हिन्द-प्रशांत में नाटो जैसा संगठन क्यों चाहता है अमेरिका?

DW
शनिवार, 23 दिसंबर 2023 (16:39 IST)
हिन्द-प्रशांत इलाके में क्षेत्रीय स्थिरता पर कई तरह के खतरे हैं। इसके बावजूद विश्लेषकों को इस बात की कम ही संभावना दिखती है कि इलाकाई देश नाटो जैसा कोई स्थानीय संगठन बनाने के लिए साथ आएं। अमेरिका में रूढ़िवादी नेताओं के एक समूह ने कांग्रेस को एक ऐसे विधेयक का प्रस्ताव दिया है, जो नाटो का हिन्द-प्रशांत संस्करण बनाने की दिशा में पहले कदम के तौर पर एक फैक्ट-फाइंडिंग पैनल का गठन करेगा।
 
नाटो का यह हिन्द-प्रशांत संस्करण, चीन और उत्तर कोरिया जैसे देशों द्वारा इस क्षेत्र में बढ़ती आक्रामकता के खिलाफ एक रक्षात्मक संस्था के रूप में कार्य कर सकता है। हालांकि ऐसे कई लोग हैं, जो इस बात से सहमत हैं कि यह प्रस्ताव समान विचारधारा वाले देशों को एक सैन्य गठबंधन में साथ ला सकता है। लेकिन व्यापक अर्थों में देखें, तो यह प्रस्ताव असफल होता दिख रहा है।
 
'इंडो-पैसिफिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन एक्ट' को न्यूयॉर्क के रिपब्लिकन प्रतिनिधि माइक लॉलर ने पेश किया। दिसंबर की शुरुआत में उनके कार्यालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, 'चीन, रूस, ईरान और उत्तर कोरिया जैसे हमारे विरोधियों ने दुनिया को बाधित और अस्थिर करने के लिए एक खतरनाक गठबंधन बनाया है।'
 
बयान में कहा गया है, 'एक सामूहिक सुरक्षा समझौते में किसी देश की आक्रामकता को रोकने और हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में लोकतांत्रिक ताकतों की रक्षा करने की क्षमता है। यह महत्वपूर्ण है कि क्षेत्र और दुनिया के लोकतंत्र इस बढ़ते खतरे से निपटने के लिए एकजुट होकर काम करें।'
 
शांति और स्थिरता के सामने चुनौतियां
 
कुछ हालिया घटनाएं लॉलर के सुझाव का समर्थन करती मालूम होती हैं। पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए चुनौतियां बढ़ रही हैं। चीन ने 13 जनवरी को चुनाव से पहले ताइवान पर दबाव का अपना अभियान जारी रखा है। चीन ने फिलीपींस की नौसेना को रोकने के लिए अपनी नौसेना तैनात की है और दक्षिण चीन सागर के एक टापू पर सैनिकों की आवाजाही शुरू कर दी है। इस टापू पर चीन अपना दावा करता है।
 
14 दिसंबर को जब दो चीनी और चार रूसी सैन्य विमान बिना किसी चेतावनी के दक्षिण कोरिया के वायु रक्षा पहचान क्षेत्र में प्रवेश कर गए, तो दक्षिण कोरिया के लड़ाकू विमान सक्रिय हो गए। टोक्यो ने भी जापान सागर के ऊपर हवाई दस्ते तैनात कर दिए।
 
18 दिसंबर को उत्तर कोरिया ने प्योंगयांग के बाहर एक मोबाइल लॉन्चर से लंबी दूरी की बलिस्टिक मिसाइल दागी। यह मिसाइल ऐसी 5वीं लंबी दूरी की मिसाइल थी, जिसे उत्तर कोरिया ने 2023 में अब तक लॉन्च किया है।
 
यह प्रक्षेपण उत्तर कोरिया द्वारा कम दूरी के हथियार दागने के एक दिन बाद हुआ, जो नीचे गिरने से पहले 570 किलोमीटर की दूरी तक उड़ा। प्रक्षेपण के तुरंत बाद उत्तर कोरियाई रक्षा मंत्रालय ने क्षेत्र में अमेरिकी सेना की तैनाती की निंदा की और दावा किया कि दक्षिण कोरिया और अमेरिका के बीच हालिया वार्ता 'परमाणु टकराव पर एक खुली घोषणा' थी।
 
लेकिन क्षेत्र की स्थिरता के लिए कई और अलग-अलग तरह के खतरों के बावजूद, विश्लेषकों का कहना है कि इस बात की बहुत कम संभावना है कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के देश नाटो के स्थानीय संस्करण में एक साथ आएंगे।
 
राजनीतिक, नौकरशाही
 
टोक्यो विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सहायक प्रोफेसर रियो हिनता-यामागुची कहते हैं, 'शीत युद्ध के बाद से कई बार इस तरह की बातें होती रही हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह योजना वैचारिक स्तर से आगे बढ़ पाएगी। एक तो इस क्षेत्र के तमाम देशों के बीच विश्वास की कमी है, भले ही हम चीन और उत्तर कोरिया को छोड़ दें, वहीं अन्य देशों को यहां नाटो जैसी औपचारिक संस्था की आवश्यकता नहीं दिखती है।'
 
वह कहते हैं, 'एक संस्था के रूप में नाटो अच्छा लग सकता है, लेकिन यह आज जिस स्तर पर है, उसे बनने में कई दशक लग गए। यह बहुत ही राजनीतिक है और नौकरशाही की तरह है। कई एशियाई देशों को गठबंधन के लिए हब-एंड-स्पोक दृष्टिकोण अधिक आकर्षक लगता है क्योंकि यह लचीला है।'
 
हिनता-यागामुची कहते हैं कि पूरे क्षेत्र में द्विपक्षीय या छोटे स्तर के गठबंधनों के कई उदाहरण हैं, चाहे आर्थिक हों या फिर सुरक्षा कारणों से। उदाहरण के लिए, दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का संघ आसियान, 10 देशों का एक राजनीतिक और आर्थिक संघ है। जापान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका एक समझौता पूरा करने वाले हैं, जो उत्तर कोरिया द्वारा मिसाइल लॉन्च करने पर उन्हें तेजी से जानकारी साझा करने में सक्षम करेगा।
 
एयूकेयूएस क्षेत्र में सुरक्षा मुद्दों पर अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया का ध्यान केंद्रित करता है। इसी तरह क्वाड अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान को एक साथ लाने के लिए डिजाइन किया गया है।
 
हिनाता-यामागुची बताते हैं कि द्विपक्षीय रूप से जापान ने हाल ही में मलेशिया और फिलीपींस दोनों को तटीय गश्ती विमान प्रदान करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इन दोनों देशों का चीन के साथ विवाद है क्योंकि चीन, दक्षिण चीन सागर में अपने नियंत्रण क्षेत्र का विस्तार करने का प्रयास कर रहा है।
 
टोक्यो के इंटरनेशनल क्रिश्चियन यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर स्टीफन नैगी कहते हैं कि वर्तमान में इस बात की बहुत कम संभावना है कि क्षेत्र के कई अलग-अलग राष्ट्र अपने राजनीतिक मतभेदों को इस हद तक दूर कर सकें कि वे नाटो जैसा शक्तिशाली गुट बना सकें।
 
नैगी आगाह करते हैं, 'लेकिन यह चीन द्वारा तय किया जाएगा क्योंकि अगर वह इस क्षेत्र में और अधिक आक्रामक होने का फैसला करता है, तो कुछ भी हो सकता है।'
 
हालांकि अभी जो स्थिति है, उसमें चीन क्षेत्रीय सरकारों पर जीत हासिल करने के लिए लाठी के साथ-साथ गाजर का भी इस्तेमाल कर रहा है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग वियतनाम के राष्ट्रपति वो वुन थुओंग के साथ दो दिवसीय वार्ता के लिए हनोई पहुंचे। दक्षिण चीन सागर में विवादित द्वीपों को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद चल रहा है।
 
चीन और अमेरिका के बीच संतुलन बनाने की कोशिश
 
नैगी कहते हैं, 'क्षेत्र के कई देश चीन और अमेरिका के बीच नाजुक स्थिति में हैं और कई लोग वॉशिंगटन या बीजिंग के साथ सहयोग करने की जगह बहु-ध्रुवीय गठबंधन बनाना पसंद करते हैं। यह प्रवृत्ति बहुपक्षीयता के बजाय 'लघु-पक्षीयता' की ओर है, जिसमें तीन या चार देशों के छोटे समूह हैं जो एक संकीर्ण मुद्दे पर एकजुट हैं और उस उद्देश्य की दिशा में सहयोग कर रहे हैं।'
 
हालांकि, दूसरों के लिए, नाटो की तर्ज पर एक हिन्द-प्रशांत गठबंधन बढ़ते खतरों का सबसे अच्छा समाधान होगा।
 
फुकुई प्रीफेक्चुरल यूनिवर्सिटी में राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर योइची शिमादा कहते हैं, 'मैं इस विचार का पूरी तरह से समर्थन करता हूं, हालांकि मुझे एहसास है कि इस तरह का सुरक्षा तंत्र बनाना और संचालित करना बेहद मुश्किल होगा।'
 
शिमादा कहते हैं, 'मुझे लगता है कि इसे क्षेत्र के कई छोटे देशों का समर्थन प्राप्त होगा, जो व्यक्तिगत रूप से कमजोर हैं, लेकिन फिलीपींस जैसे अपने पड़ोसियों के साथ मिलकर मजबूत हैं। मेरा मानना ​​​​है कि इस तरह के संगठन की नींव पहले से ही है। मैं क्वाड को एक क्षेत्रीय गठबंधन के आधार के रूप में देखता हूं और मुझे उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में, यह साझेदार के रूप में अधिक देशों का स्वागत करेगा।'

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