5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस है। इस दिन कई देशों में कई सम्मलेन होते हैं, कई बातें होती हैं... फिर भी आज वृक्षों का कटना कम नहीं हुआ, न ही विषैले धुएं उगलती फैक्टरियां कम हुई हैं। अपितु इनमें इजाफा ही देखा जा रहा है।
न जाने इंसान किस दिशा की ओर जा रहा है। उसे अब सिर्फ और सिर्फ आर्थिक लाभ ही नजर आ रहा है जो कि क्षणिक लाभ है। विनाश की कल्पना तक नहीं उसे। प्राकृतिक प्रकोप कितने हो रहे हैं...बिन मौसम ही बारिश का होना, सूखा पड़ना, ये सभी पर्यावरण का प्रभाव ही तो है। आने वाली पीढ़ियों के लिए हमें कुछ बचाना है, कुछ संजोना है न कि आने वाली पीढ़ी को बीमारी, दुर्दशा और विनाश की ओर अग्रसर होता जीवन देना है। इसलिए आज वृक्षों को बचाना है हमें। दूषित वायु से दूर रखना है, अपने-अपने शहर को।
अनेक सुविधाएं तो बना ली हैं हमने, पर दिन ब दिन मन की शांति और शरीर का स्वास्थ्य हमने खो दिया है। सात्विक जीवन की दिनचर्या लुप्त हो गई है और आधुनिकता ने वो स्थान ले लिया है। मैं यह नहीं कहती कि आधुनिकता बुरी है, पर विकास के साथ नुकसान न हो इस बात का ख्याल भी जरुरी है। इन्हीं विचारों से बनी यह एक छोटी-सी कविता -