Life in the time of corona: ऐतिहासिक ‘जनता कर्फ्यू’ के 14 घंटे और हम...

डॉ. छाया मंगल मिश्र
आओ लौटा लाएं अपना बचपन कोरोना के बहाने। याद करें बीती अच्छी बातों को। खो जाएं सुनहरी यादों में। कोई भी... कैसी भी... जी लें जी भर कर। बिताएं अपना समय अपने बड़ों के साथ जो हमेशा आपका इंतजार करते हैं इस चिंता के साथ कि आप ठीक तो हैं? खाना खाया कि नहीं, आपकी जिंदगी में सब कुशल तो है।

और हम समय नहीं दे पाते उन्हें... देखते रह जाते हैं वे अपनी पनीली आंखों से आपको अपना बेकपैक झुंझलाकर पीठ पर टांग के ले जाते हुए इस उम्मीद से कि शायद लौटकर आने पर दो घड़ी पास आकर कहेगें-सुनेंगे आपस की बातें... बड़ा पुण्य मिलेगा...

आओ मस्ती करें उन नन्हों के साथ। खेलें रोटा-पानी, गुड्डे-गुडिया, सांप-सीढ़ी राजा मंत्री चोर सिपाही, अंग बंग चौक चंग, एकी-बेकी, मेरी घड़ी में कितना बजा, 1-10 तक की गिनती के अंदर से उलझ-सुलझ मकड़ाजाल का खेल जो कॉपी में खेला करते थे... अपने स्कूली जीवन के किस्से... सिखाएं उन्हें जीने की सामाजिक ऊंच नीच, जिंदगी के उतार-चढ़ाव। सिखा दें उन्हें कि हार जीत जीवन का एक अनिवार्य अंग है।

खेलें अन्ताक्षरी अपने जीवन साथी और घर के अन्य सदस्यों के साथ बताएं उन्हें अपनी दिल की भावनाएं रोमांटिक अंदाज से और प्यार भरी भावनाओं के स्नेहसागर में छोड़ दो प्रेम की रंग बिरंगी किश्तियों की स्वर लहरियां... भले ही बेसुरी हों... प्यार में पगी हुईं ये अभिव्यक्तियां शहद से भी मीठी लगेंगी। दे जाएंगी उन्हें तरो-ताजगी और जीने का नया अहसास कि वो महत्वपूर्ण हैं आपके लिए अपने परिवार के लिए।

पढ़ें-पढ़ाएं वो किताबें जो आपको हमेशा कुछ सिखाने आतुर रहतीं हैं.. आप उनके मोती से अक्षरों को सहला नहीं पाते... तरसती हैं कि आपकी एक नजर उन पर पड़े... रह जातीं हैं जो किसी सजी संवरी महबूबा सी... जमकर इश्क लड़ाएंं और आनंद लें इस निस्वार्थ प्रेम का।

घर के जीते जागते बच्चों को सुनाइए अपने, अपनी पीढ़ियों के किस्से, अपने अनुभव के खजाने से दिल खोलकर लुटाइए यादों के हीरे-मोती... किस्से... कहानियां। वो परियों की दुनिया, वो नंदन वन, वो एक था राजा-एक थी रानी, चुन चुन करती आई चिड़िया... विक्रम-बेताल ...चाचा चौधरी के किस्से... साझा करिए उनसे अपने ज़माने की रंगीन यादें जो बंद पड़ीं हैं न जाने कबसे पत्थर से होने आए इस दिल की संदूकची में जिसमें आपाधापी का ताला लगा पड़ा है... इससे पहले कि जिंदगी की सांसों की चाबी कहीं गुम हो जाए या कोई वक्त का जहरीला जंग इनमे लग जाए।

नाचिए अपनों के संग... झूमेे, शिकवे-शिकायतों का आनंद लीजिए... संगीत को उतारिए अपने जहन में और ये परवाह किए बिना कि लोग क्या कहेंगे... जी लें बेखबर जिंदगी अपनों के साथ... लें स्वर्गिक आनंद... अपने घर की दरों दीवारों के बीच जिसे सजाया संवारा आपने अपनी हसरतों के रंगों से और साकार किया अपने सपने को।

बैठिए घर में आराम से और निकालें अपने पुराने फोटो अलबम व वीडियोज अकेले हों या परिवार के साथ, बताएं... परिचित कराएं अपने बच्चों को जो न मिल पाते हों स्वजनों से, नहीं पहचानते अपनों को। हर फोटो की अपनी एक कहानी होती है... सुनाएं उन्हें... याद करें वो गलियां वो चौबारे जहां आपकी जड़ें हैं।

चले जाएं रसोई घर में कर दें छुट्टी उनकी जो रोज आपको आपकी पसंद का खाना देने के लिए दिन रात गुलतारा किए रहतीं है... अपनी पसंद नापसंद को ताक में रख कर। खुश कर दीजिए उन्हें उनकी पसंद का खाना पकाकर... कच्चा-पक्का कैसा भी। वो स्वादिष्ट ही होगा क्योंकि आपने प्यार की गर्मी से जो पकाया होगा और भर देगा मसालों की सौंधी खुशबू आपकी जिंदगी में।

अकेले हों या अपनों के संग ये कर्फ्यू के 14 घंटे आपको मिलें हैं वो सब करने के लिए जो करने से आप अपने लिए अपने देश के लिए, ब्रह्माण्ड के लिए बिना कुछ खोए कुछ पा सकतें हैं। मानो ये कर्ज है प्रकृति का जो मांग रही है आपसे अपने किए हुए गुनाहों का माफ़ी नामा, जिसको हम सभी ने कहीं न कहीं कष्ट दिया है नष्ट किया है... ऐसा ही कुछ अन्याय किया है हमने।

मशीनी... अंधे... संवेदनहीन... होते वक्त के प्रभाव से अपने साथ, हमारे अपनों के साथ। जानती हूं ये समय आनंद करने का नहीं... सुख भोगने के बारे में सोचने का भी नहीं... पर प्रायश्चित्त का तो है। तो आएं इस ऐतिहासिक जनता कर्फ्यू के मिले इस समय के साक्षी बनें। और कर लें अपने मन की भी राष्ट्र भक्ति के साथ। ये तो छोटी सी बानगी है जो हम कर सकते हैं आप और भी कुछ कीजिए जो आपके मन को भाए। पर इन सभी के साथ यह न भूलें कि अपना मकसद... जो है 'कोरोना' से लड़ाई। स्वच्छता का पाठ पढ़िए, पढ़ाएं, और मानवता व इंसानियत की मिसाल बनिए।

जिंदगी तो प्यार का गीत है इसे हर दिल को गाना पड़ेगा...
तो फिर...
जिंदगी एक सफर है सुहाना, यहां कल क्या हो किसने जाना???

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