25 सालों से भारत में काम कर रही हैं जर्मनी की यह गौरक्षक

Webdunia
मंगलवार, 28 मई 2019 (11:57 IST)
मथुरा में 1800 गायों की देखभाल करने वाली जर्मन महिला कहती हैं कि बूढ़ी और बीमार गायों को बूचड़खानों को बेचना सही नहीं है। हिंदू धर्म अपना चुकी फ्रिडेरीके ब्रुइनिंग मानती हैं कि गायों को मारना सबसे बेकार काम है।
 
 
25 साल पहले जर्मनी से भारत पहुंची जर्मन महिला फ्रिडेरीके ईरीना ब्रुइनिंग का पूरा वक्त गायों के बीच बीतता है। ब्रुइनिंग उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में रहती हैं और बीमार और आवारा गायों की देखभाल करती हैं। आज उनके पास करीब 1800 गायें हैं। कुछ वक्त पहले उनकी वीजा बढ़ाने की अपील खारिज कर दी गई थी जिसके चलते उन्हें डर था कि कहीं उन्हें वापस जर्मनी ना जाने पड़े। हालांकि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के वीजा मामले में दखल के बाद उन्हें कुछ राहत जरूर मिली है।
 
 
ब्रुइनिंग को अपने कामों के लिए पदमश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। ऐसे में अगर वे वापस लौटतीं, तो उन्हें अपना नागरिक सम्मान भी वापस लौटाना पड़ता। समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में 61 वर्षीय ब्रुइनिंग ने बताया कि फिलहाल उनके पास 1800 गायें हैं और उनके देखभाल केंद्र में रोजाना पांच से 15 गायें तक रोज आती हैं।
 
 
पिछले 25 सालों से अब तक ब्रुइनिंग गायों की देखभाल में अपने करीब दो लाख यूरो तक खर्च कर चुकी हैं। उन्होंने बताया कि गौशालाओं को चलाने में हर महीने करीब 45 हजार यूरो का खर्चा होता है। ब्रुइनिंग की गौशालाओं में आने वाली अधिकतर गायें सड़क दुर्घटनाओं में घायल होती हैं या कई अंधी भी होती हैं। कुछ गायें बीमार होती हैं तो कुछ प्लास्टिक गटकने की वजह से बीमार हो जाती हैं।
 
 
साल 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से गायों का मुद्दा राजनीतिक गलियारों से लेकर सड़कों तक उठता रहा है। गौहत्या और गौमांस को लेकर कानून काफी सख्त कर दिए गए हैं। कुछ जगह स्वघोषित गौरक्षकों पर मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा के भी आरोप लगे।
 
 
इसके चलते कई पशु मालिक अपनी बूढ़ी और बीमार गायों को बूचड़खानों को बेचने की जगह खुले में छोड़ने लगे। इस वजह से सड़कों पर बड़ी संख्या में गायें आवारा घूमती नजर आने लगीं। इस मुद्दे पर हिंदू बन चुकी ब्रुइनिंग उर्फ सुदेवी दासी कहती हैं कि बूढ़ी और बीमार गायों को बूचड़खानों को बेचना इस समस्या का समाधान नहीं है, "गायों को मारना सबसे घटिया काम है।"

एए/आईबी (एएफपी)

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