Biodata Maker

बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे, या यह केवल एक किताबी आदर्श है आपके लिए?

गरिमा संजय दुबे
आज 'The Kashmir Files' देखी जाएगी। और हां, सच से इतना डरते क्यों हैं आप? जिस सच के ज़िंदा ताबूत पिछले 30 सालों से दिल्ली के किसी कोने में सांस ले रहे हैं, उनसे कभी उनका हाल पूछा आपने? शाहीन बाग, किसान आंदोलन की शान बनने वालों में से कितनों ने कश्मीरी पंडितों की बात कही सुनी।राजनीतिक, साहित्यिक मजबूरियां रहीं होंगी आपकी, मेरी ऐसी कोई मजबूरी नहीं है।

गलती अलगाववादियों की नहीं, वो तो उनके मिशन पर थे। गलती उनको शह देने वाले, उनको गले लगाने वाले और कश्मीरी पंडितों को 30 वर्ष तक असहाय व बेबस छोड़ देने वाले लोगों की है। वे भी जो अपनी पसंद का विमर्श गढ़ते रहे हैं।

यह विमर्श परिवर्तन का युग है। आपको मुबारक आपकी पक्षपाती सोच, जिसे आप निष्पक्षता की बेशर्म आड़ लेकर सींचते हैं। आपको मुबारक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का वह भ्रम, जिसमें केवल आपके बोलने और आपके कहे को सच मानने की बाध्यता हो। आपको मुबारक विलासी लेखन, जो ज़मीन की सच्चाई से कोसों दूर है।

आपको मुबारक प्रायोजित मंच, चर्चा, समीक्षा और पुरस्कार, यदि लेखक ही इतना पक्षपाती हो तो लेखक होने का क्या अर्थ? इतना भय लेखक में कि ऐसा लिखा तो कहीं वो नाराज़ न हो जाए, कहीं मेरा लिखा न छापा तो, कहीं मंच, पुरस्कार न निकल जाए हाथ से, जो सच लिख दिया तो।

इतना भयभीत लेखक समाज को क्या दिशा देगा? लेखन में यदि मुझे मेरे देखे सच को, मेरे विचार को लिखने की स्वतंत्रता नहीं है तो लेखक कहलाने का क्या अर्थ?

और यह भ्रम निकाल दीजिए कि आप किसी को बना या मिटा सकते हैं। आप ही नहीं हैं इस दुनिया में, और भी बहुत हैं, जो सच लिखने व उसे प्रसारित करने का साहस भी रखते हैं और अच्छी नीयत भी।

और कोई क्यों बनाए किसी को? क्या एक लेखक स्वयं अपने आपको नहीं बना सकता? आप हैं तो निश्चित ही कुछ और लोग भी तो होंगे ही, जो पक्षपाती नहीं होंगे, बिकाऊ नहीं होंगे, कम होंगे, लेकिन होंगे जरूर।

मेरी विचारधारा सच के साथ थी और रहेगी, अन्याय के विरुद्ध थी और रहेगी, इसे आप जो नाम देना चाहें। हां, अन्याय के विरुद्ध जब बोलूंगी तो धर्म और जाति को लेकर पक्षपाती न कभी थी, न रहूंगी। लेकिन हां, प्रोपेगेंडा, विक्टिम कार्ड खेलने की प्रवृत्ति, तुष्टिकरण से विरोध था और रहेगा। राष्ट्रहित सर्वोपरि था, रहेगा। मनुष्यता, सहिष्णुता सदा थी, रहेगी।

'उनका जो फ़र्ज़ है वो अहल ए सियासत जाने/
मेरा पैग़ाम सच्चाई है, जहां तक पहुंचे।'

ज़िगर मुरादाबादी साहब से क्षमा के साथ

(आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया से इसका कोई संबंध नहीं है।)

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

मजबूत और लंबे बालों के लिए 5 बेस्ट विटामिन जो करेंगे कमाल, जानिए हर एक के फायदे

Hair Care: बालों और स्कैल्प के लिए कॉफी कितनी फायदेमंद है? जानें पूरे फायदे और नुकसान

T Point House Vastu Tips: टी’ पॉइंट वाला घर लेना शुभ या अशुभ, जानें बर्बाद होंगे या आबाद

स्प्राउट्स खाने के बाद नहीं लगेगा भारीपन, जानिए अंकुरित अनाज खाने का सही तरीका

ठंड में रोज यदि 10 बादाम खाएं तो क्या होता है?

सभी देखें

नवीनतम

Guru Tegh Bahadur Shahidi Diwas: 2025 में गुरु तेग बहादुर शहीदी दिवस कब मनाया जाएगा?

Sixty Plus Life: 60 साल की उम्र में BP बढ़ने पर हृदय रोग, स्ट्रोक और किडनी का खतरा सबसे ज्यादा, जानें कैसे बचें?

इंदिरा गांधी का जन्म कहां हुआ था और जानिए उनके बचपन की 5 खास बातें

Rani Lakshmi Bai : रानी लक्ष्मी बाई के जन्म और मृत्यु का रहस्य क्या है?

Winter Recpe: सर्दियों में रहना है हेल्दी तो बनाएं ओट्स और मखाने की स्वादिष्ट चिक्की, मिलेंगे कई सेहत फायदे

अगला लेख