आम आदमी का नाम लेकर सरकार को ललकारना बंद करो

डॉ. नीलम महेंद्र
मैं एक आम आदमी हूं और काफी समय से देश में जो चल रहा है उसे समझने की कोशिश कर रहा हूं। सरकार द्वारा कालाधन और भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए 1,000 और 500 के नोट बंद करने के फैसले से मुझे भ्रष्टाचार और कालेधन से मुक्ति की उम्मीद की किरण दिखने लगी थी तो वे कौन लोग हैं, जो सरकार का विरोध मेरे नाम यानी 'आम आदमी' के नाम पर कर रहे हैं? 
मेरा नाम लेकर विरोध करने का अधिकार इन बुद्धिजीवियों को किसने दिया? क्या मैं अपनी बात खुद नहीं कर सकता? मुझे इतना कमजोर यह लोग कैसे समझ सकते हैं कि मैं अपनी लड़ाई नहीं लड़ सकता? आम आदमी का नाम लेकर सरकार को ललकारना बंद करो। मेरा नाम लेकर प्रधानमंत्रीजी को घेरना बंद करो।
 
शब्दों की परिभाषा बदलकर वाक्यों के खूब मायाजाल रचे हैं आपने, लेकिन कम से कम आम आदमी को तो बख्श दो। देश का आम आदमी अगर गांव में रहता है और वो किसान है तथा उसकी कमाई पर कोई टैक्स नहीं है तो उसे तो कोई परेशानी भी नहीं है। देश का आम आदमी अगर मजदूर है तो उसे भी सरकार के इस निर्णय से कोई परेशानी नहीं है। 
 
इस देश का आम आदमी अगर चाय की या पान की या फिर ऐसी ही कोई छोटी दुकान चलाकर अपना और अपने परिवार का गुजारा करता है तो परेशानी उसे भी नहीं है, क्योंकि न तो उसके पास कोई कालाधन होगा और न हो कोई इन्हें चाय या पान के बदले 1,000 या 500 के नोट देता होगा। 
 
इस देश का आम आदमी अगर कहीं किसी दुकान पर कोई छोटी-मोटी नौकरी करके अपना और परिवार का पेट पालता है तो वह भी सरकार के इस निर्णय में सरकार के साथ है। अगर इस देश का आम आदमी शिक्षक है या ट्यूशन करके अपना जीवन-यापन कर रहा है तो वह भी प्रधानमंत्रीजी के साथ है।
 
तो फिर वे कौन लोग हैं, जो इसी आम आदमी का नाम लेकर देश को गुमराह करने में लगे हैं? आज जो लोग बैंकों में लगने वाली लंबी-लंबी कतारों की बात कर रहे हैं और आम आदमी को होने वाली परेशानी की दुहाई दे रहे हैं, उनसे कुछ सवाल हैं जिनके उत्तर यह आम आदमी आज चाहता है। 
 
मंगलवार 8 नवंबर 2016 की रात 8 बजे जब प्रधानमंत्रीजी ने 1,000 और 500 के नोट बंद करने की घोषणा की तो देश का हर आम आदमी खुश था। तो वे लोग कौन थे, जो कि रात 9 बजे से सुबह भोर तक देश के सराफा बाजारों में खरीदारी कर रहे थे? उनमें मैं तो नहीं था? अगले ही दिन 10 तारीख को इस देश का आम आदमी बैंक से नोट बदलवाने गया था तो स्थिति सामान्य थी फिर अचानक बैंकों में भीड़ 2 दिन बाद कैसे होने लगी जबकि सरकार ने 30 दिसंबर तक का समय दिया है?
 
ग्रामीण क्षेत्रों में निकासी और जमा करने की पाबंदी शून्य होने के बावजूद लाइनें क्यों लग रही हैं? स्कूली विद्यार्थी जिनके खातों में साल में सिर्फ एक बार छात्रवृत्ति के पैसे आते हैं उनके खातों में अचानक 49,000 हजार रुपए कहां से आ गए? जन-धन खाते जो अभी तक खाली थे, उनमें अचानक 9 नवंबर के बाद पैसे क्या आम आदमी ने जमा किए हैं?
 
अपने नौकरों के खातों में उन्हें 60,000 का लालच देकर 2 लाख जमा कराके उनसे 1.40 लाख वापस लेने का काम आम आदमी कर रहा है? सरकार ने महिलाओं के खाते में 2.5 लाख तक की छूट दी है तो अचानक ही कई बूढ़ी मां अमीर हो गईं, क्या ये किसी आम आदमी की मां है? 11 ता. के बाद बैंकों की लाइन अचानक ही लंबी होती गई तो क्या उस लाइन में आपको कोई भी बड़ा आदमी खड़ा दिखा? नहीं ना?
 
जो सवाल आप पूछ रहे हैं आम आदमी भी आपसे वही सवाल पूछ रहा है। फर्क बस यह है कि आम आदमी सवाल पूछ रहा है, क्योंकि वह आपसे जानना चाहता है कि लंबी कतारें और लंबा इंतजार उसी के नसीब में क्यों लिखा है और आप सवाल पूछ रहे हैं अपने आपको बचाने के लिए? 
 
क्या आपने सोचा है कि गरीब युवक एवं गरीब महिलाएं अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ लाइन में क्या कर रहे? ये वो गरीब और बेरोजगार आम आदमी हैं जिसका आज फिर उपयोग हो रहा है, कमीशन बेसिस पर ये बार-बार लाइन में लगकर कुछ 'खास' लोगों के नोट बदल रहे हैं। ये खास लोग ही उन्हें लाइन में खड़ा करा रहे हैं, कतारें लंबी करवा रहे हैं और फिर ये ही लोग सवाल भी पूछ रहे हैं। 
 
रेलवे के टिकटें बुक कराकर रिफंड क्या आम आदमी मांग रहा है? बाजार में जो कमीशन लेकर नोट बदले जा रहे हैं, क्या वे आम आदमी के हैं? अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि सरकार के इस निर्णय से परेशानी किसे है? हां, यह बात सही है कि इस समय शादियों के कारण कुछ असुविधा उन्हें जरूर हो रही है जिनके यहां विवाह के मुहूर्त हैं लेकिन देश-निर्माण में वे लोग भी अपना सहयोग बेहद सहनशीलता के साथ कर रहे हैं।
 
अगर हम भारत में कालेधन की बात करें तो नेताओं और बड़े-बड़े कॉर्पोरेट घरानों के इतर एक तो वह धन हैं, जो टैक्स चोरी करके बचाया जाता है और एक वह जो रिश्वत के रूप में नौकरशाहों द्वारा लिया जाता है। आम आदमी तो भ्रष्टाचार के इस चक्रव्यूह का खुद शिकार है। भ्रष्टाचार भारत में बहुत ही गहराई तक अपनी जड़ें फैला चुका था। आज सरकारी कर्मचारी जनता के टैक्स के पैसे से सरकार से अपनी तनख्वाह ले रहा था तो आम आदमी से उसकी फाइल आगे खिसकाने के लिए भी उसी से पैसे ले रहा था। यह आम आदमी दोहरी मार खा रहा था, टैक्स भी दे रहा था और रिश्वत भी। 
 
जिस देश के लोगों को सालों से कालेधन की लत लगी है वो सरकार के 1,000 और 500 के नोट बंद करने के फैसले का तोड़ निकालने में दिन-रात जुटे हैं। कोई सोने में तो कोई जमीन- जायदाद के रूप में अपना धन बचाने की सोच रहा है। तो निश्चित ही सरकार का यह एक कदम अपने आप में तब तक अधूरा एवं भ्रष्टाचार रोकने में अकारगर ही सिद्ध होगा, जब तक कि अन्य उपाय कठोरता से नहीं किए जाएं। 
 
एक नए कैशलेस भ्रष्टाचारमुक्त भारत का निर्माण करने के लिए 'आम आदमी' नि:संदेह पूर्ण रूप से सरकार के साथ है और जो लोग देश को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं उनके लिए एक संदेश कि भ्रष्टाचार से इस लड़ाई में जीत इस बार आम आदमी की ही होगी। 
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