भूरीबाई कहानी उस आदिवासी मजदूर महिला कलाकार की जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मंच पर भेंट की अपनी कलाकृति
जिस भोपाल में 45 साल पहले मजदूरी की तलाश में आई थी वहीं पद्मश्री भूरीभाई ने मंच पर पीएम मोदी को भेंट की अपनी पेटिंग
भोपाल। मध्यप्रदेश में जनजातीय गौरव दिवस के मंच पर आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मध्यप्रदेश की प्रख्यात चित्रकार पद्मश्री से अलंकृत भूरीबाई ने जनजातीय कलाकृति को दर्शाती सुंदर पेंटिंग भेंट की। भूरीभाई ने प्रधानमंत्री को भराड़ी शीर्ष के तैयार की गई आदिवासी भील पिथौरा पेटिंग भेंट की है।
देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित मध्यप्रदेश की भील महिला चित्रकार भूरीबाई के जीवन की कहानी उनकी पेंटिंग के रंगों की तरह जिंदगी के अनेक रंगों से भरी है। भोपाल से सैकड़ों किलोमीटर दूर आदिवासी बाहुल्य जिले झाबुआ की मूल रुप से रहने वाली भूरीबाई का जीवन,संघर्ष से सफलता की ऐसी दास्तां है जिनको सुनकर ही रोंगेटे खड़े हो जाते है।
वर्तमान में राजधानी भोपाल के जनजातीय संग्रहालय में चित्रकार के तौर पर काम करने वाली भूरीबाई एक ऐसी आदिवासी महिला कलाकार का नाम है जिन्होंने अपने परिश्रम के बल पर मजदूरी से लेकर पद्मश्री सम्मान तक का सफर तय किया है।
वेबदुनिया से बातचीत में भूरीबाई अपने संघर्ष भरे जीवन की कहानी को साझा करते हुए कहती हैं कि वह मजूदरी की तलाश के लिए 45 साल पहले झाबुआ के अपने गांव पिठौल से निकलकर भोपाल आई थी। भोपाल आने पर उन्हें सबसे पहले ईंटा,गारा ढोने का काम मिला उस वक्त बन रहे भारत भवन में। यहीं पर उनकी मुलाकात प्रसिद्ध कलाकार जे स्वामीनाथन जी से हुई। भारत भवन के निदेशक रहे जे स्वामीनाथन ने उनसे उनके समुदाय के रीति रिवाजों,पूजा पाठ के साथ भीलों के रहन-सहन के बारे में बात की।
भूरीभाई स्वामीनाथन से पहली मुलाकात में हुई बातों को साझा करते हुए कहती हैं कि स्वामीनाथन जी ने उनके रीति रिवाजों के बारे में जनाने के बाद उस वक्त काम कर रहे सभी मजदूरों से भील आर्ट को बनाकर दिखाने को कहा। स्वामीनाथन की पेटिंग बनाने के बात पर जब कोई तैयार नहीं हुआ तो अपनी बहन के कहने पर वह भील आर्ट बनाने के लिए तैयार हुई। इसके बाद वह बहुत संकोच और डर कर पहली पेंटिंग बनाई।
उस दिन को याद करते हुए भूरीबाई कहती है कि स्वामीनाथन जी ने उनसे भारत भवन के तलघर में जब पेटिंग बनाने को बोला लेकिन उन्होंने डर से तलघर में जाने से इंकार कर दिया और भारत भवन के उपर बैठकर पहली बार भील कला की पिठौरा पेटिंग को बनाई। उनकी पेटिंग को स्वामीनाथन बहुत खुश हुए और उनसे पांच दिन पेटिंग बनवाई और पांच दिन पेटिंग बनाने के लिए उन्हें 50 रुपए दिए। इसके बाद यह सिलसिला चलता रहा और स्वामीनाथन उनसे लगातार पेटिंग बनवाते रहे और उनका मेहनताना देते रहे। इस दौरान वह चित्रकारी के साथ मजदूरी भी करती रही।
इसके बाद स्वामीनाथन जी ने ही उनकी कला को पूरी दुनिया से पहचान दिलावाई। भूरीबाई आज भी अपने गुरु स्वामीनाथन को याद करते हुए कहती है कि मुझे आज भी लगता है कि वह मेरे आस-पास ही हैं,वह जहां भी हैं वहां से मुझे दिख रहे हैं और मुझे आशीर्वाद दे रहे हैं। वह कहती हैं कि वह अपने गुरु स्वामी जी को एक देव के रुप में मानती है।
भूरीबाई अपने जिंदगी में आए हर उतार-चढ़ाव को साझा करते हुए कहती है कि एक समय उन्होंने जीवन की आस ही छोड़ दी थी। दवाओं के रिएक्शन से वह गंभीर बीमारी के चपेट में आ गई और चार साल तक बिस्तर से नहीं उठ पाई। इस दौरान उनके सगे संबंधियों और परिवार वालों ने उनके जीने की आस ही छोड़ दी थी। इसके बाद काफी संघर्ष के बाद 2002 में उनको लोक कला परिषद में नौकरी मिली और तब से अब तक लगातार जनजातीय संग्राहलय में पेटिंग बनाने का काम करते आ रही है।
वेबदुनिया से भूरीभाई अपनी लोककला आदिवासी भील पेटिंग पिथौरा के बारे में बताती हैं कि आदिवासी भील समुदाय में पिथौरा बाबा के देव पूजा के दौरान एक चित्र उकेरा जाता है,पिथौरा बाबा के पूजा में एक घोड़ा बनाया जाता है जो पारंपरिक रूप से पुरुष ही बनाते हैं। वह कहती है कि पूजा में आने वाले खास घोड़े को छोड़कर इस अनुष्ठान से जुड़ी अन्य प्रिंटिंग जैसे पेड़,मोर और बहुत सी चीजें बनाती है।