समुद्र कैसे बन गया एक शहर के लिए सजा

एक समय था जब पाकिस्तान के तटीय शहर ग्वादर में बहुत कम लोग समझते थे कि पर्यावरण परिवर्तन क्या होता है। पिछले एक दशक से वहां खराब मौसम का प्रकोप जारी है

DW
बुधवार, 12 फ़रवरी 2025 (07:43 IST)
फरवरी, 2024 में 30 घंटे की लगातार बारिश से ग्वादर बुरी तरह प्रभावित हुआ था। तूफान के कारण सड़कें, पुल और संचार प्रणालियां बाधित हो गईं, और तटीय शहर का पाकिस्तान के अन्य इलाकों से संपर्क भी कुछ समय के लिए टूट गया। उस समय वहां के घर ऐसे दिखते थे जैसे उन पर बम गिराए गए हों।
 
ग्वादर बलूचिस्तान प्रांत का हिस्सा है, जबकि बलूचिस्तान पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक शुष्क, पहाड़ी और विशाल प्रांत है, जहां गर्म और ठंडा दोनों मौसम कठोर हैं। इस शहर की आबादी लगभग 90,000 है और यह रेत के टीलों पर बसा है। यह तीन तरफ से अरब सागर से घिरा हुआ है।
 
आसपास के क्षेत्र की तुलना में इसकी ऊंचाई कम है और यह तथ्य इसे अतिरिक्त खतरों के प्रति उजागर करता है। ग्वादर के जलविज्ञानी पजरीद अहमद चेतावनी देते हैं, "यह स्थिति किसी द्वीप से कम नहीं है। अगर समुद्र का स्तर बढ़ता रहा, तो शहर के कई निचले इलाके आंशिक रूप से या पूरी तरह से जलमग्न हो जाएंगे।"
 
समुद्र, जो कभी वरदान था
समुद्र, जो कभी ग्वादर के मछुआरों और स्थानीय पर्यटन क्षेत्रों के लिए वरदान था, अब वह जीवन और आजीविका के लिए खतरा बन गया है। जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री जल के गर्म होने से बड़ी और अधिक शक्तिशाली लहरें पैदा हो रही हैं। अब ग्रीष्मकालीन मानसूनी हवाओं के कारण ये लहरें और भी ऊंची हो जाती हैं। गर्म हवा में अधिक नमी होती है और इसका मतलब है कि इस क्षेत्र में अधिक बारिश भी होगी।
 
ग्वादर विकास प्राधिकरण के पर्यावरण उपनिदेशक अब्दुल रहीम कहते हैं, "समुद्र के बढ़ते तापमान के कारण लहरें अधिक तीव्र हो गई हैं। ज्वार-भाटे और लहरों के पैटर्न बदल गए हैं।" उन्होंने बताया कि सैकड़ों घर बह गए हैं और यह बहुत चिंताजनक है।
 
पिघलते ग्लेशियरों के कारण समुद्र का स्तर भी बढ़ रहा है और यह तटीय कटाव का एक अन्य कारण है। राष्ट्रीय महासागरीय एवं वायुमंडलीय प्रशासन के आंकड़ों के मुताबिक 1916 और 2016 के बीच कराची का समुद्र स्तर लगभग आठ इंच (लगभग 20 सेंटीमीटर) बढ़ गया है और 2040 तक इसमें आधा इंच (लगभग 1.3 सेंटीमीटर) की वृद्धि होने का अनुमान है।
 
घरों में घुसता समुद्र का पानी
लहरों ने ग्वादर के पास पेशुकान और गांज जैसे आस-पास के इलाकों में मस्जिदों, स्कूलों और बस्तियों को भी निगल लिया है। दर्जनों किलोमीटर तक तट समतल होते जा रहे हैं, क्योंकि उन पर कोई संरचना नहीं बची है। अधिकारियों ने समुद्री जल के प्रवेश को रोकने के लिए पत्थर या कंक्रीट की समुद्री दीवारें बना दी हैं।
 
लेकिन यह एक बड़ी समस्या का छोटा सा समाधान है क्योंकि ग्वादर के लोग और व्यवसाय विभिन्न मोर्चों पर जलवायु परिवर्तन से लड़ रहे हैं। सरकारी जमीन पर खारे पानी के तालाब उभर रहे हैं, जिनमें नमक के क्रिस्टल धूप में चमक रहे हैं।
 
ग्वादर के पूर्व स्थानीय पार्षद कादिर बख्श हर दिन अपने घर के आंगन में पानी रिसने से परेशान थे, जिसे केवल नियमित पंपिंग के जरिए ही निकाला जाता था। उनका कहना है कि वहां दर्जनों घरों की यही समस्या है।
 
दूसरी ओर अहमद और रहीम समेत कई सरकारी अधिकारियों का कहना है कि भूमि उपयोग में परिवर्तन और अनधिकृत भवनों के निर्माण से स्थिति और खराब हो रही है। इसके उलट, स्थानीय लोगों का कहना है कि कुछ प्रमुख निर्माण परियोजनाओं ने पारंपरिक जल निकासी के रास्तों को नष्ट कर दिया है। ग्वादर चीनी निवेश वाली सीपीईसी परियोजना का केंद्र भी है। शहर ने गहरे समुद्र में स्थित बंदरगाह, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, एक्सप्रेसवे और अन्य बुनियादी ढांचे के निर्माण पर करोड़ों डॉलर खर्च किए हैं।
 
लेकिन एक दशक के विदेशी निवेश के बावजूद, यहां के लोगों के लिए कोई पर्याप्त सीवेज या जल निकासी व्यवस्था नहीं है। ग्वादर की कम ऊंचाई, उच्च खारे पानी का स्तर, बढ़ता समुद्र स्तर और भारी बारिश शहर के लिए खतरे की घंटी बजा रहे हैं।
एए/वीके (एपी, एएफपी)

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