महाभारत के राजा शांतनु में थीं ये 2 शक्तियां, जानकर चौंक जाएंगे

WD Feature Desk
मंगलवार, 13 अगस्त 2024 (17:09 IST)
King Shantanu in Mahabharata: इक्ष्वाकु वंश में महाभिष नामक राजा थे। एक दिन सभी देवता आदि ब्रह्माजी की सेवा में उपस्थित हुए। वायु के वेग से श्रीगंगाजी के वस्त्र उनके शरीर से खिसक गए। तब सभी ने आंखें नीची कर लीं, किंतु महाभिष उन्हें देखते रहे। तब ब्रह्माजी ने उनसे कहा कि तुम मृत्युलोक जाओ। जिस गंगा को तुम देखते रहे हो, वह तुम्हारा अप्रिय करेगी। इस प्रकार महाभिष का जन्म राजा प्रतीप के रूप में हुआ।
 
1. छूकर लोगों को ठीक करना
2. वरदान देना
 
प्रतापी राजा प्रतीप गंगा के किनारे तपस्या कर रहे थे। उनके तप, रूप और सौंदर्य पर मोहित होकर गंगा उनकी दाहिनी जंघा पर आकर बैठ गईं और कहने लगीं, 'राजन! मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं। मैं जह्नु ऋषि की पुत्री गंगा हूं।' इस पर राजा प्रतीप ने कहा, 'गंगे! तुम मेरी दाहिनी जंघा पर बैठी हो, जबकि पत्नी को तो वामांगी होना चाहिए, दाहिनी जंघा तो पुत्र का प्रतीक है अतः मैं तुम्हें अपने पुत्रवधू के रूप में स्वीकार कर सकता हूं।' यह सुनकर गंगा वहां से चली गईं।' ALSO READ: महाभारत के 2 दासी पुत्र भी राजकुमार और कौरव क्यों कहलाए और क्यों नहीं लड़ा कुरुक्षेत्र का युद्ध
 
जब महाराज प्रतीप को पुत्र की प्राप्ति हुई तो उन्होंने उसका नाम शांतनु रखा। प्रतापी राजा प्रतीप के बाद उनके पुत्र शांतनु हस्तिनापुर के राजा हुए और इसी शांतनु से गंगा का विवाह हुआ। विवाह के वक्त गंगा ने शर्त रखी कि आपसे जो भी मुझे पुत्र उत्पन्न होगा उसका मैं क्या करूंगी इसके बारे में आप जिस दिन भी सवाल पूछेंगे मैं पुन: स्वर्ग लौट जाऊंगी। गंगा से उन्हें 8 पुत्र मिले जिसमें से 7 को गंगा नदी में बहा दिया गया तब तक राजा शांतनु ने यह नहीं पूछा कि आखिर तुम ऐसा क्यों कर रही हो परंतु जब 8वें पुत्र का जन्म हुआ तो राजा से रहा नहीं गया तो गंगा ने कहा कि शर्त के अनुसार मुझे अब स्वर्ग जाना होगा। यह सात पुत्र सात वसु थे जो श्राप के चलते मनुष्य योनी में आए थे तो मैंने इन्हें तुरंत ही मुक्त कर दिया और यह आठवां वसु अब आपके हवाले। शांतनु ने गंगा के 8वें पुत्र का नाम देवव्रत रखा। यह देवव्रत ही आगे चलकर भीष्म कहलाए। 8वें पुत्र को जन्म देकर गंगा स्वर्गलोक चली गई, तो राजा शांतनु अकेले हो गए।
 
एक दिन शांतनु यमुना के तट पर घूम रहे थे कि उन्हें नदी में नाव चलाते हुए एक सुन्दर कन्या नजर आई। शांतनु उस कन्या पर मुग्ध हो गए। उन्होंने कन्या से उसका नाम पूछा तो उसने कहा, 'महाराजा मेरा नाम सत्यवती है और में निषाद कन्या हूं।' शांतनु सत्यवती के प्रेम में रहने लगे। सत्यवती भी राजा से प्रेम करने लगी। एक दिन शांतनु ने सत्यवती के पिता के समक्ष सत्यवती से विवाह का प्रस्ताव रखा, लेकिन सत्यवती के पिता ने यह शर्त रखी की मेरी पुत्री से उत्पन्न पुत्र ही हस्तिनापुर का युवराज होकर राजा होगा तभी में अपनी कन्या का हाथ आपके हाथ में दूंगा। राजा इस प्रस्ताव को सुनकर अपने महल लौट आए और सत्यवती की याद में व्याकुल रहने लगे। जब यह बात गंगापुत्र भीष्म को पता चली तो उन्होंने अपने पिता की खुशी के खातिर आजीवन ब्रह्मचारी रहने की शपथ ली और सत्यवती का विवाह अपने पिता से करवा दिया।ALSO READ: महाभारत में सबसे शक्तिशाली महिला कौन थीं?
 
गंगा पुत्र भीष्म को राजा शांतनु इच्छा मृत्यु का वरदान दिया था। वरदान देने क्षमता उस में ही होती है जो कि सिद्ध और शक्ति प्राप्त होता है। शांतनु के पास ऐसी भी शक्ति थी कि वे किसी को भी छूकर उसका रोग दूर कर देते थे। यानी वे अपने हाथों से छू देता था, उसके सभी शारीरिक रोग दूर हो जाते तथा उसे प्रत्येक प्रकार की शांति मिल जाती थी। इसी स्पर्शगुण (शं+तनु) के कारण उनका नाम शांतनु पड़ा।ALSO READ: महाभारत के युद्ध में जब हनुमानजी को आया गुस्सा, कर्ण मरते-मरते बचा
 

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