धृतराष्ट्र मान लेते विदुर की यह बात तो महाभारत का युद्ध नहीं होता

अनिरुद्ध जोशी
महाभारत युद्ध के पहले भीष्म, धृतराष्ट्र और दुर्योधन को कई लोगों ने युद्ध को टालने के लिए कई तरह की सलाह दी। धृतराष्ट्र के सौतेले भाई और सलाहकार विदुर ने तो इस युद्ध को रोकने का बहुत प्रयास किया। उन्होंने भीष्म, धृतराष्ट्र और दुर्योधन को पांडवों से समझौता करने की सलाह दी थी। इस सलाह में उन्होंने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही थी। जानिए... 
 
 
।।न स्याद् वनमृते व्याघ्रान् व्याघ्रा न स्युर्ऋते वनम्।।
।।वनं हि रक्षते व्याघ्रैर्व्याघ्रान् रक्षति काननम् ।।46।।-(महाभारत, उद्योगपर्व के अंतर्गत प्रजागरपर्व)
 
 
अर्थात बाघों के विना वन का अस्तित्व संभव नहीं और न ही विना वन के बाघ रह सकते हैं। वन की रक्षा तो बाघ करते हैं और बदले में वन उनकी रक्षा करते हैं।
 
 
महात्मा विदुर एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते हैं महाराज को यह समझाने के लिए कि उनको क्यों अपने पुत्रों और पांडवों के मध्य सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित करना चाहिए। वे कहते हैं-
 
 
।।धार्तराष्ट्रा वनं राजन् व्याघ्रा पाण्डुसुता मताः।।
।।मा छिन्दि सव्याघ्रं मा व्याघ्रान् नीनशन् बनात्।।45।। (महाभारत, उद्योगपर्व के अंतर्गत प्रजागरपर्व)
 
 
अर्थात् आपके पुत्र (धार्तराष्ट्र) वन के समान हैं और पाण्डुपुत्र उनके सह-अस्तित्व में रह रहे बाघ हैं। बाघों समेत इन वनों को समाप्त मत करिए अथवा उन बाघों का अलग से विनाश मत करिए। वनों तथा बाघों की भांति दोनों पक्ष एक दूसरे की रक्षा करें इसी में सभी का हित है।

 
गौरतलब है कि यह बात आज के संदर्भ में भी सही है। यह सत्य है कि यदि वन नहीं रहेंगे तो बाघ नहीं रहेंगे और यदि बाघ नहीं रहेंगे तो वन के अस्तित्व का भी कोई मतलब नहीं। देर-सबेर वन भी सभी प्राणियों से खाली हो जाएंगे। क्योंकि बाघ के अस्तित्व से ही सभी प्राणियों का अस्तित्व है। एक भी प्राणी के पारिस्थितिकी तंत्र से बाहर होने से सभी प्राणियों का अस्तित्व खतरे में हो जाता है।
 

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