भारतीय रुपया ऐतिहासिक गिरावट पर, क्या भारत आर्थिक मंदी की ओर जा रहा है?

भारतीय रुपया गिरावट पर: 10 मुख्य कारण और इससे बचने के उपाय

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
मंगलवार, 14 जनवरी 2025 (14:19 IST)
भारतीय रुपये ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर को छू लिया है। शुक्रवार को अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया 86.62 पर बंद हुआ, जो पिछले बंद भाव से 58 पैसे कमजोर था। यह गिरावट अमेरिकी फेडरल रिजर्व की सख्त मौद्रिक नीतियों और बढ़ते कच्चे तेल के दामों के कारण हुई। ALSO READ: PM मोदी के 75 वर्ष के होने के पूर्व ही रुपया डॉलर के मुकाबले 86 के पार, क्यों याद आए पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह
 
14 जनवरी 2025 को रुपया 86.12 पर खुला और कारोबार के दौरान मामूली सुधार के साथ 86.11 तक पहुंचा, लेकिन सत्र के अंत तक यह 86.62 पर आ गया। यह दर्शाता है कि भारत का आयात बिल बढ़ने और विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव का सीधा असर रुपये की मजबूती पर पड़ रहा है।
 
गिरावट का असर: आम आदमी की जेब पर सीधा असर
रुपये की कमजोरी का असर आम जनता की जिंदगी पर दिखने लगा है। इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की कीमतों में वृद्धि हो रही है। कहा जा रहा है कि दिल्ली चुनाव के बाद पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाए जा सकते हैं। 
ईंधन की कीमतें: पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ने से परिवहन और वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी होगी।
इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद: मोबाइल फोन, लैपटॉप और अन्य आयातित वस्तुएं महंगी हो गई हैं।
महंगाई: रुपये की कमजोरी से कुल मिलाकर महंगाई दर में इजाफा हो रहा है।
 
रुपया कमजोर होने के 10 प्रमुख कारण
1. आयात-निर्यात असंतुलन: भारत का आयात, खासकर कच्चे तेल और इलेक्ट्रॉनिक्स का निर्यात से कहीं ज्यादा है।
2. अस्पष्ट नीतियां: "मेक इन इंडिया" जैसे अभियानों के बावजूद कई उद्योग आयात पर निर्भर हैं।
3. महंगाई नियंत्रण की कमी: सरकार की महंगाई पर काबू पाने के लिए स्पष्ट और ठोस नीतियां नहीं हैं।
4. नीतिगत तालमेल की कमी: भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार के बीच तालमेल की कमी से फैसलों का प्रभाव सीमित हो जाता है।
5. विदेशी निवेश में कमी: विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं हो रहे।
6. विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव: विदेशी मुद्रा भंडार कम होने से रुपये पर दबाव बढ़ा है।
7. कच्चे तेल पर निर्भरता: भारत तेल आयात पर अत्यधिक निर्भर है। नवीकरणीय ऊर्जा पर निवेश की कमी से समस्या और बढ़ती है।
8. राजकोषीय घाटा: सरकारी खर्च और कर्ज में वृद्धि से राजकोषीय घाटा बढ़ रहा है।
9. वैश्विक प्रतिस्पर्धा: भारत की वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए कोई स्पष्ट रणनीति नहीं है।
10. घरेलू मांग में गिरावट: निम्न और मध्यम वर्ग को पर्याप्त सहायता न मिलने से घरेलू मांग कमजोर हो रही है।
 
क्या भारत आर्थिक मंदी की ओर जा रहा है?
भारत की मौजूदा आर्थिक स्थिति पर विचार करते हुए यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या देश आर्थिक मंदी की ओर बढ़ रहा है। इसके पीछे निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:
1. घटती विकास दर: भारत की GDP विकास दर हाल के वर्षों में धीमी पड़ी है, जो आर्थिक मंदी के संकेत हो सकते हैं।
2. उच्च महंगाई दर: लगातार बढ़ती महंगाई आम जनता की क्रय शक्ति को कम कर रही है।
3. रोजगार संकट: बेरोजगारी दर में वृद्धि हुई है, जिससे घरेलू मांग प्रभावित हो रही है।
4. विदेशी निवेश में कमी: भारत में विदेशी पूंजी निवेश में गिरावट देखी जा रही है। यह देश की अर्थव्यवस्था को स्थिरता प्रदान करने में बड़ी बाधा है।
5. बढ़ता राजकोषीय घाटा: सरकारी खर्च में वृद्धि और राजस्व संग्रहण में कमी आर्थिक अस्थिरता को बढ़ावा दे रहे हैं।
6. मध्यम और छोटे उद्योगों पर दबाव: MSME सेक्टर में वित्तीय दबाव और बंद होते व्यवसाय आर्थिक मंदी का एक अन्य संकेत हैं।
7. ग्लोबल आर्थिक स्थिति: वैश्विक स्तर पर आर्थिक अनिश्चितताओं का प्रभाव भारत पर भी पड़ा है, जिससे निर्यात और विदेशी व्यापार प्रभावित हुआ है।
 
पिछले संदर्भ और केस स्टडीज
2013 का मुद्रा संकट: 2013 में, भारतीय रुपया 63.30 प्रति डॉलर तक गिर गया था। इसका कारण भी अमेरिकी फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीतियां और उच्च व्यापार घाटा था। सरकार ने तब सोने के आयात पर प्रतिबंध और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए नीतियां बनाई थीं।
1991 का आर्थिक संकट: 1991 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खत्म हो गया था, और रुपये का अवमूल्यन करना पड़ा था। उस समय, आर्थिक उदारीकरण और नीतिगत सुधारों ने रुपये को स्थिरता प्रदान की। यह दिखाता है कि दीर्घकालिक नीतिगत उपाय कैसे प्रभावी हो सकते हैं।
चीन का उदाहरण: चीन ने निर्यात प्रोत्साहन और नवीकरणीय ऊर्जा में बड़े पैमाने पर निवेश करके अपनी मुद्रा को मजबूत बनाए रखा है। भारत इस मॉडल से सबक ले सकता है।
 
समाधान: रुपया बचाने के लिए क्या किया जा सकता है?

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