बालिका दिवस : नजर उतारें इनकी....क्योंकि...

डॉ. छाया मंगल मिश्र
बालिका दिवस के साथ ही नजर भी उतार लें इनकी क्योंकि आप नहीं जानते कि ये शिकार हैं बुरी नजरों की। जनगणना आंकड़ों के अनुसार बाल लिंगानुपात 1991 के 945 से गिरकर 2001 में 927 हो गया और इसमें फिर 2011 में गिरावट आई और बाल लिंगानुपात 918 रह गया। यह महिलाओं के कमजोर होने का प्रमुख सूचक है, क्योंकि यह दिखाता है कि लिंग आधारित चयन के माध्यम से जन्म से पहले भी लड़कियों के साथ भेदभाव किया जाता है और जन्म के बाद भी भेदभाव का सिलसिला जारी रहता है। 
 
भारत में अगर लिंग अनुपात देखा जाए तो बेहद निराशाजनक है। 2011 में हुई जनगणना के हिसाब से भारत में 1000 पुरुषों पर 940 है। यह आंकड़े राष्ट्रीय स्तर पर औसतन हैं। अगर हम राजस्थान और हरियाणा जैसे स्थानों पर नजर मारें तो यहां हालात बेहद भयावह हैं। भारत में पुरुषों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। बाल दिवस- बालिका दिवस मनाने वाले भारत में हर साल तीन से सात लाख कन्या भ्रूण नष्ट कर दिए जाते हैं। इसलिए यहां महिलाओं से पुरुषों की संख्या 5 करोड़ ज्यादा है। पिछले 50 सालों में बाल लिंगानुपात में 63 पॉइंट की गिरावट दर्ज की गई है। वर्ष 2001 की जनगणना में जहां छह वर्ष तक की उम्र के बच्चों में प्रति एक हजार बालक पर बालिकाओं की संख्या 927 थी लेकिन 2011 की जनगणना में यह घटकर कर 918 हो गया है। 
 
क्यों मनाया जाता है बालिका दिवस?

देश में 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की शुरुआत 2009 से की गई। सरकार ने इसके लिए 24 जनवरी का दिन चुना क्योंकि यही वह दिन था जब 1966 में इंदिरा गांधी ने भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। लेकिन अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस 11 अक्टूबर को मनाया जाता है....


बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और अत्याधिक चिंता का विषय है कि देश में वर्ष 1961 से ही बाल लिंगानुपात तेजी से गिरता रहा है। हम वर्ष 2019 में हैं और 21वीं शताब्दी के दूसरे दशक को पूरा करने जा रहे हैं, लेकिन हम विचारधारा को बदलने में सफल नहीं हुए हैं। भारतीय समाज में सभी वर्गों के लोग बेटा होने की इच्छा रखते हैं और नहीं चाहते कि उन्हें बेटी हो।
 
हमारे देश में कन्या भ्रूण हत्या की वजह से लड़कियों के अनुपात में काफी कमी आई है।पूरे देश में लिंगानुपात 940 : 1000 है. एशिया महाद्वीप में भारत की महिला साक्षरता दर सबसे कम है। एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में 6 से 14 साल तक की ज्यादातर लड़कियों को हर दिन औसतन 8 घंटे से भी ज्यादा समय केवल अपने घर के छोटे बच्चों को संभालने में बिताना पड़ता है। इसी तरह, सरकारी आंकड़ों में दर्शाया गया है कि 6 से 10 साल की जहां 25 प्रतिशत लड़कियों को व 10 से 13 साल की 50 प्रतिशत से भी ज्यादा लड़कियों को स्कूल छोड़ना पड़ता है। एक सरकारी सर्वेक्षण में 42 प्रतिशत लड़कियों ने यह बताया कि वे स्कूल इसलिए छोड़ देती हैं, क्योंकि उनके माता-पिता उन्हें घर संभालने और अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल करने को कहते हैं।
 
आज भी समाज में कई घर ऐसे हैं, जहां बेटियों को बेटों की तरह अच्छा खाना और अच्छी शिक्षा नहीं दी जा रही है। भारत में 20 से 24 साल की शादीशुदा औरतों में से 44.5 प्रतिशत औरतें ऐसी हैं, जिनकी शादियां 18 साल के पहले हुईं हैं। इन 20 से 24 साल की शादीशुदा औरतों में से 22 प्रतिशत औरतें ऐसी हैं, जो 18 साल के पहले मां बनी हैं। इन कम उम्र की लड़कियों से 73 प्रतिशत बच्चे पैदा हुए हैं. इन बच्चों में 67 प्रतिशत कुपोषण के शिकार हैं। और हम बालिका दिवस मनाए जा रहे हैं।
 
नजरा गईं हैं बेटियां, नजर उतारें इनकी कैसे भी...कैसी भी. हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ करें, हनुमानजी के पांव का सिंदूर लगाएं ताकि रक्षा करें वो सीता मैय्या की बेटियों की, फिटकरी और सरसों को फुलाएं, ताकि दुश्मनों के हाथ पैर फुल जाएं जो इन पर बदनियत रखते हैं, लहसुन, राई, नमक, प्याज़ के छिलके एवं सूखी लाल मिर्च इन सबको, राई के कुछ दाने, नमक की सात डली और सात साबुत लाल सूखी मिर्च, एक तांबे के लोटे में पानी और ताजे फूल के साथ जलाएं या पानी में बहाएं ताकि सारी अलाएं-बलाएं जलें-बहें, दूर चली जाएं इन मासूमों से और ये जी पाएं अपनी जिंदगी बहते निर्मल झरने की तरह, मदमस्त संगीत पर झूमते। या फिर ‘ओम रां राहवे नमः’ राहु ग्रह का यह मंत्र जपिए राहु से ग्रसित हैं हमारे देश की राजकुमारी बेटियां, नींबू वार कर उसके चार टुकड़े करके किसी सुनसान स्थान पर या चौराहे पर फेंक दें ताकि राह चुन सकें वे भी अपनी मर्जी से जीने की, देश की बेटियां जिनकी कोख में पलता है देश का भविष्य।

मैं अन्धविश्वास को बढ़ावा देने के लिए नहीं कहती।आपका स्वयं भी विवेक है। इसे आप हालातों पर उपजा मेरा व्यंग्य भी मान सकते हैं, या लाचारी की आस्था भी। इनके साथ जो भीकुछ हो रहा है वो मात्र बालिका दिवस मनाने से हल न होने का। सरकारी कार्यक्रमों के बावजूद यदि हम हालातों पर काबू नहीं पा रहे तो आस्था पर ही विश्वास जमा लें शायद इससे कुछ हल निकले...

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