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न चलेगी राजशाही, न चलेगी नौकरशाही

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स्वरांगी साने

जब तक राजा-प्रजा का भेद नहीं मिटता, तब तक प्रजातंत्र नहीं आ सकता। लेकिन भारत में बीती कई शताब्दियों से राजशाही और राजघरानों का वर्चस्व बरकरार रहा है। प्रजातंत्र की रक्षा के लिए वीआईपी संस्कृति को नेस्तनाबूद करना वक्त की दरकार है और नरेंद्र मोदी इससे पूरी तरह वाकिफ़ लगते हैं।

मंत्रियों की गाड़ियों पर से लाल बत्ती हटाने के बाद अब अमृत काल में मोदी दूसरा बड़ा काम करने जा रहे हैं। अब देश के सिर्फ़ पांच लोगों के वाहनों पर लाल बत्ती लगी दिख सकती है। इन पांच लोगों में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस और लोकसभा के स्पीकर शामिल हैं। लाल बत्ती कल्चर के खत्म होने के बाद बेल बजाकर चपरासी को बुलाने की प्रथा अब ख़त्म होने वाली है। कोई कितनी भी बड़ी कुर्सी पर बैठा हो, उसका ओहदा कितना भी ऊंचा क्यों न हो, अब उसे खुद उठकर जाना होगा और चपरासी को आवाज़ देकर बुलाना होगा।

अधिकारियों के कमरों से घंटियों को हटा दिया जाएगा। मंत्री सेल में यह फैसला लागू हो चुका है। जल्द ही इसे रेलवे बोर्ड सहित पूरे रेल ज़ोन एवं मंडलों में भी लागू किया जाने वाला है। रेलवे मंत्री अश्विनी वैष्णव अपने कमरे से घंटी या कॉल बेल को हटा चुके हैं। लेकिन कुछ मंत्री इसकी जगह सायरन लगाने के मूड में हैं क्योंकि उन्हें लग रहा है कि यदि अटेंडेंट को बुलाना है तो वे कैसे बुलाएंगे। इसके लिए मंत्री या अधिकारियों को खुद कमरे से उठकर बाहर जाना होगा और अटेंडेंट को बुलाना होगा। यदि अति व्यस्तता उन्हें जगह से हिलने नहीं दे रही हो तो उन्हें फ़ोन का सहारा लेना होगा।

मतलब ऑफ़िस का फ़ोन करके उन्हें चपरासी या किसी अन्य जूनियर कर्मचारी को बुलावा भेजना होगा। कहा जा सकता है कि वैसे इससे पहले उन्हें यह आदत कोविड की वजह से लग चुकी है। कोविड के बाद जब दफ़्तर खुले थे तो अधिकारियों ने चपरासियों से पानी पिलाने के लिए कहना छोड़ दिया था, वे अपने घरों से पानी लेकर आने लगे थे। अधिकतर अधिकारी दफ़्तर में चाय पीना भी भूल गए थे।

जिन अधिकारियों को चाय की तलब अधिक लगती थी वे खुद अपने कमरे में इलेक्ट्रिक कैटल में चाय बनाने लगे थे। वे खुद चाय बनाते, पीते और खुद ही कप-प्लेट धोने लगे थे। बड़े साहब जो काम पहले नहीं करते थे, कोविड ने उनसे वो काम करवा लिए हैं। बात-बात पर घंटी बजाकर चपरासी को बुलाने वाले बाबू भी चपरासी को कम से कम बुलाने लगे थे। और अब मोदी सरकार ने आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक कदम बढ़ाते हुए इस तरह बाबुओं-अधिकारियों को आत्मनिर्भर बनाने का फैसला ले लिया है।
नोट :  आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया का आलेख में व्‍यक्‍त विचारों से सरोकार नहीं है।
Edited: By Navin Rangiyal

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