Biodata Maker

प्रियंका का ये इतना शोरगुल क्यों हो रहा है?

नवीन जैन
बुधवार, 13 अक्टूबर 2021 (15:38 IST)
ये मान लेना फिर एक राजनीतिक मासूमियत हो सकती है कि लखीमपुर खीरी प्रकरण को लेकर प्रियंका गांधी (वढेरा) जिस तरह सक्रिय हुईं, वह पीएम नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ और भाजपा से आरपार की लड़ाई है। विश्लेषकों का मंथन यही है कि प्रियंका की शक्ल-ओ-सूरत भले अपनी दादीमां स्व. इंदिरा गांधी से मैच करती हो, लेकिन हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि इंदिराजी 'वन वूमेन आर्मी' थीं। वे जितनी फायर ब्रांड थीं, उतना ही उनका स्व. अटलजी तक से सेंस ऑफ ह्यूमर मशहूर था।
 
प्रियंका तो भाषण या चुनाव प्रचार के दौरान ही नम्रता और बिना चिढ़ते हुए पेश होती हैं, वर्ना वास्तविक स्थिति में तो वे बहुत विकट और जटिल मानी जाती हैं। नई दिल्ली में कांग्रेस की बीट लगभग 20 साल से कवर कर रहीं सीता गुप्ता का कहना है कि पार्टी के आम कार्यकर्ताओं में प्रियंका एवं राहुल गांधी का नाम किसी आतंक से कम नहीं है। जमीनी बंदों की तो इन लोगों को देखते ही सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है।
 
एक महिला पत्रकार की बातों पर चलिए भरोसा मत कीजिए, लेकिन उस बयान का क्या अर्थ जिसमें नेहरू परिवार के किचन कैबिनेट के सालों सदस्य रहे वरिष्ठ बुजुर्ग नेता पूर्व विदेश मंत्री नटवरसिंह ने राहुल को शहजादा और प्रियंका को शहजादी घोषित कर दिया था। इस सोच के कई अन्य नेता भी हो सकते हैं। लेकिन क्या करें और किससे कहें? सो चिड़ी चुप मानकर ही बैठे रहते हैं। और यह भी है कि कांग्रेस की उक्त तीनों हस्तियों की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने इन लोगों को निर्णय लेने से वंचित रखा है और इस समझौते में लगभग इन सभी को उजला राजनीतिक भविष्य दिखा हो।

 
दिक्कत ये है कि तीनों ही बदलने को तैयार नहीं हैं। अभी अक्टूबर 16 को कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मीटिंग बुलाई गई है और उस पर काफी कुछ टिका हुआ है। लेकिन यदि कांग्रेस अपना ओवरहालिंग करना चाहती तो 2019 में एक ऐसा अवसर आया था, जब कांग्रेस अपनी पूरी रिपेयरिंग कर सकती थी। चाटुकारिता और दरबारी मसखरेपन की आदत नहीं छूटी।
 
दरअसल, जैसे 2019 के लोकसभा आम चुनाव में कांग्रेस का एक तरह से नाम-ओ-निशान मिट गया, सबसे पहले इस डूबते हुए जहाज से तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी कूदे। लेकिन उन्होंने बाद में एक अच्छा काम किया था, पर वह व्यर्थ गया। राहुल गांधी ने पार्टी राष्ट्रीय कार्यकारिणी को 8 पृष्ठों का अध्यक्ष पद से इस्तीफा लिखते हुए कांग्रेस को सलाह दी थी कि वे नेहरू-गांधी के साये से फौरन बाहर निकल जाएं और अपना नया चिंतन, सोच, दिशा, मुद्दे, संघर्ष खुद खुद तय करें।
 
लेकिन बाद में पता चला कि दोनों को एक-दूसरे के बिना नहीं सुहाता। धीरे-धीरे 138 पुरानी और आजादी में शहादत देने वाली पार्टी 3 लोगों- सोनिया, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी (वढेरा)- की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनकर रह गई। आज भी ये तीनों लोग जो फरमान जारी कर दें, किसकी बिसात है, जो उसके खिलाफ आचरण करे। यह बात अलग है कि एक जमाने में प्रधानमंत्री पद के लगभग करीब पहुंच चुकीं सोनिया को अच्छी हिन्दी नहीं आती और वे चूंकि रोमन में लिखा भाषण हिन्दी में पढ़ती हैं इसलिए उन्हें 'लीडर' की बजाय 'रीडर' कहा जाता है।
 
कांग्रेस सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है, इसमें तो दोराय नहीं है। मसला यह है कि यह पार्टी नेतृत्व, निर्णय, आक्रामकता, विश्वसनीयता की तलाश में आखिर कितना वक्त लेगी? जी-23 समाप्त-सा है। कन्हैया कुमार ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर खूब माथा खाया। अब गुमनामी में हैं। इसे व्यक्तिगत आक्रमण नहीं समझा जाना चाहिए।
 
लेकिन उक्त तीनों गांधीजनों की दिक्कत यह भी है कि ये लोग तात्कालिक लाभ के चक्कर में स्थायी फायदे से दूर होते रहे हैं। कभी झाडू लगाने लगते हैं, कभी प्रचार के लिए सड़क पर चल रहे स्कूली बच्चों के टिफिन बॉक्स में से खाने लगते हैं।
 
हाथरस कांड में स्पॉट पर जाते वक्त सुना था कि दोनों भाई-बहन कार में म्यूजिक सुन रहे थे। ऐसे नेताओं से आगे भी क्या अपेक्षा रखी जा सकती है? वैसे भी प्रियंका भाई की मदद के लिए कांग्रेस में आई थीं। जब उनके पिता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पद पर थे, तब की बातें भी याद रखी जाएंगी। उस वक्त तो वे आज से भी मुंहफट और 'तू-तड़ाक' से बात करने में नाम कमा चुकी थीं और वो भी राजीव के विश्वस्तों के साथ।
 
दरअसल, प्रियंका इतना तो जानती हैं कि यूपी का सामाजिक एवं राजनीतिक गठबंधन बीते कुछ सालों में इतना उलझ गया है कि जिन 200 सीटों पर कांग्रेस की भाजपा से सीधी भिड़ंत है, उसमें कहीं कांग्रेस को फायदा मिल जाए। लेकिन उन्हें योगी की जगह रखने के तो कोई पुख्ता कारण फिलहाल नजर नहीं आते।
 
माना जा रहा है कि नवजोतसिंह सिंद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह प्रकरण में दोनों भाई-बहनों की जो जगहंसाई हुई है, उसका सीमेंटीकरण करने का सबसे बड़ा दायित्व प्रियंका का ही तो है, क्योंकि वे पार्टी की अखिल भारतीय महासचिव हैं और अगले ही वर्ष पंजाब में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। 
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

Winter Health: सर्दियों में रहना है हेल्दी तो अपने खाने में शामिल करें ये 17 चीजें और पाएं अनेक सेहत फायदे

Winter Superfood: सर्दी का सुपरफूड: सरसों का साग और मक्के की रोटी, जानें 7 सेहत के फायदे

Kids Winter Care: सर्दी में कैसे रखें छोटे बच्चों का खयाल, जानें विंटर हेल्थ टिप्स

Winter Recpe: सर्दियों में रहना है हेल्दी तो बनाएं ओट्स और मखाने की स्वादिष्ट चिक्की, मिलेंगे कई सेहत फायदे

Winter Health Tips: सर्दियों में रखना है सेहत का ध्यान तो खाएं ये 5 चीजें

सभी देखें

नवीनतम

Jyotiba Phule: महात्मा ज्योतिबा फुले: पुण्यतिथि, जीवन परिचय और सामाजिक क्रांति

रूस और यूक्रेन युद्ध के अंत की ट्रम्प की 28 सूत्रीय योजना

मेंटल हेल्थ स्ट्रांग रखने के लिए रोजाना घर में ही करें ये 5 काम

Constitution Day 2025: संविधान दिवस आज, जानें इस महत्वपूर्ण दिन के बारे में 10 अनसुनी बातें

फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र के लिए श्रद्धांजलि कविता: एक था वीरू

अगला लेख