहां रह सकें। इनमें से कुछ कारखानों से भले ही टाटा को मुनाफा न हुआ हो, लेकिन उन्होंने कर्मचारियों और उनके परिवार का ध्यान रखते हुए घाटे में भी काम करना जारी रखा। 
पुराने धन्ना सेठ अस्पताल और स्कूल बनाते थे। दान देते थे। यही परिपाटी टाटा ने भी जारी रखी। बारिश में स्कूटर पर जाते हुए एक परिवार को भीगते देखा तो सस्ती कार 'नैनो' बना कर पेश कर दी। यह बात अलग है कि यह प्रोजेक्ट असफल रहा, लेकिन इससे टाटा के दृष्टिकोण का पता चलता है। 
 
ये टाटा के नाम का कमाल था कि अभिनेता फरहान अख्तर ने एक बार टाटा के ट्रक के विज्ञापन में अपनी आवाज दी और चेक यह कह कर लौटा दिया कि टाटा के लिए काम कर वे सुकून महसूस कर रहे हैं। टाटा ने जब विदेश में जब कंपनियों को टेकओवर किया तो सभी ने गर्व महसूस किया, लेकिन पिछले कुछ दिनों से इस कम्पनी के बारे में जो बातें सुनने को मिल रही हैं वे छवि को धूमिल कर रही है। 
 
पुरानी और नई सोच में टकराव उत्पन्न होता नजर आ रहा है। पुराने लोग लोक हित पहले और मुनाफा बाद में सोचते थे, लेकिन नई सोच 'प्रॉफिट एंड लॉस' को ज्यादा महत्व देती नजर आईं। 
 
यह टकराहट इतनी बढ़ गई कि साइरस मिस्त्री को अपदस्थ किया गया। इसके बाद भी विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है और साइरस मिस्त्री से टकराहट बढ़ती जा रही है। टाटा सन्स ने एक वक्तव्य जारी किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि वर्ष 2012-13 में एक हजार करोड़ रुपये डिविडेंड के रूप में दिए गए थे। यह आंकड़ा 2015-16 में घट कर 780 करोड़ रुपये हो गया। यह आंकड़ा साबित करता है कि पिछले चार वर्षों में फायदा कम हो रहा है। टाटा सन्स का कहना है कि साइरस मिस्त्री का चेयरमैन के रूप में मूल्यांकन करते समय टीसीएस के डिविडेंड को अलग रखना चाहिए। तल्खी बढ़ती जा रही है। जो कंपनियां ठीक से प्रदर्शन नहीं कर पाई उसको लेकर दोनों के अपने-अपने मत हैं।
 
अब तो टाटा सन्स ने ईशात हुसैन को टाटा कसंल्टेंसी सर्विसेज़ (टीसीएस) का चेयरमैन बना दिया है। उन्होंने साइरस मिस्त्री की जगह ली है। इसके साथ ही मिस्त्री अब कंपनी निदेशक मंडल के चेयरमैन भी नहीं रहे। मिस्त्री के पर लगातार कतरे जा रहे हैं।  टाटा सन्स का कहना है कि मिस्त्री ने टाटा की संस्कृति और मूल्यों के अनुसार फैसले नहीं लिए हैं। 
 
व्यवसाय में इस तरह के विवाद आम है। जब एक दुकानदार अपने जवान बेटे को दुकान पर बैठाता है तो यह उम्मीद करता है कि बेटा व्यवसाय को और आगे ले जाएगा क्योंकि उसमें जोश और नया नजरिया है। बेटा यह सोचकर जिम्मेदारी लेता है कि पिता संस्कृति और मूल्यों में ही अटके रहे और व्यवसाय को आगे नहीं ले जा पाए। बाद में जब अपेक्षा के अनुरूप परिणाम नहीं मिलते तब टकराहट होती है क्योंकि दोनों अपने-आपको सही साबित करने में तुल जाते हैं। टाटा घराने में इस तरह के विवाद को देख दुख होता है क्योंकि यह निर्विवाद, हितैषी और नियम पर चलने वाली कंपनी रही है। 
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