Biodata Maker

गांधी की हत्या का सिलसिला जारी है!

श्रवण गर्ग
गांधी को अब उनके घर में घुसकर मारा जा रहा है। अभी तक कोशिशें बाहर से मारने की ही चल रही थीं, पर वे शायद पूरी तरह सफल नहीं हो पाईं। जनता चुप है और बापू के अधिकांश अनुयायियों ने भी रहस्यमय मौन साध रखा है। ठीक वैसे ही, जैसे भीड़भरी सड़क पर किसी बेगुनाह की पिटाई या हत्या होते हुए अथवा किसी सम्भ्रांत परिवार की महिला को गुंडों द्वारा छेड़ता हुआ देख कुछ लोग वीडियो बनाने लगते हैं और बाक़ी आंखें चुराकर आगे बढ़ जाते हैं। बापू के साथ भी वैसा ही हो रहा है।
 
मोहनदास करमचंद गांधी को फिर से मारने का काम उनके स्थान पर विनायक दामोदर सावरकर की प्राण-प्रतिष्ठा करने के लिए किया जा रहा है। सावरकर की स्थापना के लिए 'गांधी स्मृति' को 'गांधी विस्मृति' में तब्दील किया जाना ज़रूरी है। माना जा रहा है कि गांधी और सावरकर एकसाथ नहीं रह सकते। धर्म की राजनीति में एक के लिए दूसरे को हटाना ज़रूरी है।
 
यह काम सरकारों की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहमति और सक्रिय भागीदारी के बिना नहीं हो सकता। निश्चित ही ऐसी किसी सहमति या भागीदारी की 30 जनवरी 1948 और 26 मई 2014 की अवधि के बीच कल्पना नहीं की जा सकती थी। दोनों ही तारीख़ों का भारत की आत्मा के साथ गहरा संबंध स्थापित हो गया है। इतिहास के विद्यार्थी भारत के दूसरे विभाजन की तारीख़ आसानी से तलाश सकते हैं!
 
'गांधी स्मृति' नई दिल्ली के 30 जनवरी मार्ग पर स्थित वह स्थल है, जो किसी समय 'बिड़ला हाउस' के नाम से जाना जाता था। गांधीजी की नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारकर की गई हत्या के बाद इस स्थान का अंतरराष्ट्रीय पता बदल गया। गांधीजी ने सेवाग्राम (वर्धा) आश्रम से बाहर अपने जीवन के अंतिम 144 दिन इसी स्थान पर बिताए थे। 'गांधी दर्शन' बापू की हत्या के बाद की गई अंत्येष्टि के स्थल 'राजघाट समाधि' से लगा हुआ वह विशाल परिसर है, जहां गांधीजी के जीवन से संबंधित चित्रों की प्रदर्शनी, डोम थिएटर और राष्ट्रीय स्वच्छता संग्रहालय है।
 
'गांधी स्मृति' और 'गांधी दर्शन' दोनों का ही कामकाज केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन एक समिति देखती है। प्रधानमंत्री इस समिति के अध्यक्ष होते हैं। बापू समाधि का कामकाज आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के अधीन राजघाट समाधि समिति देखती है। 'गांधी स्मृति और दर्शन समिति' की ओर से 'अंतिम जन' नाम से एक पत्रिका प्रकाशित की जाती है। इसके संरक्षक पूर्व केंद्रीय खेल और युवा मंत्री और सांसद विजय गोयल हैं। प्रधानमंत्री द्वारा नामांकित गोयल 'गांधी स्मृति' और 'गांधी दर्शन' समिति के उपाध्यक्ष हैं और दोनों स्थानों के दैनंदिन का कामकाज देखते हैं।
 
'अंतिम जन' ने अपने जून 2022 के प्रकाशन को 'वीर सावरकर अंक' बनाते हुए स्वतंत्रता संग्राम में सावरकर के योगदान की चर्चा की थी और उन्हें महान देशभक्त निरूपित किया। विजय गोयल की ओर से अंक की प्रस्तावना में कहा गया कि 'यह देखकर दु:ख होता है कि जिन लोगों ने एक दिन जेल नहीं काटी, यातनाएं नहीं सहीं, देश समाज के लिए कुछ कार्य नहीं किया, वे सावरकर जैसे बलिदानी की आलोचना करते हैं जबकि सावरकर का इतिहास में स्थान व स्वतंत्रता आंदोलन में उनका सम्मान महात्मा गांधी से कम नहीं है।'
 
कोई भी सवाल नहीं करना चाहता कि गांधी के घर में ही बैठकर कुछ लोग इतनी हिम्मत के साथ उस व्यक्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करने का साहस कैसे कर सकते हैं जिसे राष्ट्रपिता की हत्या के बाद एक अभियुक्त मानते हुए एक विशेष अदालत में मुक़दमा चलाया गया था। अदालत द्वारा सावरकर को निर्दोष साबित कर दिए जाने के बाद नवंबर 1966 में गठित एक-सदस्यीय कपूर आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था- 'गांधी की हत्या का षड्यंत्र सावरकर और उनके अनुयायियों ने रचा था, इसी निष्कर्ष पर आना पड़ता है।' सावरकर का तब तक निधन हो चुका था।
 
दक्षिणपंथी बहुसंख्यकवाद को हथियारों से सज्जित करने की शर्त ही यही है कि अब गांधी द्वारा प्रतिपादित धार्मिक सहिष्णुता की भी हत्या करके उसे अल्पसंख्यक-विरोधी धार्मिक उन्माद में बदल दिया जाए। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए गांधी को वैचारिक रूप से ख़त्म किया जाना ज़रूरी है। हिन्दुत्व के कट्टरपंथी समर्थकों के लिए वह एक दुर्भाग्यपूर्ण क्षण रहा होगा कि गांधी को उनके शरीर के साथ ही विचार रूप में भी राजघाट पर जलाया नहीं जा सका। सावरकर-गोडसे के भक्तों का मानना हो सकता है कि उस अधूरे काम को पूरा करने के लिए वर्तमान से ज़्यादा उपयुक्त समय आगे नहीं आ सकेगा।
 
'अंतिम जन' शब्द का संबंध गांधी के सपनों के 'अंत्योदय' से रहा है। बापू की समाधि पर उनका कहा प्रसिद्ध वाक्य एक शिलापट्ट पर अंकित है। उस वाक्य में गांधी ने कहा है- 'मैं तुम्हें ताबीज़ देता हूं। जब भी दुविधा में हो या जब अपना स्वार्थ तुम पर हावी हो जाए इसका प्रयोग करो। उस सबसे दुर्बल व्यक्ति का चेहरा याद करो जिसे तुमने कभी देखा हो और अपने आपसे पूछो- 'जो कदम मैं उठाने जा रहा हूं, वह क्या उस गरीब के कोई काम आएगा? क्या उसे इस कदम से कोई लाभ होगा? क्या इससे उसे अपने जीवन और अपनी नियति पर कोई क़ाबू फिर मिलेगा? दूसरे शब्दों में, क्या यह कदम लाखों भूखों और आध्यात्मिक दरिद्रों को स्वराज देगा? तुम पाओगे कि तुम्हारी सारी शंकाएं और स्वार्थ पिघलकर ख़त्म हो गए हैं।'
 
राजनीति के सांप्रदायीकरण ने गांधी के 'अंतिम जन' की पहचान उसकी दुर्बलता के स्थान पर उसके धर्म को बना दिया है। अल्पसंख्यक-विरोधी सांप्रदायिक विभाजन आज विकास का मंत्र बन गया है। इसे कोई बौद्धिक संयोग नहीं माना जा सकता कि गांधी के दर्शन और विचारों के प्रसार के लिए बनी समिति द्वारा राष्ट्रपिता के बजाय सावरकर पर विशेष सामग्री प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया। आरोप अगर सही हैं तो 'गांधी दर्शन' परिसर में संघ से जुड़े पदाधिकारियों की बैठकें भी हो चुकी हैं।
 
'अंतिम जन' के सावरकर विशेषांक को गांधी द्वारा स्थापित आश्रमों (साबरमती और सेवाग्राम) के आधुनिकीकरण के साथ भी जोड़कर देखा जा सकता है। देशव्यापी विरोधों के बावजूद गांधीजी द्वारा 1917 में स्थापित साबरमती आश्रम को केंद्र और गुजरात सरकारों द्वारा 1,200 करोड़ रुपए की लागत से एक अत्याधुनिक 'गांधी थीम पार्क' में बदलने पर काम चल रहा है। आश्रम के रहवासियों ने भी मोटी धनराशि स्वीकार कर साबरमती परिसर को ख़ाली कर दिया है। इसी प्रकार गांधीजी द्वारा 1936 में स्थापित सेवाग्राम आश्रम के लिए भी 250 करोड़ की योजना पर काम चल रहा है। बापू के वंशजों के विरोध के वावजूद वर्धा से सेवाग्राम जाने वाली सड़क के दोनों ओर लगे कई पेड़ों को गिरा दिया गया।
 
संघ के मुख्यालय वाले शहर नागपुर से सेवाग्राम की दूरी (63 किलोमीटर) सिर्फ़ घंटेभर की और साबरमती आश्रम से गुजरात सरकार की सीट गांधीनगर के बीच दूरी मात्र आधे घंटे की है। आने वाले दिनों में यह दूरी भी मिट जाएगी। सवाल अब गांधी की मूर्तियों और आश्रमों को बचानेभर का नहीं बचा है, राष्ट्रपिता को तो देश की जड़ों और संस्कारों से ही समाप्त किया जा रहा है।
 
'अंतिम जन' का सावरकर विशेषांक गांधी की लगातार की जा रही हत्या के उपक्रमों में ही एक और प्रयास माना जा सकता है। हम प्रतीक्षा कर सकते हैं कि आने वाले समय में 'अंतिम जन' का कोई अंक नाथूराम गोडसे को समर्पित भी हो सकता है!
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

तेज़ी से फैल रहा यह फ्लू! खुद को और अपने बच्चों को बचाने के लिए तुरंत अपनाएं ये 5 उपाय

पश्चिमी जगत शाकाहारी बन रहा है और भारत मांसाहारी, भारत में अब कितने बचे शाकाहारी

आप करोड़पति कैसे बन सकते हैं?

Leh Ladakh Protest: कैसे काम करता है सोनम वांगचुक का आइस स्तूप प्रोजेक्ट जिसने किया लद्दाख के जल संकट का समाधान

दुनिया के ये देश भारतीयों को देते हैं सबसे ज्यादा सैलरी, अमेरिका नहीं है No.1 फिर भी क्यों है भारतीयों की पसंद

सभी देखें

नवीनतम

कौन हैं हंगरी के लेखक, जिन्हें मिल रहा है साहित्य का नोबेल

Karva Chauth 2025: रिश्ते में उतर आएगी चांदनी की चमक, करवा चौथ पर शेअर करें ये प्यार भरी शुभकामनाएं

Diwali Recipe: स्वाद भरी दिवाली, घर पर बनाएं टेस्टी Khasta Gujiya मिठाई

Diwali Special Namkeen: दीपावली के स्वाद: पोहा चिवड़ा खट्टा-मीठा नमकीन, जानें कैसे बनाएं Poha Chivda

Diwali Sweets: घर पर बनाएं ये खास पारंपरिक दीपावली मिठाई, पढ़ें आसान रेसिपी

अगला लेख