अलग तरह की है किन्नरों की दुनिया

Webdunia
सोमवार, 2 जनवरी 2017 (20:44 IST)
-अनिल अनूप
 
किन्नरों की दुनिया एक अलग तरह की दुनिया है जिनके बारे में आम लोगों को जानकारी कम ही होती है। इसके अलावा किन्नरों पर न ही ज्यादा शोध किया गया है। भारत में बीस लाख से ज्यादा किन्नर है और निरंतर इनकी संख्या घट रही है, मगर फिर भी किन्नरों को संतान मिल ही जाती है। ये उनका लालन-पालन बड़े अच्छे ढंग से करते हैं। जहां तक एक से बच्चे को बिरादरी में सम्मिलित करने की बात है तो बनी प्रथा के अनुसार बालिग होने पर ही रीति संस्कार द्वारा किसी को बिरादरी में शामिल किया जाता है।
रीति संस्कार से एक दिन पूर्व नाच-गाना होता है तथा सभी का खाना एक ही चुल्हे पर बनता है। अगले दिन जिसे किन्नर बनना होता है, उसे नहला-धुलाकर अगरबत्ती और इत्र की सुगंध के साथ तिलक किया जाता है। शुद्धिकरण उपरांत उसे सम्मानपूर्वक ऊंचे मंच पर बिठाकर उसकी जननेन्द्रिय काट दी जाती है और उसे हमेशा के लिए साड़ी, गहने व चूडिय़ां पहनाकर नया नाम देकर बिरादरी में शामिल कर लिया जाता है।
 
किन्नरों के बारे में कई प्रकार की भ्रांतिया आज भी हमारे समाज में मौजूद हैं, जैसे कि किन्नरों की शवयात्राएं रात्रि को निकाली जाती हैं। शवयात्रा को उठाने से पूर्व जूतों-चप्पलों से पीटा जाता है। किन्नर के मरने उपरांत पूरा किन्नर समुदाय एक सप्ताह तक भूखा रहता है। 
 
इन भ्रांतियों के संबंध में किन्नर भी इन रस्मों को इंकार तो नहीं करते, मगर इसे नाममात्र ही बताते हैं। भारत के किन्नरों के दर्दनाक जीवन की अकांक्षाओं, संघर्ष और सदस्यों की अनदेखी करना ज्यादती होगी। किन्नरों के संबंध में जानकारी मिली है कि कुछ किन्नर जन्मजात होते हैं, जबकि कुछ ऐसे हैं कि पहले पुरुष थे, परंतु बध्याकरण की प्रकिया से किन्नर बने हैं। 
 
अपनी आजीविका चलाने वाले किन्नर विवाह-शादी या बच्चा होने पर नाच-गाना करके बधाई में धनराशि व वस्त्र इत्यादि लेते हैं, जबकि त्योहारों के अवसर पर दुकानों इत्यादि से भी धनराशि एकत्रित कर लेते हैं। किसी के घर विवाह हो या पुत्ररत्न की प्राप्ति की सूचना, मोहल्लों में छोड़े मुखबिरों से उन्हें मिल जाती है। कुछ जानकारी नगर परिषद में जन्म-मरण रिकॉर्ड से नव जन्मे बच्चे की जानकारी मिल जाती है, जबकि शादी का पता विभिन्न धर्मशालाओं एवं मैरिज पैलेस की बुकिंग से चल जाता है।
 
किन्नरों तक खबर पहुंचाने वाले को तयशुदा कमीशन भी मिलता है। किन्नर सरकार और समाज से सिर्फ इतना चाहते हैं कि समाज उनका मजाक न उड़ाए और न ही घृणा की दृष्टि से देखें, जबकि समाज के प्रति ऐसी सम्मानित भावना उपरांत भी किन्नर समाज में तिरस्कृत तथा बहिष्कृत है। इनके आधे-अधूरेपन की वजह से भले ही समाज इन्हें अपना अंग मानने से इंकार करता रहे, मगर वास्तविकता यही है कि ये समाज के अंग हैं। अंधे, कोढ़ी और अपंग लोगों की तरह किन्नर भी लाचार हैं, जबकि किन्नरों को तिरस्कार व उपेक्षा की नहीं, बल्कि प्यार और सम्मान देने की जरूरत है। 
 
तमिलनाडु के विल्लुपुरम ज़िले के मुख्य शहर में पिछले दिनों क्या दुकानें, क्या गेस्ट हाउस और क्या होटल - हर जगह बस किन्नर ही किन्नर नज़र आ रहे थे जिनको हिजड़ा भी कहा जाता है।तमिल नव वर्ष की पहली पूर्णिमा को हर साल ऐसा ही होता है जब देशभर के किन्नर विल्लुपुरम का रुख़ करते हैं।
 
विल्लुपुरम से गाड़ी से कोई घंटे भर की दूरी तय करने पर गन्नों के खेतों से भरा छोटा-सा एक गांव है- कूवगम- जिसे किन्नरों का मक्का कहा जाता है। इसी कूवगम में महाभारत काल के योद्धा अरावान का मंदिर है। हिन्दू मान्यता के अनुसार पांडवों को युद्ध जीतने के लिए अरावान की बलि देनी प़ड़ी थी।
 
अरावान ने आख़िरी इच्छा जताई कि वो शादी करना चाहता है ताकि मृत्यु की अंतिम रात को वह पत्नी सुख का अनुभव कर सके। कथा के अनुसार अरावान की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान कृष्ण ने स्वयं स्त्री का रूप लिया और अगले दिन ही 'विधवा' बन गए। इसी मान्यता के तहत कूवगम में हज़ारों किन्नर हर साल दुल्हन बनकर अपनी शादी रचाते हैं। और इस शादी के लिए कूवगम के इस मंदिर के पास जमकर नाच गाना होता है जिसे देखने के लिए लोग जुटते हैं। 
 
फिर मंदिर के भीतर पूरी औपचारिकता के साथ अरावान के साथ हिजड़ों की शादी होती है। शादी किन्नरों के लिए बड़ी चीज़ होती है और इसलिए मंदिर से बाहर आकर अपनी इस दुल्हन की तस्वीर को वो कैमरों में भी क़ैद करवाते हैं। चीपुरम से आई राधा का कहना है कि उन्हें ये पर्व इसलिए प्यारा लगता है कि क्योंकि इससे कम-से-कम एक बार तो उसकी शादी हो ही सकती है। 
 
मगर 37 वर्षीय राधा की कहानी अपने-आप में हिजड़ा समुदाय के दर्द का बयान है। गांववाले हंसते और मज़ाक उड़ाते थे इसलिए राधा को 12 साल की उम्र में अपने परिवार को छोड़ना पड़ा। वेशभूषा उसने औरतों जैसी रखी ज़रूर है मगर आंखें बंद कर अगर कोई उसकी आवाज़ सुने तो चेन्नई में रिक्शेवालों की आवाज़ और राधा की आवाज में फ़र्क करना उसके लिए संभव नहीं होगा। 
 
राधा ने घर छोड़ने के बाद अपनी जिंदगी के पच्चीस साल एक शहर की एक पिछड़ी बस्ती में बिताए।
और राधा और उसकी दोस्तों के पास पेट भरने के लिए देह व्यापार को छोड़ दूसरे धंधे नज़र नही आ रहे थे। कई बार तो उन्होंने बस दुकानों में जाकर सीधे पैसे मांगे। 
 
मगर ज़िंदगी उनकी मुश्किलों भरी थी - आम दुनिया के लिए वो अजनबी थे- हैरत की चीज़ थे। वैसे तो कई जगह ये भी मान्यता है कि किन्नर शादी या बच्चों के जन्म के मौके पर शुभ होते हैं, लेकिन इसके बावजूद आमतौर पर उनके लिए बस दो ही भावनाएं नज़र आती हैं - भय या घृणा। 
 
और समाज का ये सौतेला बर्ताव झेलते-झेलते किन्नरों का स्वभाव भी प्रतिक्रिया में आक्रामक होता गया है। अश्लील भाषा का इस्तेमाल उनके लिए सामान्य है और आम समाज पर उनका भरोसा टूट चुका है, मगर बदलाव भी हो रहे हैं किन्नरों की दुनिया में। 
 
24 साल की फ़ामिला ने वर्षों की हिकारत और उपेक्षा झेलने के बाद ऐसी ही कोशिश की है। बंगलोर की रहने वाली फ़ामिला ने 5 साल पहले ऑपरेशन करवाया और वह बिलकुल सामान्य महिला नज़र आती है, बल्कि कूवगम पर्व के मौके पर आयोजित सौंदर्य स्पर्धा में उसने दूसरा स्थान भी हासिल किया।
 
फ़र्राटे की अंग्रेज़ी में उसने बताया कि वैसे वह ऐसी स्पर्धाओं की विरोधी है लेकिन किन्नरों के अधिकारों की आवाज़ उठाने के लिए उसने इस मंच का इस्तेमाल उचित समझा। उसने बताया कि किन्नरों की दुनिया से लोग आगे निकल रहे हैं और कुछ राज्यों में तो उन्होंने सक्रिय राजनीति में कामयाबी भी पाई है।
 
किन्नरों की शादी के अगले दिन कूवगम समारोह का समापन हो जाता है और ये दिन किन्नरों के लिए फिर वो दुख भरी ज़िंदगी छोड़ जाता है जिसके वो आदी हो चुके हैं। अंतिम दिन सारे कूवगम में अरावान की प्रतिमा को घुमाने के बाद उसे नष्ट कर दिया जाता है। 
 
फिर किन्नर अपने मंगलसूत्र को तोड़ते हैं और सफेद कपड़े पहनते हैं। और फिर उनका विलाप शुरू होता है - उस दिन की याद में - जिसने उनकी तमन्ना पूरी की - और जिसके बाद पूरे एक बरस उनका सामना होना है - बस एक ख़ौफ़नाक सच्चाई से जिसे किन्नर अपनी हक़ीकत मानने पर मजबूर हैं।
 
प्रकृति में नर-नारी के अलावा एक अन्य वर्ग भी है जो न तो पूरी तरह नर होता है और न नारी। जिसे लोग हिजड़ा या किन्नर या फिर ट्रांसजेंडर के नाम से संबोधित करते हैं। किन्नरों के अंदर एक अलग गुण पाए जाते हैं। इनमें पुरुष और स्त्री दोनों के गुण एकसाथ पाए जाते है। इनका रहन-सहन, पहनावा और काम-धंधा भी इन दोनों से भिन्न होता है। आज से नहीं, सदियों से किन्नरों के जन्म की परंपरा चलती आई है। लेकिन आज तक यह पता नहीं लगाया जा सका है कि आखिरकार किन्नरों का जन्म क्यों होता है।
 
क्या कहते हैं ज्योतिष- पुराण : अगर बात करें ज्योतिष शास्त्र और पुराणों की तो किन्नरों के जन्म को लेकर इनके भी कई  अलग-अलग दावे हैं। ज्योतिष शास्त्र की माने तो बच्चे के जन्म के वक्त उनकी कुंडली के अनुसार अगर आठवें घर में शुक्र और शनि विराजमान हो और जिन्हें गुरु और चंद्र नहीं देखता है तो व्यक्ति नपुंसक हो जाता है और उसका जन्म किन्नरों में होता है, क्योंकि कुंडली के अनुसार शुक्र और शनि के आठवें घर में विराजमान होने से सेक्स में प्रजनन क्षमता कम हो जाती है। वहीं ज्योतिष शास्त्र की अगर मानें तो इससे भी बचाव का एक तरीका है। इसमें इस परिस्थिति के समय अगर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि अगर व्यक्तियों पर पड़ता है तो बच्चा नपुंसक नहीं पैदा होता।
 
तो किन्नरों के पैदा होने पर ज्योतिष शास्त्र का मानना है कि चंद्रमा, मंगल, सूर्य और लग्न से गर्भधारण होता है। जिसमें वीर्य की अधिकता होने के कारण लड़का और रक्त की अधिकता होने के कारण लड़की का जन्म होता है। लेकिन जब गर्भधारण के दौरान रक्त और विर्य दोनों की मात्रा एक समान होती है तो बच्चा किन्नर पैदा होता है, वहीं किन्नरों के जन्म लेने का एक और कारण माना जाता है। जिसमें कई ग्रहों को इसका कारण बताया गया है। 
 
शास्त्र की अगर मानें तो किन्नरों की पैदाइश अपने पूर्व जन्म के गुनाहों की वजह से होता है। पुराणों की बात करें तो किन्नरों के होने की बात पौराणिक कथाओं में भी है। पौराणिक कथाओं को अगर माने तो अर्जुन कि भी गिनती कई महीनों तक हिजड़ों में की जाती थी। मुगल शासन की बात करें तो उस वक्त भी किन्नरों का राज दरबार लगाया जाता था।
 
देश की सोच बदल रही है। समलैंगिकता को सामान्य मानकर उन्हें अपनाने की वकालत की जा रही है। समय-समय पर उनके हक के लिए लड़ाई भी लड़ी जा रही है, लेकिन आज भी कुछ हैरान करने वाली ऐसी चीजें सामने आ जाती हैं, जो देश को फिर 100 साल पीछे धकेल देती है। जी हां, हम बात कर रहे हैं राजधानी दिल्ली की जहां कुछ डॉक्टर्स अवैध तरीकों से होमोसेक्सुअलिटी का इलाज कर रहे हैं। 
 
एक अखबार ने डॉक्टरों के इस रैकेट रूपी बिजनेस का भंडाफोड़ किया है। अखबार के मुताबिक दिल्ली के डॉक्टर्स होमोसेक्सुअलिटी का इलाज करने के लिए जिन तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं वो चौंकाने वाले और दर्दनाक हैं। दिल्ली के डॉक्टर होमोसेक्सुअल लोगों के कथित इलाज में हॉर्मोन थैरेपी और इलेक्ट्रिक शॉक का भी प्रयोग कर रहे हैं। 
 
अखबार ने डॉ. विनोद रैना का स्टिंग ऑपरेशन किया। स्टिंग ऑपरेशन में विनोद रैना अब तक 1000 से ज्यादा होमोसेक्सुअल लोगों के इलाज का दावा कर रहे हैं। क्टरों के लिए समलैंगिकता दिमागी बीमारी है जो सिजोफ्रेनिया या बाइपोलर डिसऑर्डर की तरह हैं, जिसका इलाज हो सकता है।
 
कन्वर्जन थैरेपी करने वालों का दावा है कि इससे होमोसेक्सुअल लोगों को महीने भर में हेट्रोसेक्सुअल बनाया जा सकता है। इस थैरेपी की कई प्रक्रियाएं संदिग्ध हैं, जिसमें होमोसेक्सुअल लोगों को इलेक्ट्रिक शॉक देना, मिचली की दवाएं खिलाना और टेस्टोटेरॉन को बढ़ाने के लिए नुस्खा लिखना या टॉक थैरेपी का इस्तेमाल करना भी शामिल है। 
 
अखबार ने दावा किया है कि उसके पास डॉक्टर्स से की गई बातचीत के ऑडियो-वीडियो साक्ष्य मौजूद है। कुछ जगह आयुर्वेदिक दवाओं की बात करके इलाज का नुस्खा सुझाया जा रहा है तो कुछ जगह हार्मोन बैलेंस के जरिए समलैंगिकता की बात की जा रही है। बर्लिंग्टन क्लीनिक के डॉक्टर एसके जैन जहां आयुर्वेदिक दवाओं का सहारा ले रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर विनोद रैना जैसे डॉक्टर्स ने हार्मोन बैलेंस का रास्ता अपना रहे हैं। कुछ डॉक्टर तो महज 2100 रुपए में समलैंगिकता के पूरे इलाज का वादा मरीजों से कर रहे हैं।
 
अखबार के हवाले से मैक्स हॉस्पिटल में रेजिडेंट डॉक्टर नागेन्द्र कुमार कहते हैं कि समलैंगिकता उस तरह की है जैसे किसी व्यक्ति को शराब पीने की आदत होती है, वहीं सेफ हैंड्स क्लिनिक के सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. विनोद रैना के मुताबिक कुछ बच्चे यौन उत्पीड़न का शिकार हो जाते हैं और बाद में वहीं होमोसेक्सुअल बन जाते हैं।
 
नैचुरल है होमोसेक्सुअलिटी एलजीबीटी (Lesbian, Gay, Bisexual and Transgender) के हकों को लिए आवाज बुलंद करने वाली मित्र ट्रस्ट की डायरेक्टर रुद्राणी छेत्री का कहना है कि समलैंगिकता एक नेचुरल है ना कि साइकोलॉजिकल। उनका कहना है कि भागमभाग भरी जिंदगी में लोग बहुसंख्यक की तरफ हो जाते हैं इसलिए इसे अलग नजरिए से देखा जाता है। 
 
इलेक्ट्रिक शॉक से होमोसेक्सुअलिटी का इलाज करने के संबंध में रुद्राणी का कहना है कि शॉक से पागलों को ठीक किया जाता है और होमुसेक्सुअलिटी के लिए यह तरीका अपनाना वाहियात है। रुद्राणी ने बताया कि भारत भले ही कितनी तरक्की कर रहा हो, लेकिन आज भी कुछ लोग इस समुदाय को गलत नजरिए से देखते हैं। और इन्हीं के गलत नजरिए को कुछ डॉक्टर कमाई का रूप दे देते हैं। रुद्राणी का कहना है इस तरह के इलाज से अवसाद पैदा होता है जिसका रिजल्ट खुदकुशी के रूप में सामने आता है।

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