बात इतनी बड़ी थी ही नहीं जितनी बड़ी बना दी गई...आप कुछ भी पहनिए किसी ने कभी रोका है क्या ..बुरखा पहनिए, हिजाब पहनिए, फटी जीन्स पहनिए और कहीं भी घूमिए ..रोड पर मॉल में बगीचे में बाज़ार में..
पर स्कूल का अपना अनुशासन होता है.. उनकी यूनिफॉर्म होती है जिसे यूनिफॉर्म कहा ही इसलिए जाता है कि सब एक जैसे दिखें ..
उन दिनों तो यूनिफॉर्म दिखने के लिए हम सभी को शर्ट और स्कर्ट के संग दो चोटी बांधना भी अनिवार्य होता था वो भी लाल रिबन के संग..न हाथ में चूड़ी न माथे पे बिंदी न गले में काला डोरा..सब एक जैसे दिखते न अमीर न गरीब.. न हिन्दू न मुसलमान.. मासूमियत बनी रहती..भोलापन बरकरार रहता..
अब स्कूल आना है तो यूनिफॉर्म में तो रहना होगा वरना क्लास के बाहर रहो वो भी शर्मिंदगी में..
तो बच्चियों स्कूल आओ तो यूनिफॉर्म दिखो ..इतनी जल्दी भी क्या है धर्म का लबादा ओढ़ने की..सारी उम्र तो ओढ़ना है उसे.. स्कूल के नियम और अनुशासन का पालन करो..
नहीं तो वहाँ पढ़ो जहाँ ऐसी बंदिश न हो..सीधी सी तो बात है..