भगवान श्री कृष्ण की 8 ही पत्नियां थीं यथा- रुक्मणि, जाम्बवन्ती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा। आओ जानते हैं सत्यभामा के संबंध में 7 खास बातें।
1. एक घटना के कारण हुआ श्रीकृष्ण से विवाह : सत्यभामा अवंतिका (उज्जैन) के राजा सत्राजित की पुत्री थी। सत्राजित के पास एक बहुत ही कीमती और चमत्कारिक मणि थी। कहते हैं कि उसमें से स्वर्ण उत्पन्न होता था। एक दिन सत्राजित का भाई प्रसेन उस मणि को धारण कर शिकार के लिए निकल गया। बहुतकाल तक नहीं लौटने पर सत्राजित को लगा कि श्री कृष्ण ने उसे मारकर मणि चुरा ली है। जब इसकी चर्चा आम होने लगी तो श्रीकृष्ण को बहुत बुरा लगा कि लोग उन्हें चोर समझ रहे हैं। ऐसे में वे प्रसेन को ढूंढने स्वयं जंगल गए। जंगल में उन्होंने प्रसेन और उसके घोड़े को मरा हुआ पाया। उन्होंने बाद में खोजा तो पता चला कि यह मणि एक रीछ के पास है। वह कोई और नहीं रामभक्त जामवंत थे। उन्होंने उनके साथ युद्ध किया। जब जामवंत हारने लगे तो उन्होंने प्रभु श्रीराम को पुकारा। श्रीकृष्ण को तब राम रूप में प्रकट होना पड़ा। यह देख जामवंत की आंखों से आंसू निकल पड़े। उन्होंने मणि के साथ ही अपनी पुत्री जामवंती को भी श्रीकृष्ण को सौंप दिया।
भगवान उस मणि को लेकर वापस आते हैं और जब वो मणि सत्राजित को दी गई तो सत्राजित को बड़ा दुख हुआ, ग्लानि भी हुई, लज्जा भी आई कि मैंने श्रीकृष्णजी पर नाहक ही हत्या और चोरी का आरोप लगाया। उसने श्रीकृष्ण ने क्षमा मांगी और कहा कि मैं अपनी ग्लानि को मिटाना चाहता हूं। इसके लिए मेरी पुत्री सत्यभामा को मैं आपको सौंपता हूं। आप उसे स्वीकार करिए और उसने कहा यह मणि भी आप रखिए दहेज में। कृष्ण ने कहा- यह मणि तो आफत का काम है यह मैं नहीं रख सकता यह आप ही रखिए।
2.सबसे सुंदर : कहते हैं कि सत्यभामा भगवान श्रीकृष्ण की सबसे सुंदर पत्नी थीं। श्रीकृष्ण रुक्मणी के बाद सबसे ज्यादा समय सत्यभामा के पास ही बिताते थे। सत्यभामा को एक और जहां अपने सुंदर होने और श्रेष्ठ घराने की राजकुमारी होने का घमंड था।
3.सत्यभामा-कृष्ण के पुत्र-पुत्री : भानु, सुभानु, स्वरभानु, प्रभानु, भानुमान, चंद्रभानु, वृहद्भानु, अतिभानु, श्रीभानु और प्रतिभानु।
3.वीर योद्धा : सत्यभामा युद्ध कला में भी कुशल थी। नरकासुर से युद्ध के समय सत्यभामा ने ही श्रीकृष्ण का साथ दिया था।
5. चिरयौवना का वरदान : नरकासुर के वध के पश्चात एक बार श्रीकृष्ण स्वर्ग गए और वहां इन्द्र ने उन्हें पारिजात का पुष्प भेंट किया। वह पुष्प श्रीकृष्ण ने देवी रुक्मिणी को दे दिया। देवी सत्यभामा को देवलोक से देवमाता अदिति ने चिरयौवन का आशीर्वाद दिया था। तभी नारदजी आए और सत्यभामा को पारिजात पुष्प के बारे में बताया कि उस पुष्प के प्रभाव से देवी रुक्मिणी भी चिरयौवन हो गई हैं। यह जान सत्यभामा क्रोधित हो गईं और श्रीकृष्ण से पारिजात वृक्ष लेने की जिद्द करने लगी।
6. सत्यभाभा के पूर्व जन्म की कथा : सत्यभामा ने एक दिन श्रीकृष्ण से पूछ लिया कि मैंने कौन से ऐसे कार्य किए हैं जिसकी वजह से मुझे आपकी पत्नी बनने का अवसर मिला है। मेरे आंगन में कल्पवृक्ष है। जिसके बारे में संसारी लोग जानते भी नहीं हैं। इस पर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा को कल्पवृक्ष के नीचे ले जाकर उनके पूर्व जन्म की कथा सुनाई।
सत्यभामा पहले जन्म में सुधर्मा नाम के ब्राह्मण की कन्या गुणवती थी जिसका विवाह सुधर्मा ने अपने शिष्य चंद्र से कर दिया था। कालांतर में सुधर्मा अपने दामाद चंद्र के साथ जंगल में गए हुए थे। वहां किसी राक्षस ने दोनों को मार दिया। सूचना मिलने पर गुणवती ने बहुत शोक किया। दरिद्रता के कारण घर का सामान बेचकर पिता-पति का अंतिम संस्कार करना पड़ा। उसके बाद जीवन निर्वाह का साधन मिलने पर गुणवती ने स्वयं को भगवान विष्णु के चरणों में समर्पित कर दिया।
कार्तिक मास आने पर गुणवती ने नियमपूर्वक व्रत-पूजन आरंभ किया। इस बीच गुणवती को कठिन ज्वर हो गया। स्वास्थ्य ठीक होने के बावजूद गुणवती ने पूजन-अर्चन नहीं छोड़ा और गंगा में स्नान करते समय प्राण-पखेरू उड़ गए। श्रीकृष्ण ने बताया कि इसी पुण्य के फल से सत्यभामा को पटरानी बनने का सौभाग्य मिला है।
7.सत्यभामा की मृत्यु : मौसुल युद्ध के कारण जब श्रीकृष्ण के कुल के अधिकांश लोग मारे गए तो श्रीकृष्ण ने प्रभाष क्षेत्र में एक वृक्ष के नीचे विश्राम किया। वहीं पर उनको एक भील ने भूलवश तीर मार दिया, जो कि उनके पैरों में जाकर लगा। इसी को बहाना बनाकर श्रीकृष्ण ने देह को त्याग दिया। बलराम भी समुद्र में जाकर समाधि ले लेते हैं।
जब अर्जुन के पास यह समाचार पहुंचता है तो वे द्वारिका पहुंचते हैं। उनके द्वारिका पहुंचने पर भगवान श्रीकृष्ण की सभी पत्नियों सहित कई यदुवंशी महिलाओं को लेकर वे अपने राज्य के लिए निकले। पुरुषों में यदि कोई बचा था तो कृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ। कहते हैं कि यह लाखों लोगों का लश्कर था। रास्ते में लुटेरों धन के लालच में धावा बोल दिया। अर्जुन अकेले कुछ नहीं कर पाए। लुटेरे सिर्फ स्वर्ण आदि ही नहीं लूट रहे थे बल्कि सुंदर और जवान महिलाओं को भी लूट कर ले गए। चारों ओर हाहाकार मच जाता है। जैसे-तैसे अर्जुन यदुवंश की बची हुईं स्त्रियों व बच्चों को लेकर इन्द्रप्रस्थ पहुंचते हैं जिसमें श्रीकृष्ण की पत्नियां भी थीं। यहां आकर अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्र को इन्द्रप्रस्थ का राजा बना देते हैं। इसके बाद श्रीकृष्ण की पत्नियों ने अग्नि में कूदकर जान दे दी और कुछ तपस्या करने वन चली गईं।