मून लाइट में काम करते ‘मूनलाइटर्स’

स्वरांगी साने
वे कोचिंग सेंटर में शिक्षिकाएँ हैं और साथ ही विभिन्न स्वर्ण आभूषणकारों के गहनों के लिए मॉडलिंग भी करती हैं। चूँकि वे कोचिंग सेंटर में पूर्णकालिक नौकरी पर नहीं हैं और संस्थान के साथ किसी तरह का अनुबंध न होने से उन्हें कुछ और करने में कोई दिक्कत नहीं है। उनके साथ की ही एक शिक्षिका किसी और इंस्टीट्यूट में भी पढ़ाती है और दोनों संस्थानों को पता है कि वे दोनों जगह पढ़ाती हैं। हालाँकि किसी अस्पताल में पूर्णकालिक चिकित्सा सेवा देने वाले चिकित्सकों का अपना निजी दवाखाना पहले भी होता था और वे अस्पताल के मरीज़ों को अपने दवाखाने में खींचते थे ताकि उन्हें पूरा मुनाफ़ा हो। मरीज़ भी बड़े अस्पतालों के महँगे खर्चे के बजाय कुछ कम पैसों में इलाज हो जाने की उम्मीद में डॉक्टरों के क्लिनिक में जाना पसंद करते रहे हैं।
 
पहले एक टर्म, पारिभाषिक शब्द कह लीजिए, बहुत चलन में था, फ्रीलांस...फ्रीलांस करने वाले एक साथ दो-तीन नियोक्ताओं के लिए काम करते थे और किसी के यहाँ पूर्णकालिक नहीं होते थे। लिखने-पढ़ने वाले या कलाकार बिरादरी के लोग अधिकतर इस तरह कई काम किया करते थे। अब एक बीच का और रास्ता निकला है-‘मूनलाइट’।

‘मूनलाइटर’ वे हैं जो किसी एक संस्थान में पूर्णकालिक नौकरी करते हैं और उसके साथ कुछ और काम करना भी पसंद करते हैं। पहले यह छूट उनके लिए थी जो दूसरी जगह से कुछ कमाते नहीं थे। जैसे आप कहीं नौकरी कर रहे हैं और कहीं और कुछ लिख रहे हैं, भाषण देने जा रहे हैं या नाटक आदि में काम कर रहे हैं शौकिया तौर पर। अब वे लोग जो नौकरी के साथ अपने शौक का काम करते हुए उससे कुछ कमाते भी हैं उन्हें मूनलाइटर कहा जाता है। इसमें मॉडलिंग, यू-ट्यूब चैनल बनाना, संगीत देना, अनुवाद का कार्य करना, कंटेंट राइटिंग जैसे कई विविध क्षेत्र शामिल हैं। पहले कोई दूसरा काम करता था तो अपनी पत्नी के नाम पर, बच्चों के नाम पर करता था लेकिन अब कागज़-पत्रों पर भी वह अपने नाम के साथ है।
 
मूनलाइटर्स का कहना है वे लगभग नौ घंटे की अपनी नौकरी सँभालकर दूसरा कुछ काम करते हैं, तो किसी को कोई दिक्कत क्यों हो? संस्थान संचालकों को भी वैसे कोई आपत्ति नहीं है उनका कहना है यदि संस्थान की कोई जानकारी वे बाहर साझा नहीं कर रहे या बिल्कुल ही अलग कुछ काम कर रहे हैं तो कोई बात नहीं है। जैसे कोई किसी फ़र्म में इंजीनियर है और साथ में जीवन बीमा की पॉलिसी भी बेचता हो। हमारे यहाँ कानूनन भी कोई प्रावधान नहीं है जो इसे सही या ग़लत ठहराता हो। यह संस्था और व्यक्ति सापेक्ष बात है।

अब बात करते हैं सेहत के लिहाज़ से। इसे लेकर भी दो मत हैं। मूनलाइटर्स कहते हैं उनका शौक उन्हें इतने पैसे नहीं दिलवा सकता जिससे जीवन निर्वाह हो सके इसलिए उन्हें अच्छे वेतन के पूर्णकालिक व्यवसाय-नौकरी की नितांत आवश्यकता है ताकि घर चलता रहे। नौकरी के बाद अपनी पसंद का काम करने से उन्हें उत्साह मिलता है, अगले दिन फिर ढर्रे पर लौटने का। इसका दूसरा पक्ष यह है कि पूरे दिन नौकरी में घिस जाने के बाद जो समय उन्हें शरीर को आराम देने में बिताना चाहिए, उसमें वे और काम करते हैं, रतजगे करते हैं जिससे ऐसिडिटी, कब्ज जैसी परेशानियों का अंदेशा रहता है। 
 
वर्क फ़्रॉम होम की बढ़ती संस्कृति से भी उन्हें उतना समय मिल पाता है जो पहले ट्रेवलिंग में ज़ाया हो जाता था। वे मूनलाइटर्स हैं, यह शब्द ही इसलिए ईज़ाद हुआ कि वे मून लाइट में काम करते हैं, चाँद की रोशनी में यानी देर रात काम करते हैं और दूसरे दिन फिर अपने पहले वाले काम पर पहुँच जाते हैं मतलब अपने निजी लैपटॉप-कंप्यूटर से फिर कंपनी के कंप्यूटर से ‘लॉग इन’ कर नौकरी पर हाज़िरी देते हैं।  

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