यूक्रेन बन रहा है यूरोप के लिए एक निर्णायक परीक्षा का समय

राम यादव
शनिवार, 8 मार्च 2025 (22:38 IST)
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप की विदेश नीति यूरोपीय संघ के देशों को किसी आंधी की तरह झकझोर रही है। 3 वर्ष पूर्व, यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से चल रहे युद्ध ने यूरोपीय नेताओं को पहले ही बेचैन कर रखा था। दुबारा राष्ट्रपति बनते ही ट्रंप के एक से एक भड़काऊ वक्तव्यों और निर्णयों ने यूरोपीय देशों के शासनाध्यक्षों की अब नींद भी हराम कर दी है। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि अमेरिका के ही बनाए 'नाटो' सैन्य गठबंधन का मुखिया 'नाटो' के साथ नटबाज़ी क्यों कर रहा है। 
 
यूरोपीय शीर्ष नेताओं की आए दिन बैठकें हो रही हैं- कभी लंदन में तो कभी पेरिस या ब्रुसेल्स में। सबसे ताज़ा शिखर सम्मेलन 6 मार्च को यूरोपीय संघ के मुख्यालय ब्रुसेल्स में हुआ। आम राय यही रही कि यूरोपीय देशों को अपनी रक्षा स्वयं करनी पड़ेगी। अमेरिका में जब तक ट्रंप हैं, तब तक 'नाटो' नाकारा ही रहेगा। अपनी रक्षा आप करने का अर्थ है- पुनः सशस्त्रीकरण। पुनः हथियार उठाना और ढेर सारे हथियार जुटाना।
 
'शीतयुद्ध' की याद : 1990 वाले दशक में तत्कालीन सोवियत संघ का विघटन हो जाने के साथ ही यूरोप में हथियारों की दौड़ के तथाकथित 'शीतयुद्ध' वाले युग का अंत हो गया था। लंबे समय तक सोवियत संघ का एक अंग रहा यूक्रेन 24, अगस्त 1991 को एक स्वतंत्र देश बन गया। उन दिनों एक के बाद एक, सोवियत रूस भक्त पूर्वी यूरोप के वे सभी कम्युनिस्ट देश पश्चिमी यूरोप वाले देशों की तरह ही लोकतांत्रिक बन गए, जो सोवियत संघ के सदस्य नहीं थे। उस समय के शस्त्रीकरण वाले युग का स्थान नि:शस्त्रीकरण लेने लगा। इस युगांतकारी परिवर्तन से यूरोप में संपन्नता और सौहार्दता का वातावरण बढ़ने लगा।

लेकिन केवल 3 करोड़ 70 लाख की जनसंख्‍या वाले यूक्रेन पर 24 फ़रवरी, 2022 को रूस के हमले के बाद से यह परिदृश्य एकदम बदल गया है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर हमला यह सोचकर किया कि वह 'नाटो' का सदस्य न बन सके। यूक्रेन पर उस समय 'नाटो' का सदस्य बनने के लिए बाहर से ही डोरे नहीं डाले जा रहे थे, वहां की बहुमत जनता भी 'नाटो' की सदस्यता चाहती थी। 
 
रूस का डर : रूस को डर था कि 'नाटो' की सदस्यता के बाद यूक्रेन में ऐसे अमेरिकी परमाणु मिसाइल भी तैनात होंगे, जो रूस की पश्चिमी सीमा के बिलकुल पास होंगे। किसी भावी युद्ध के समय वे क्षणभर में मॉस्को भी पहुंच जाएंगे। एक सच्चाई यह भी है कि नवंबर 1989 में जर्मनी को विभाजित करने वाली बर्लिन दीवार जब गिरी थी, तब जर्मनी के एकीकरण से पहले सोवियत संघ के तत्कालीन नेता मिखाइल गोर्बाचोव को अमेरिका और जर्मनी ने आश्वासन दिया था कि 'नाटो' का जर्मनी की पूर्वी सीमा के पार विस्तार नहीं किया जाएगा।
 
यह आश्वसान किसी लिखित समझौते का रूप नहीं ले पाया, क्योंकि गोर्बाचोव रूस में हुई उथल-पुथल के स्वयं शिकार बन गए। 'नाटो' के सदस्य देश यह कहकर पल्ला झाड़ लिया करते हैं कि 'नाटो' के पूर्वी यूरोप की तरफ विस्तार को रोकने संबंधी कोई लिखित समझौता नहीं है। लेकिन विडंबना तो यह है कि अमेरिकी मुखियागिरी वाले जिस 'नाटो' को यूरोपीय देश अब तक अपने लिए सबसे सशक्त छाता समझ रहे थे, अमेरिका के नए राष्ट्रपति उसे तानने के लिए तैयार ही नहीं हैं। कह रहे हैं, हम तुम्हारे लिए लड़ने नहीं आएंगे। 
 
विशेष शिखर सम्मेलन : यूरोपीय संघ के मुख्यालय ब्रुसेल्स में हुए 6 मार्च के एक विशेष शिखर सम्मेलन में संघ के शीर्ष नेताओं ने किसी युद्ध की स्थिति में यूरोपीय रक्षा और यूक्रेन के लिए भावी सहायता पर चर्चा की। यूरोपीय संघ की सरकार के समान उसके आयोग की अध्यक्ष, जर्मनी की उर्ज़ुला फ़ॉन देयर लाइन ने सुझाव दिया कि यूरोप को एकजुट होकर साथ रहना व सशस्त्र होना चाहिए। इसके लिए 800 अरब यूरो उपलब्ध कराए जाएंगे। (इस समय 94 भारतीय रुपए 1 यूरो के बराबर हैं।) यूरोपीय संघ की अध्यक्ष महोदया का कहना था कि यह यूरोप के लिए एक निर्णायक क्षण है।
 
यूरोप एक स्पष्ट और साक्षात ख़तरे का सामना कर रहा है। इसलिए यूरोप को अपनी रक्षा करने में स्वयं सक्षम होना पड़ेगा। उन्होंने यूरोपीय संघ के सरकार प्रमुखों के समक्ष शस्त्रीकरण की योजना प्रस्तुत की। इस योजना में पुनः शस्त्रीकरण हेतु आवश्यक हथियारों की ख़रीद के लिए यूरोपीय संघ के बजट से 150 अरब यूरो के बराबर ऋण उपलब्ध करने का प्रावधान है। साथ ही यूरोपीय संघ के ऋण संबंधी नियमों को अगले 4 वर्षों के लिए उदार बना दिया जाएगा।
 
जर्मनी में नई सरकार बननी है : जर्मनी के चांसलर (प्रधानमंत्री) ओलाफ शोल्त्स का सुझाव था कि नियमों में ऐसा दीर्घकालिक समन्वय होना चाहिए कि संघ के सदस्य देश अपने अस्त्र-शस्त्र निवेशों को सुविधानुसार व्यवस्थित कर सकें। उल्लेखनीय है कि जर्मनी में अभी-अभी नए चुनाव हुए हैं, पर नई सरकार का गठन अभी नहीं हो पाया है। संभावना यही है कि चांसलर के पद पर अब शोल्त्स के प्रतिपक्षी रहे, 'क्रिश्चन डेमोक्रैटिक यूनियन' (CDU) पार्टी के अध्यक्ष फ्रीडरिश मेर्त्स विराजमान होंगे।  
 
पोलैंड के प्रधानमंत्री दोनाल्द तुस्क ने कहा कि रूस हथियारों की इस होड़ से वैसे ही पिछड़ जाएगा, जैसे 40 साल पहले सोवियत संघ पिछड़ गया था। यूरोप को रूस द्वारा शुरू की गई हथियारों की नई दौड़ का सामना करना चाहिए और इसे जीतना चाहिए। पोलैंड ही इस वर्ष की पहली छमाही में यूरोपीय संघ के शिखर सम्मेलनों वाली परिषद की अध्यक्षता कर रहा है। यूरोप में अपनी सभी क्षमताओं का समन्वय करना और एक वास्तविक सुगठित सैन्य बल तैयार करना हमारी प्राथमिकताओं में से एक होना चाहिए, तुस्क ने कहा। 
 
फ्रांस का परमाणु शस्त्रागार : सबसे अधिक चौंकाने वाला था फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों का यह प्रस्ताव कि उनका देश यूरोप की सुरक्षा के लिए अपने परमाणु शस्त्रागार का विस्तार कर सकता है। शिखर सम्मेलन में इस प्रस्ताव पर मिश्रित प्रतिक्रिया देखने में आई। जर्मन चांसलर शोल्त्स ने कहा कि यूरोप के लिए परमाणु-भय के प्रश्न पर अमेरिका की भागीदारी को हमें त्याग नहीं देना चाहिए यानी आवश्यकता पड़ने पर अमेरिका का भी साथ पाने का प्रयास करना चाहिए।
 
लिथुआनिया और लातविया ने माक्रों के प्रस्ताव का स्वागत किया। यह परमाणु युद्ध की पैरवी के समान है। अमेरिकी राष्ट्रपति की पूरी तरह अनपेक्षित नीतियों से अचंभित और भयभीत यूरोपीय संघ के शिखर सम्मेलन के समय यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की भी उपस्थित थे। उन्होंने यूरोपीय देशों के नेताओं को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद दिया। ज़ेलेंस्की ने ज़ोर देकर कहा कि उनका देश अकेला नहीं है।
 
उन्होंने बताया कि उनका देश स्वयं भी अपने अस्‍त्र-शस्त्र बना रहा है और उनकी गुणवत्ता में सुधार कर रहा है। लेकिन तब भी बाहरी सहायता की बहुत आवश्यकता है। वॉशिंगटन में राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा अपमानित यूक्रेनी राष्ट्रपति ने यह भी बताया कि वे अपने देश पर रूसी आक्रमण के अंत के प्रश्न पर अमेरिका से बातचीत के लिए अब भी तैयार हैं। 
 
आंशिक युद्धविराम के लिए अभियान : ज़ेलेंस्की ने ब्रुसेल्स में आंशिक युद्धविराम के लिए अभियान चलाया, जिसमें हवाई लड़ाइयां और समुद्री लड़ाइय़ां शामिल होंगी। उन्होंने यूरोपीय संघ के नेताओं से इसका समर्थन करने का आग्रह किया, क्योंकि यह शांति की ओर जाने का एक रास्ता हो सकता है। ज़ेलेंस्की ने कहा कि सभी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रूस, जो इस युद्ध का एकमात्र रचयिता है, इसे समाप्त करने की आवश्यकता को स्वीकार करे। आकाश और समुद्र में युद्धविराम की निगरानी करना आसान होगा। 
 
'नाटो' के महासचिव मार्क रुटे ने उम्मीद जताई कि यूक्रेन और अमेरिका के बीच बातचीत सकारात्मक परिणाम की ओर ले जा सकती है। नीदरलैंड के प्रधानमंत्री रहे रुटे ने ब्रुसेल्स में कहा कि वे इस बात का स्वागत करते हैं कि दोनों पक्ष आगे बढ़ने के तरीकों पर चर्चा कर रहे हैं। वे सतर्कता से आशावादी हैं। इससे पूर्व, यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की ने घोषणा की थी कि उन्होंने और अमेरिका ने, रूसी आक्रमण के अंत के लिए आगे की बातचीत पर सहमति जताई है।
 
अमेरिकी सहायता निलंबित : अमेरिका ने यूक्रेन को दी जा रही अपनी सैन्य सहायता निलंबित कर दी है। इसके अलावा, अमेरिकी गुप्तचर सेवाओं द्वारा यूक्रेन को युद्ध व रूस की तैयारियों से संबंधित गोपनीय जानकारियां देने पर भी रोक लगा दी है। इसलिए फ्रांस अब यूक्रेन को अपनी गुप्तचर सेवाओं द्वारा जुटाई गई जानकारी प्रदान कर रहा है।
 
जर्मनी के रक्षामंत्री बोरिस पिस्टोरियुस, यूक्रेन को अमेरिकी सहायता नहीं मिलने से होने वाले नुकसान की भरपाई करना चाहते हैं। वे राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा अस्थाई रूप से रोकी गई यूक्रेन को अमेरिकी सैन्य सहायता की कमी को अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के साथ मिलकर पूरी करना चाहते हैं। उनका कहना है कि जर्मनी और ब्रिटेन, यूक्रेन के लिए हथियारों की आपूर्ति में एक प्रमुख भूमिका निभाएंगे। उन्होंने बर्लिन में अपने यूक्रेनी समकक्ष उमजेरोव से मुलाकात की थी।
 
जर्मनी 3 अरब यूरो देगा : पिस्टोरियुस ने इस बात की भी पुष्टि की कि चुनावों के बाद जर्मनी में CDU पार्टी की अगुआई में जो नई संघीय सरकार बनने की संभावना है, उसके साथ टोही वार्ताओं में, यूक्रेन के लिए 3 अरब यूरो के एक सहायता पैकेज पर चर्चा की गई थी। यदि इसके लिए आवश्यक वित्तपोषण हो पाया, तो अन्य बातों के साथ-साथ हवा में मार करने वाली हवाई रक्षा प्रणालियां भी यूक्रेन को देना संभव हो जाएगा। 
 
कहने की आवश्यकता नहीं कि अपने आप को सुख, शांति और सद्भाव का परम अनुरकणीय उदाहरण बताने वाले और दुनिया को अन्यथा लड़ने-भिड़ने से परहेज़ करने का अपदेश देने वाले यूरोपीय देश, यूक्रेन के बहाने से अब एक ऐसे युद्ध की तैयारी में जुट गए हैं, जो यदि छिड़ा, तो तीसरा विश्वयुद्ध बनकर रहेगा। यदि ऐसा हुआ, तो वह परमाणविक प्रलय ही सिद्ध होगा।
 
इसके लिए यूक्रेन पर आक्रमण करने वाला रूस भी उतना ही ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए, जितना यूक्रेन की सहायता के बहाने से आग में घी डालने वाले यूरोप-अमेरिका को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, पर परमाणविक प्रलय के बाद किसी को ज़िम्मेदार ठहराने के लिए क्या कोई बचेगा भी?
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)

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