मलेशिया को दंडित कर भारत क्या हासिल करना चाहता है?

Webdunia
गुरुवार, 16 जनवरी 2020 (09:31 IST)
मलेशिया के प्रधानमंत्री ने हाल में कश्मीर समेत कई मुद्दों पर भारत की आलोचना की है। इसके बाद भारत ने पलटवार करने के लिए व्यापारिक प्रतिबंधों का इस्तेमाल किया है। भारतीय कूटनीति के लिए इसके मायने क्या हैं?
 
मई 2018 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद से मिलने मलेशिया पहुंचे थे, तब मुहम्मद को प्रधानमंत्री बने महीनाभर भी नहीं बीता था। मोदी शांगरी-ला संवाद में भाग लेने सिंगापुर जा रहे थे और उन्होंने रास्ते में मलेशिया में रुककर मोहम्मद को सरकार बनाने की बधाई दी। इस मौके पर भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि मलेशिया को 'हम अपनी पूर्वी एशिया की नीति में प्राथमिकता देते हैं।'
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इसके डेढ़ साल के अंदर हालात नाटकीय ढंग से बदल गए हैं। महाथिर मोहम्मद ने सार्वजनिक रूप से भारत सरकार के कई कदमों की कड़ी आलोचना की है और उनके बयानों से नाराज अब भारत ने भी पलटवार करने की ठान ली है।
 
हाल ही में मुहम्मद ने भारत के नए नागरिकता कानून की आलोचना की और कहा कि इस कानून की वजह से लोग मर रहे हैं। उन्होंने सवाल किया कि आखिर इसे लाने की जरूरत ही क्या थी? इसके पहले मोहम्मद ने कश्मीर में उठाए गए भारत सरकार के कदमों की भी निंदा की थी और कहा था कि भारत ने कश्मीर पर आक्रमण कर उसे कब्जे में ले लिया है।
जानकारों का मानना है कि भारत सरकार कई तरीकों से व्यापार का इस्तेमाल कर मलेशिया को जवाब दे रही है। मलेशिया विश्व में ताड़ के तेल के सबसे बड़े उत्पादकों और निर्यातकों में से है और भारत उसका सबसे बड़ा ग्राहक रहा है।
 
ताड़ के तेल का इस्तेमाल खाना पकाने वाले तेल, जैविक ईंधन, नूडल्स और पिज्जा इत्यादि से लेकर लिपस्टिक बनाने तक में किया जाता है। अनुमान है कि 2019 में जनवरी से अक्टूबर के बीच भारत ने मलेशिया से 44 लाख मीट्रिक टन से भी ज्यादा ताड़ का तेल खरीदा।
 
लेकिन पिछले सप्ताह केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर ताड़ के तेल के आयात को 'मुक्त' से 'प्रतिबंधित' श्रेणी में डाल दिया। जानकारों का कहना है कि ये एक चालाकीभरा कदम था, क्योंकि इससे भारत को मलेशिया से तेल के आयात को आधिकारिक रूप से बैन करने की जरूरत भी नहीं पड़ी और आयातकों को ठीक ऐसा ही करने का संदेश भी मिल गया।
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मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक भारत में आयातकों ने मलेशिया से ताड़ के तेल का आयात बंद कर दिया है जिससे मलेशिया को भारी नुकसान होने की आशंका है। सॉल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने कई मीडिया संगठनों को बताया कि उनके लगभग सभी सदस्यों ने मलेशिया की जगह इंडोनेशिया से तेल लेना शुरू कर दिया है। यह तेल उन्हें थोड़ा महंगा भी पड़ रहा है, फिर भी वे तेल इंडोनेशिया से ही ले रहे हैं।
 
मलेशियाई प्रधानमंत्री मुहम्मद ने प्रतिबंधों की पुष्टि करते हुए कहा है कि वे इनसे चिंतित हैं। इसके बावजूद उन्होंने कहा है कि उन्हें जो गलत लगता है, वह उसके खिलाफ बोलते रहेंगे।
 
वरिष्ठ पत्रकार और विदेशी मामलों के जानकार संजय कपूर कहते हैं कि पहली बार भारत ने इस तरह बदला लेने वाली विदेश नीति अपनाई है। वे कहते हैं कि मुझे लगता है यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है, जब उसे अपने एक बड़े बाजार होने की शक्ति का अहसास हुआ है। लेकिन अमेरिका या दूसरे बड़े देश जिस तरह प्रतिद्वंद्वियों या उनकी नीतियों के खिलाफ बोलने वालों को 'ठीक' करते हैं, हमें उसकी नकल करनी चाहिए।
 
ताजा रिपोर्टों के अनुसार भारत अब मलेशिया से माइक्रोप्रोसेसर और दूरसंचार उपकरणों के आयात पर भी प्रतिबंध लगाने की योजना बना रहा है। ये भी मलेशिया के लिए एक अहम औद्योगिक क्षेत्र है और इस पर अगर प्रतिबंध लगते हैं तो मलेशिया को और धक्का लगेगा।
 
वरिष्ठ पत्रकार संदीप दीक्षित का कहना है कि यह एक असामान्य और कभी-कभी उठाया जाने वाला कदम है। उनका कहना है कि कई अध्ययन बताते हैं कि भारत गैर-शुल्क प्रतिबंधों का सबसे कम इस्तेमाल करने वाले देशों में से है। ऐसा लग रहा है कि अब भारत इस साधन का उपयोग करने लगा है।
 
इससे सवाल यह भी उठता है कि मलेशिया से तेल का आयात बंद कर भारत अपनी तेल की मांग को पूरा कैसे करेगा? जवाब इंडोनेशिया में है। मलेशिया का यह पड़ोसी विश्व में ताड़ के तेल का सबसे बड़ा उत्पादक है और एक तरह से तेल के व्यापार में मलेशिया का प्रतिद्वंद्वी भी है।
 
डीडब्ल्यू इंडोनेशिया की प्रीता कुसुमापुत्री कहती हैं कि इंडोनेशिया भारत को और ज्यादा तेल निर्यात करने के लिए मिले इस मौके से खुश है। उनके मुताबिक कि मलेशिया पिछले साल ही इंडोनेशिया को हटाकर भारत को सबसे ज्यादा ताड़ का तेल निर्यात करने वाला देश बना है। अब इंडोनेशिया के पास उस स्थान को वापस पाने का मौका है'।
 
भारत के पूर्व विदेश सचिव शशांक कहते हैं कि भारत सिर्फ मलेशिया को नहीं, बल्कि उस नए इस्लामी गठजोड़ को संदेश देना चाहता है, जो पाकिस्तान, मलेशिया और तुर्की मिलकर बना रहे हैं। वे कहते हैं कि जब भारत सभी मुस्लिम देशों से दोस्ती बढ़ाना चाह रहा था, तब भारत की कोशिशें पूरी तरह सफल इसीलिए नहीं हो पाईं, क्योंकि इन तीनों देशों ने एक पूरी तरह से भारत-विरोधी ब्लॉक बना लिया।
 
रिपोर्ट चारु कार्तिकेय

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