माओ के शासन के बाद चीन ने शीर्ष नेताओं की राजनीतिक ताकत पर अंकुश लगाने का फैसला किया। लेकिन अब राष्ट्रपति शी जिनजिंग इस अकुंश को तोड़ रहे हैं। क्या चीन तानाशाही की तरफ बढ़ रहा है?
2012 में शी जिनपिंग ने जब चीन की कमान संभाली तो उन्हें सामान्य नेता माना जा रहा था। वह चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने और चीन की सेना के चैयरमैन भी। लेकिन जल्द ही यह साफ हो गया कि शी को सामान्य नेता मानने वाले राजनीतिक पंडितों ने भूल की है। 25 फरवरी 2018 को इसका सबसे पुख्ता सबूत भी मिला। शी की राजनीतिक इच्छाएं चीन के संविधान के पार जा चुकी हैं।
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक देश की अगली राष्ट्रीय कांग्रेस में संवैधानिक बदलाव किए जाएंगे। शिन्हुआ की रिपोर्ट में कहा गया, "कम्युनिस्ट पार्टी ने देश के संविधान के उस प्रावधान को हटाने की इच्छा जताई है जिसके तहत राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के लिए लगातार दो कार्यकाल की अधिकतम सीमा तय है।" यह प्रस्ताव कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी ने रखा था। माना जा रहा है कि नेशनल कांग्रेस प्रस्तावित बदलावों को बिना नानुकुर के स्वीकार करेगी। नेशनल कांग्रेस ने आज तक चीनी राष्ट्रपति की किसी इच्छा को खारिज नहीं किया है।
इतिहास के सबक को भुलाता चीन
इन बदलावों के साथ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी, राष्ट्रपति के अधिकतम 10 साल के शासन की परंपरा को तोड़ रही है। चीन के सुधारवादी नेता डेंग शियाओपिंग ने 10 साल के कार्यकाल का प्रावधान पेश किया था। 1982 से 1987 तक चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के चेयरमैन रहे शियाओपिंग को लगा कि इस प्रावधान के बाद कोई माओ त्से तुंग की तरह सत्ता का दुरुपयोग नहीं कर पाएगा। माओ त्से तुंग चीनी गणतंत्र के संस्थापक थे।
माओ ने अंतहीन ताकत का इस्तेमाल किया। "आगे की ओर एक बड़े कदम" का नारा देते हुए माओ के कार्यकाल में चीन ने सबसे बड़ी भुखमरी देखी। माओ की सांस्कृतिक क्रांति भी चीन के लिए बड़ी त्रासदी साबित हुई। लेकिन माओ के कद को महिमामंडित करने वाली तस्वीरें आज भी चीन सरकार की मुख्य इमारत में दिखती है।
भविष्य में कोई माओ की तरह सत्ता का दुरुपयोग न कर पाए, इसीलिए 10 साल का संवैधानिक प्रावधान किया गया। कोशिश की गई कि सारी ताकत एक हाथ में केंद्रित न रहे और राजनीति में व्यक्ति पूजा की संस्कृति न उपजे। सामूहिक रूप से एक व्यक्ति को नियंत्रित किया जा सके। शियाओपिंग के कार्यकाल के बाद विकेंद्रीकरण को नए विचार के रूप में स्वीकार किया गया और राजनीतिक प्रयोगों को बढ़ावा दिया गया।
हर चीज के चैयरमैन
लेकिन अब शी उन सारी कोशिशों को ठिकाने लगा रहे हैं। अभूतपूर्व भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाकर वह अपने राजनीतिक विरोधियों को पहले ही साफ कर चुके हैं। राष्ट्रपति के फैसले लेने की प्रक्रिया को अपने हाथ तक सीमित कर चुके हैं। देश का हर फैसला वही होता है जो शी चाहते हैं। यही वजह है कि ब्रिटेन की इकोनॉमिस्ट पत्रिका ने शी को "चैयरमैन ऑफ एवरीथिंग" कहा।
सत्ता में आने के साथ ही शी ने विरोधियों, सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ताओं और सिविल सोसाइटी को दबाना शुरू किया। कई दशकों बाद चीन सरकार विरोधी सुर वाले लोगों पर बहुत ज्यादा सख्त होती दिखाई पड़ी। कुछ आजादियां दी गई थीं, जिन्हें अब वापस ले लिया गया है।
बीते साल अक्टूबर में शी ने गांरटी देते हुए कहा, "चीनी चरित्र वाले सोशलिज्म पर शी जिनपिंग के विचार एक नया युग हैं।" ऐसा युग जिसे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के संविधान में आधिकारिक राजनीतिक सिद्धांत के रूप में स्वीकार किया जाएगा। अब तक कम्युनिस्ट पार्टी ने ऐसा सम्मान सिर्फ माओ त्से तुंग को दिया था।
चीनी राष्ट्रपति ने हाल ही में एलान किया, "सरकार, सेना, समाज और स्कूल, उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम- पार्टी सबकी नेता है।" इशारों में इशारों में वह कह रहे थे कि वही सबके नेता हैं। व्यक्ति पूजा की शुरूआत।
संवैधानिक बदलाव हुए तो शी जब तक चाहें तब तक चीन के राष्ट्रपति रह सकते हैं। दुनिया को अगले कुछ दशकों तक चीन के एक मात्र सबसे ताकतवर नेता के साथ चलना होगा। यह सारे बदलाव ऐसे वक्त में हो रहे हैं जब भूरणनैतिक लिहाज से चीन का प्रभाव फैल रहा है। बीजिंग दुनिया को आर्थिक संपन्नता वाले भविष्य और "वन बेल्ट, वन रोड" प्रोजेक्ट के जरिये जो सपना दिखा रहा है, असल में वह चीन और शी का बेहद महत्वाकांक्षा से भरा स्वप्न है।