महाभारत युद्ध में जब भगदत्त ने अर्जुन के ऊपर छोड़ दिया था वैष्णवास्त्र

अनिरुद्ध जोशी
राजा भागदत्त प्राग्ज्योतिष (असम) देश के अधिपति नरकासुर के पुत्र और इंद्र के मित्र थे। भौमासुर की मृत्यु के पश्चात भगदत्त प्राग्ज्योतिष के अधिपति बने। कुरुक्षेत्र के युद्ध में वह कौरव सेना की ओर से लड़े और अपने विशालकाय हाथी के साथ उसने बहुत से योद्धाओं का वध किया। भगदत्त के पास शक्ति अस्त्र और वैष्णव अस्त्र जैसे दिव्यास्त्र थे।
 
हस्ति युद्ध में भगदत्त अत्यंत कुशल थे। अपने सौप्तिक या  सुप्रतीक नामक हाथी पर उसने भीम को भी परास्त किया था। कृतज्ञ और वज्रदत्त नाम के इसके दो पुत्र थे, इनमें कृतज्ञ की मृत्यु नकुल के हाथ से हुई। 
 
जब भगवत्त का अर्जुन से घमासान युद्ध चल रहा था, तब अर्जुन ने भगदत्त के धनुष को काटकर उसके बाणों के भी टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे और तुरंत ही उसने अपने बहत्तर बाणों से भगदत्त के सम्‍पूर्ण शरीर को गहरी चोट पहुंचायी थी। घायल होकर भगदत्त ने जब कोई चारा नहीं सुझा तो कुपित होकर अपने उसने अंकुश को ही वैष्‍णवास्‍त्र से अभिमन्त्रित करके अर्जुन की छाती पर छोड़ दिया। भगदत्त का छोड़ा हुआ यह दिव्यास्त्र सबका विनाश करने वाला था। तब भगवान श्रीकृष्‍ण ने अर्जुन को अपनी पीछे लेकर यह अस्त्र स्वयं ही अपनी छाती पर ले लिया और उसकी चोट सह ली।
 
श्रीकृष्ण से अर्जुन से कहा- "मैंने तुम्‍हारी रक्षा के लिये भगदत्त के उस अस्‍त्र को दूसरे प्रकार से उसके पास से हटा दिया है। पार्थ! अब वह महान् असुर उस उत्‍कृष्‍ट अस्‍त्र से वंचित हो गया है। अत: तुम उसे मार डालो।" यह सुनकर अर्जुन ने तक्षण ही नराच नामक अस्त्र का प्रयोग करके भगदत्त के पराक्रमी हाथी और उसका वध कर दिया।
 
यह भी कहा जता है कि युद्ध के बारहवें दिन उनसे अर्जुन पर वैष्णव अस्त्र का प्रयोग किया था। यह देखकर सभी पांडव भयभित हो गए थे। तब श्रीकृष्ण से सभी से कहा था कि इस अस्त्र के समक्ष समर्पण करने से ही जान बच सकती है। बाद में श्रीकृष्ण ने वह अस्त्र अपने ऊपर ले लिया था। यह भी कहता जाता है कि वह अस्त्र वैजयंती माला बनकर श्रीकृष्ण के गले में धारण हो गया था। यह भी कहा जाता है कि अर्जुन भगदत्त की आंखों की पट्टी को तोड़ देता है जिससे उसे दिखना बंद हो जाता है और अर्जुन इस अवस्था में ही छल से उनका वध कर देता है।
 
संदर्भ : महाभारत द्रोण पर्व
 
अन्य तथ्‍य : भगवान, भगवती आदि शब्द भग उपसर्ग लगाकर बने हैं, उसी तरह भगदत्त भी बना। पौराणिक काल के एक राजा का नाम भगदत्त था जिसका अर्थ हुआ (भग) देवता से प्राप्त। पुरानी फारसी, ईरानी और अवेस्ता में यह भग लफ्ज बग या बेग के रूप में परिवर्तित हो गया। बग या बेग बाद में रसूखदार लोगों की उपाधि भी हो गई। मध्य एशिया के शक्तिशाली कबीलों की जातीय पहचान यह बेग शब्द बना। कुछ विद्वान इसमें उद्यान के अर्थ वाला बाग भी देखते हैं जिसकी व्याख्या समृद्ध भूमि, ऐश्वर्य भूमि के रूप में है। बगीचा इसका ही रूप है। बगराम, बगदाद, बागेवान जैसे शहरों के नामों के पीछे यही अर्थ छुपा है। बख्श का अर्थ भी अंश, खंड, भाग्य, हिस्सा, देने वाला होता है।
 
मेसोपोटेमिया के उपजाऊ भाग में स्थित बगदाद अरब विश्व का एक प्रमुख नगर एवं इराक की राजधानी है। माना जाता है कि इसका नाम 600 ईसा पूर्व के बाबिल के एक ब्राह्मण राजा भागदत्त पर पड़ा है। हालांकि यह शोध का विषय है। हालांकि यह नगर 4,000 वर्ष पहले से ही अस्तित्व में रहा है। यह शहर प्राचीन सिल्क रूट के प्रमुख शहरों में से एक है। नदी के किनारे स्थित यह शहर पश्चिमी यूरोप और सुदूर पूर्व के देशों के बीच, समुद्री मार्ग के आविष्कार के पहले कारवां मार्ग का प्रसिद्ध केंद्र था। 

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