20,000 परिंदों की मौत से हैरानी

Webdunia
शनिवार, 9 फ़रवरी 2019 (11:55 IST)
हॉलैंड में बड़ा तटीय इलाका समुद्री परिंदों के शवों से पटा हुआ है। समझ में नहीं आ रहा है कि करीब 20,000 परिंदे आखिर क्यों मारे गए।
 
 
जनवरी 2018 से लेकर अब तक हजारों गिलेमॉट पक्षी मरे हुए मिल हैं। उत्तरी वाडेन आइलैंड से लेकर दक्षिण पश्चिमी सेलांड द्वीप तक तटीय इलाका इन समुद्री परिदों के शवों से पटा हुआ है। वैज्ञानिक इतने बड़े पैमाने पर हुई मौतों से हैरान हैं। हॉलैंड की एक यूनिवर्सिटी में मरीन बायोलॉजिस्ट मार्दिक लियोपोल्ड कहते हैं, "कौन सी चीज उन्हें मार रही है, ये एक बड़ा सवाल है। हमें अब भी इस बारे में कुछ नहीं पता है। स्थिति भयावह है। आखिरी बार इतने बड़े पैमाने पर मौत 1980 और 1990 के दशक में हुई थी।"
 
 
हैरानी की बात यह भी है कि पंक्षियों के अवशेष सिर्फ हॉलैंड के तटों पर मिले हैं। पड़ोसी देश जर्मनी और बेल्जियम के तटों पर ऐसा कोई वाकया सामने नहीं आया है। वैज्ञानिकों को अंदेशा है कि पक्षी भूख या पेट के इंक्फेशन से मरे हों। लियोपोल्ड को लगता है कि इसके लिए सिर्फ सर्द मौसम जिम्मेदार नहीं है, "ये मौतें सिर्फ नीदरलैंड्स में ही क्यों सामने आ रही हैं? निश्चित रूप से हम ही केवल अकेली ऐसी जगह नहीं हैं जहां इस तरह का सर्द मौसम हो।"
 
 
गिलेमॉट ज्यादातर वक्त समंदर में ही बिताते हैं। बड़े झुंड में रहने वाले गिलेमॉट खोता लगाकर मछलियां खाते हैं। हॉलैंड की मीडिया ने पंछियों की मौत को हाल ही में हुए कंटेनर हादसे से भी जोड़ा है। जनवरी में एमएससी शिंपिंग का एक बहुत बड़ा जहाज समुद्री तूफान में फंसा। तूफान के दौरान जहाज से 341 कंटेनर समंदर में गिर गए। ज्यादातर कंटेनर रिकवर कर लिए गए लेकिन करीब 50 अब भी लापता है। हादसे के बाद समुद्र में प्लास्टिक के खिलौने, जूते, बैग और पॉलीस्टरीन समेत कई हानिकारक रसायन फैल गए।
 
 
लियोपोल्ड के मुताबिक कुछ परिदों के शवों की जांच में पेट में प्लास्टिक का कोई सबूत नहीं मिला। मरीन बायोलॉजिस्ट के मुताबिक अगर रसायन की वजह से मौतें हुई हैं तो अन्य समुद्री जीवों पर भी इसका असर दिखना चाहिए। अब तक जांचे गए शवों में तेल रिसाव जैसे संकेत भी नहीं दिखे।
 
 
अब वैज्ञानिक हजारों गिलेमॉट पक्षियों के शवों की जांच करने की तैयारी कर रहे हैं। जांच फरवरी के दूसरे हफ्ते में की जाएगी। उम्मीद है कि उससे परिंदों की मौत की ठोस वजह सामने आ सकेगी।
 
 
ओएसजे/एनआर (एएफपी)
 

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