ऑनलाइन सट्टेबाजी और फैंटेसी गेम्स की लत से जूझ रहे भारतीय

भारत में ऑनलाइन सट्टेबाजी और फैंटेसी गेम्स की बढ़ती लोकप्रियता ने आर्थिक शोषण और लत्त लगने जैसी गंभीर चिंताओं को बढ़ा दिया है। इससे बचने के लिए क्या किया जा सकता है?

DW
शनिवार, 29 मार्च 2025 (07:49 IST)
मुरली कृष्णन
कानपुर के रहने वाले 24 वर्षीय प्रदीप कुमार (पोस्ट-ग्रेजुएट) दो साल से जुए की लत से जूझ रहे हैं। अपनी लत के कारण उसने बहुत जगह से कर्ज भी ले लिया है। प्रदीप की मां रंजनी ने डीडब्ल्यू को बताया, "एक बार तो इसने लगभग सवा लाख रुपए एक क्रिकेट ऐप में गंवा दिए थे। जिसके चलते यह बर्बादी की कगार पर आ गया था। हम इसे काउंसलिंग के लिए भी लेकर गए लेकिन यह बार-बार इस लत में पड़ जाता है क्योंकि यह ऐप्स आसानी से पैसा कमाने का वादा करती हैं।”
 
कुमार की कहानी भारत में कोई अनोखी कहानी है। ऐसी कई कहानियां हैं, खासकर युवाओं के लाखों रुपए गंवाने की, जिसके कारण उनके परिवारों को आर्थिक संकट से जूझना पड़ता है।
 
तेलंगाना में भी सट्टेबाजी ऐप्स तेजी से प्रसिद्ध हुए। वहां पिछले साल निजामाबाद में तीन लोगों के परिवार ने खुदकुशी कर ली क्योंकि उनके बेटे ने ऑनलाइन जुआ खेलकर 30 लाख का कर्जा कर दिया था और वह कर्ज भरने में असमर्थ थे।
 
बढ़ता जा रहा है सट्टे का कारोबार
भारत में इसके लगभग 14 करोड़ यूजर्स हैं, जो रोजाना ऑनलाइन जुए और सट्टेबाजी में भाग लेते है। यह संख्या बढ़कर 37 करोड़ तक भी पहुंच जाती है, जब इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) जैसे बड़े आयोजन होते हैं।
 
ऑनलाइन सट्टेबाजी ऐप्स के साथ-साथ फैंटसी गेमिंग ऐप्स की श्रेणी भी गेमिंग जगत में तेजी से लोकप्रिय हुई है। ड्रीम11, माय 11 सर्कल और एमपीएल जैसे ऐप्स उपभोक्ताओं के उत्साह का फायदा उठाते हैं। यह उन्हें गेम में अपनी खुद की टीम बनाने का मौका देते है, जिसमें वह असली प्लेयर्स की अप्रत्यक्ष टीम बनाते है और असल गेम में उनके प्रदर्शन के आधार पर पॉइंट्स कमाते हैं।
 
थिंक चेंज फोरम 2023 की रिपोर्ट के अनुसार इस श्रेणी में कुल 18 करोड़ यूसर्ज है, जो 300 से भी अधिक ऐप्स में बंटे हैं। जिसमें से 85 फीसदी का मुनाफा क्रिकेट से और लगभग छह फीसदी का फुटबॉल से आता है।
 
थिंक चेंज फोरम ने उजागर किया कि डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास और स्मार्टफोन के इस्तेमाल ने इस उद्योग को तेजी से बढ़ावा दिया है। सेलिब्रिटीज और सोशल मीडिया इनफ्लुएंसरज द्वारा किये गए प्रचार ने भी इसकी लोकप्रियता बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है।
 
साइकेट्रिस्ट अचल भगत ने डीडब्ल्यू को बताया, "इस तरह के ऐप्स इंसान की पहचान पर हावी हो सकते हैं अगर वह हर समय सट्टेबाजी के ख्याल में डूबा रहेगा। यह उनकी आर्थिक हालत के साथ-साथ उनके निजी संबंधों को भी प्रभावित कर सकता है। अगर कोई बार-बार सट्टेबाजी ऐप्स का इस्तेमाल करता है और यह उनकी रोजमर्रा की जिंदगी में दिक्कत बन रहा है तो उनको मदद की आवश्यकता है।”
 
डोपामीन की लत
इस विषय पर गहराई से अध्ययन करने वाली न्यूरोसाइकेट्रिस्ट अंजलि नागपाल कहती हैं कि भारत में ‘गैंबलिंग डिसऑर्डर' एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। नागपाल ने डीडब्ल्यू को बताया, "जब पसंदीदा सेलिब्रिटी खुलेआम सोशल मीडिया पर इसका प्रचार करते हैं तो युवा इसे जोखिम के बजाय फैशन की तरह देखने लगते हैं। इससे एक झूठी सहजता का अहसास होता है। जब युवा अपने हीरो को इसका समर्थन करते हुए देखते हैं तो सोचते हैं कि यह कितना ही बुरा हो सकता है?”
 
उनके अनुसार, यह क्रम एक छोटी जीत से शुरू होता है, जो डोपामीन को बढ़ाता है और खिलाड़ी को जीत की खुशी से भर देता है। नागपाल बताती हैं, "लेकिन जब वह बड़े इनाम के लिए आगे बढ़ते हैं तो वह अनजाने में इसमें फंस जाते हैं। हारने के बाद भी शुरुआती जीत की यादें उन्हें खेलने के लिए प्रेरित करती हैं और यह सिलसिला चलता रहता है।”
 
उन्होंने आगे कहा, "इसका नतीजा भारी आर्थिक नुकसान, कर्ज, पारिवारिक दबाव और निरंतर निराशा होता है, जो मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है। इसे सख्ती से नियंत्रित करने और इसके खिलाफ सख्त कानून बनाने की आवश्यकता है।”
 
क्या ऑनलाइन जुए के खिलाफ पर्याप्त कानून हैं?
भारतीय सरकार ने गैरकानूनी सट्टेबाजी ऐप्स पर रोक लगाने के लिए कदम उठाए हैं। फिलहाल चल रहे आईपीएल टूर्नामेंट के दौरान जीएसटी इंटेलिजेंस निदेशालय (डीजीजीआई) ने विदेश में संचालित ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों पर सख्ती बढ़ा दी है, जो सट्टेबाजी की सेवाएं देती हैं।
 
सरकार उन कंपनियों पर भी ध्यान दे रही है जो मनी लॉन्ड्रिंग, बिना लाइसेंस काम करने और सुरक्षा जोखिम पैदा कर सकती हैं। करीब 700 विदेशी ऑनलाइन सट्टेबाजी कंपनियों पर निदेशालय की नजर है। सरकार इन्हें नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है लेकिन यह आसान नहीं है।
 
एक वरिष्ठ अधिकारी ने डीडब्ल्यू को बताया, "कई गैरकानूनी सट्टेबाजी ऐप्स भारत के बाहर कुराकाओ, माल्टा और साइप्रस जैसे देशों के सर्वर पर चलते हैं, जहां जुआ वैध है या उनके प्रति नियम ढीले है। इतनी ज्यादा संख्या में ऐसे ऐप्स को नियंत्रित करना बहुत मुश्किल हो जाता है।"
 
थिंक चेंज फोरम की रिपोर्ट के अनुसार, भारत से हर साल लगभग 100 अरब डॉलर का लेन-देन गैरकानूनी सट्टेबाजी बाजार में होता है। कुछ मामलों में सट्टेबाजी ऐप्स फैंटेसी गेमिंग के रूप में खुद को पेश करते हैं ताकि कानूनी कार्रवाई से बच सकें।
 
फैंटेसी गेमिंग को कानूनी तौर पर "हुनर का खेल" माना जाता है, जहां खिलाड़ी की जानकारी और रणनीति अहम होती है। दूसरी ओर सट्टेबाजी को "संयोग का खेल" माना जाता है, जो पूरी तरह से किस्मत पर निर्भर करता है।
 
ग्लोबल ईस्पोर्ट्स के सह-संस्थापक रुशिंद्र सिन्हा ने डीडब्ल्यू को बताया, "ईस्पोर्ट्स और रियल मनी गेमिंग को अक्सर एक जैसा समझा जाता है लेकिन दोनों में काफी अंतर है। ईस्पोर्ट्स पूरी तरह से हुनर, रणनीति और प्रतिस्पर्धा पर आधारित होता है। इसमें खिलाड़ी घंटों अभ्यास करते हैं और नतीजे उनकी मेहनत पर निर्भर करते हैं। यह मनोरंजन, समुदाय और महारत पर आधारित है।"
 
सिन्हा को चिंता है कि कई ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, वीडियो गेम की लोकप्रियता का फायदा उठाकर सट्टेबाजी वाले ऐप्स को बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होंने कहा, "अगर इन्हें सही नाम दिया जाए तो इन पर अलग तरीके से नियंत्रण किया जा सकेगा। कई गेम कंपनियां बच्चों को लुभाने के लिए अपने गेम में कैसीनो जैसी चीजें जोड़ रही हैं, जो कि खतरनाक है।"
 
सिन्हा ने कहा, "सट्टेबाजी और इन ऐप्स के बीच बहुत हल्का अंतर है, खासकर तब जब यह छोटे बच्चों को टारगेट कर रहे हैं, जो जोखिम को सही से समझ नहीं सकते हैं। साफ परिभाषा और बेहतर सुरक्षा उपाय जरूरी है। यह इनोवेशन पर रोक लगाने के लिए नहीं बल्कि यूजर्स को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी है और इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि यह प्लेटफॉर्म्स असल में किस लिए हैं।”

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