भारत में पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह के इस्तेमाल का बढ़ता चलन

DW
गुरुवार, 22 अक्टूबर 2020 (21:20 IST)
2 अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर भारत में पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह और दूसरे आरोप लगाकर प्रेस की स्वतंत्रता का गला घोंटे जाने के प्रति चिंता जताई है।

धवल पटेल गुजरात के अहमदाबाद से 'फेस ऑफ नेशन' नामक समाचार वेबसाइट चलाते हैं। उन्होंने मई में अपनी वेबसाइट पर एक खबर छापी थी कि गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी द्वारा राज्य में कोरोनावायरस महामारी की रोकथाम में हुई खामियों की वजह से बीजेपी उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटा सकती है। राजनीतिक अदला-बदली की खबरें आए दिन मीडिया में आती रहती हैं, इसलिए धवल पटेल को जरा भी अंदेशा नहीं हुआ कि इस खबर को छापने की वजह से वो बड़ी मुसीबत में फंसने वाले हैं।

अहमदाबाद पुलिस ने इस खबर को छापने के लिए खुद ही पटेल के खिलाफ राजद्रोह के आरोप में एफआईआर दर्ज की और उन्हें हवालात में भी रखा। बाद में हाईकोर्ट से पटेल को जमानत तो मिल गई लेकिन इस प्रकरण ने सरकारों द्वारा पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह के मामले दर्ज करने की बढ़ती हुई समस्या को रेखांकित कर दिया। समस्या इतनी चिंताजनक हो गई है कि मीडिया की स्वतंत्रता के लिए काम करने वाले दो अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस संबंध में पत्र लिखा है।

ऑस्ट्रिया स्थित इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट (आईपीआई) और बेल्जियम-स्थित इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स (आईएफजे) ने पत्र में प्रधानमंत्री को लिखा है कि पिछले कुछ महीनों में देश के अलग-अलग हिस्सों में कई पत्रकारों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत राजद्रोह का आरोप लगाकर मामले दर्ज किए गए हैं, जिसमें तीन साल जेल की सजा का प्रावधान है।

संगठनों ने कहा है कि पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह और दूसरे आरोप लगाकर प्रेस की स्वतंत्रता का गला घोंटा जा रहा है और यह बहुत ही विचलित करने वाली बात है। संगठनों ने यह भी कहा है कि कोरोनावायरस महामारी के फैलने के बाद इस तरह के मामलों की संख्या बढ़ गई है, जो कि यह दिखाता है कि महामारी की रोकथाम करने में सरकारों की कमियों को उजागर करने वालों की आवाज को महामारी का ही बहाना बना के दबाया जा रहा है।

पत्र में इस संदर्भ में धवल पटेल के मामले और इसी तरह के कम से कम 55 मामलों का उल्लेख किया गया है और प्रधानमंत्री से अपील की गई है कि वो तुरंत यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं कि पत्रकार बिना किसी उत्पीड़न और सरकार द्वारा बदले की कार्रवाई से डरे बिना अपना काम कर सकें।

भारत में इन दिनों पत्रकारों के खिलाफ सिर्फ राजद्रोह के मामले ही नहीं दर्ज किए जा रहे हैं, बल्कि सरकारों की खामियां उजागर करने वाले पत्रकारों और संस्थानों के खिलाफ विज्ञापन बंद करना, पत्रकारों का रास्ता रोकना, उनके फोन टैप करना और उन पर पुलिस द्वारा हमले करवाना जैसे कदम भी उठाए जा रहे हैं।

भारत में पत्रकारों के संगठन एडिटर्स गिल्ड के महासचिव संजय कपूर ने डीडब्ल्यू से कहा कि संकुचित सोच वाली लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं पत्रकारों को स्टेट का दुश्मन समझती हैं और भारत भी इसी श्रेणी में शामिल हो गया है। उन्होंने कहा कि असहमति के प्रति यह अधीरता उस लोकतांत्रिक ढांचे को ही कमजोर कर रही है, जिसमें मीडिया काम करता है।

संजय कपूर ने यह भी कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि राजद्रोह से संबंधित कानून के इस लापरवाही से इस्तेमाल की सुप्रीम कोर्ट भी आलोचना कर चुका है, लेकिन सरकारें अभी भी इस समस्या से मुंह फेर रही हैं।
रिपोर्ट : चारु कार्तिकेय

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