कर्फ्यू में इंदौर की जनता : नियम तोड़ने वाले जिम्मेदार हैं मगर....क्या 'सिर्फ' वे ही जिम्मेदार हैं?

स्मृति आदित्य
अब तो खैर 21 दिन सबको ही बंद रहना है लेकिन 22 मार्च को कर्फ्यू में इंदौर की जनता ने जब अनुशासन तोड़ा तो सारे लोग उन्हें गरियाने में लग गए। यह स्वाभाविक भी था लेकिन शहर ही नहीं पूरी दुनिया से जो लानत मलामत झेल रहे हैं क्या वाकई वे ही पूरी गड़बड़ के जिम्मेदार हैं। 
 
जनता कर्फ्यू के बाद जो लोग राजबाड़ा पहुंच गए थे उन पर सख्त से सख्त कार्रवाई हुई, गाड़ियों की पहचान हुई। 
 
लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन निरस्त किए गए। अखबारों ने उनके इंटरव्यू ले लेकर उन्हें शर्मसार किया लेकिन किसी की हिम्मत नहीं कि इस घटना के बाकी जिम्मेदारों से भी दो चार सवाल कर लें। 
 
निगम की पच्चीसों गाड़ियां वहां पहले ही जमा थीं, क्यों? जितनी गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन मिले हैं वो सभी पांच से पंद्रह किलोमीटर दूरी तक की गाड़ियां हैं, यानी इतनी दूरी तय करने के दौरान उन्हें कहीं रोकटोक या पूछताछ का सामना ही नहीं करना पड़ा, कोई बताएगा ये जिम्मेदारी किसकी थी? 
 
जिन लोगों के पास शहर की रहनुमाई है क्या उन्हें इस शहर की तासीर नहीं पता कि तीस लाख में से चंद लोग तो उत्साह में राजबाड़ा पहुंच ही सकते हैं, तो फिर इंतजाम क्यों नहीं थे? 
 
माना कि लोगों को अपनी समझदारी दिखाते हुए घर के अंदर ही रहना था लेकिन यदि यूं ही सबकुछ लोगों की समझ पर छोड़ा जा सकता है तो फिर इतनी बड़ी व्यवस्थाओं पर इतने बड़े खर्च करने की जरुरत ही क्या है? इतने दिनों बाद भी सोशल मीडिया पर जिस तरह इन लोगों को बुरे से बुरे शब्दों से अपमानित किया जा रहा है लेकिन कोई यह बताने वाला नहीं है कि इन्हें समझाने का जिम्मा किसका था, समझाने पर भी नहीं रुकते तो सख्ती का जिम्मा किसका था और सख्ती के बाद भी नहीं मानते तो तुरंत कार्रवाई का जिम्मा किसका था? 
 
मसला इन लोगों की हिमायत का नहीं है बल्कि जिम्मेदारी का है। माना कि इन्हें अपनी जिम्मेदारी समझनी थी जो इन्होंने नहीं समझी। ये राजबाड़ा की तफरीह पर निकल पड़े यह भी इनकी गलती थी लेकिन अब तो दूसरे पहलू से भी समस्या को समझिए। यदि सारे अखबार और सोशल मीडिया लोगों को ही जिम्मेदार बताएगा तो वे और निश्चिंत हो जाएंगे जिन्हें इन लोगों के राजबाड़ा पहुंच जाने पर जवाब देना चाहिए।
 
 कोरोना जिस तरह की जिम्मेदारियां लेकर आ रहा है वहां बेहद जरुरी है कि हर जिम्मेदार से सवाल पूछने का हक हो और बराबरी से दोनों पक्षों से सवाल किए जाए। अगले 21 दिन का समय बेहद सतर्कता का है और इसमें यदि आप सिर्फ जनता को ही दोषी ठहराने की आदत पाल बैठे तो मुश्किल में पड़ जाएंगे। आप उन्हें उचित सजा भी दिलवाइए लेकिन साथ ही यह भी मानिए कि शहर की और शहर वालों की तासीर समझने में आपसे चूक हुई है। बेवकूफियां न होने देना भी तो किसी की जिम्मेदारी होगी न? फिर उनसे भी सवाल क्यों नहीं किए जा रहे हैं।

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