पंद्रह दिन के आतिथ्य के पश्चात
आज पुरखों की विदाई का दिन है..
कि वे इन पंद्रह दिनों हमारे संग रहे
ये बात ही कितनी सुखद है..
आदतन उन्होंने अपनी संतति को खूब आशीर्वाद दिए होंगे
वे उन्हें अभी भी याद करते हैं
उनकी आवभगत करते हैं
ये जान कर तृप्त हुए होंगे
कि उन्हीं के पुण्य फलों के प्रताप से ही
उनकी संतति स्वस्थ एवं प्रतिभाओं से सम्पन्न है..
और पाप..
विश्वास नहीं होता उनसे कोई पाप हुआ होगा
हर अन्याय के विरुद्ध खड़े थे वे
समस्याओं से अपने दम पर लड़े थे वे..
परंतु सुनो हमारे पित्रों
कि तुम्हारे किये और नहीं किये अन्यायों का प्रायश्चित
आज तुम्हारी संतति कर रही है
आरक्षण की छलनी में छन कर
आरक्षण की जंजीरो में बंध कर
आरक्षण की परिधि में कस कर..
कि योग्य होते हुए भी उनके लिए शिक्षण संस्थाओं में जगह नहीं है
होनहार होते हुए भी उनके लिए नौकरियां नही हैं
काबिल होते हुए भी उन्हें पदोन्नति नहीं..
कि पिछले सत्तर वर्षों से
ये पीढ़ियाँ अपने वंशजों की अपरिभाषित भूलों का कर्ज उतार रहीं
और आने वाले सैंकड़ों वर्षों तक
जारी रहेगा यही कर्ज़ उतारने का क्रम..
कि इस सिलसिलेवार कर्ज़ उतारने की कोई मियाद नहीं
कोई राह नहीं
कोई विद्रोह नहीं..
विवश तुम्हारी वंश बेल
असहाय और अपमानित हैं..
परंतु दुख सिर्फ यही नहीं
दुःख ये भी है
कि अपनी प्रतिभाओं का अनादर कर
अपनी योग्यता को पीछे धकेल कर
देश की उन्नति भी संभव नहीं..
और योग्यता इस देश में नहीं तो परदेस में ही
खोज ही लेगी अपनी भूमि..
कि ज़िद्दोज़हद जारी है
इस ज़मीं पर अपना गौरव सिद्ध करना कठिन है
तुम इनके संघर्ष अनुभव करना
तुम्हारी ही भूमि पर तुम्हारे प्रतिबिंबों को अपनी प्रतिभा अनुसार अवसर मिले
ये प्रार्थना करना
तुम्हारी ही भूमि पर वे फलें फूलें
अपना ये आशीर्वाद सतत बनाये रखना..