2 अगस्त को नागपंचमी पर्व : जानिए 10 परंपराएं, जो बनाती हैं इस दिन को खास

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Nag Panchami 2022: श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 2 अगस्त 2022 मंगलवार को यह पर्व मनाया जाएगा। आओ जानते हैं इस पर्व की 10 परंपराएं जो इस पर्व को खास बनाती है।
 
नागपंचमी की 8 परंपराएं जो बनाती है इस दिन को खास:
1. पूजा : इस दिन शिव पूजा के साथ अष्टनागों की पूजा होती है। इसकी के साथ नागों की देवी वासुकी की बहन मनसादेवी और उनके पुत्र आस्तिक मुनि की पूजा भी करते हैं। इस दिन नाग माता कद्रू, बलरामजी की पत्नी रेवती, बलरामजी की माता रोहिणी और सर्पो की माता सुरसा की वंदना भी करते हैं। बिना शिवजी की पूजा के नागों की पूजा नहीं की जाती है। नागों की स्वंतत्र पूजा नहीं होती। उनकी शिवजी के आभूषण के रूप में ही पूजा होती है।
 
2. बांबी की पूजा : इस दिन नाग की बांबी की भी पूजा करते हैं। किसान लोग अपनी नई फसल का तब तक उपयोग नहीं करते जब तक वह नए अनाज से नाग की बांबी को रोट न चढ़ाएं। इस दिन हल चलाना या जुताई कराना मना है।
 
3. ग्रह दोष पूजा : इस दिन कुंडली के नागदोष, विषयोग और कालसर्प दोष की पूजा भी होती है।
 
4. व्रत : इस दिन नागदेव के लिए व्रत भी रखा जाता है। व्रत की शुरुआत चतुर्थी से ही हो जाती है और दूसरे दिन शाम को पारण किया जाता है। पूजा आरती के बाद कथा सुनते हैं और दान आदि देकर व्रत का पारण कर सकते हैं।
 
5. नाग आकृति : नागपंचमी के दिन घर के मुख्य द्वार पर गोबर, गेरू या मिट्टी से सर्प की आकृति बनाएं और इसकी विधिवत रूप से पूजा करें। इससे जहां आर्थ‍िक लाभ होगा, वहीं घर पर आने वाली काल सर्प दोष से उत्पन्न विपत्त‍ियां भी टल जाएंगी।
6. चांदी के नाग नागिन की पूजा : इस दिन चांदी के नाग नागिन की पूजा होती है। चांदी के नाग नागिन न हो तो एक बड़ीसी रस्सी में सात गांठें लगाकर उसे सर्प रूप में पूजते हैं।
 
7. नाग मंदिर में पूजा : इस दिन किसी नाग मंदिर या स्थान पर जाकर पूजा करने का ज्यादा महत्व है। नागचंद्रेश्वर मंदिर उज्जैन, कर्कोटक मंदिर उज्जैन, वासुकि नाग मंदिर प्रयागराज, तक्षकेश्वर नाथ प्रयागराज, मन्नारशाला नाग मंदिर, केरल, कर्कोटक नाग मंदिर भीमताल, धौलीनाग मंदिर, उत्तराखंड बागेश्वर, नाग मंदिर, पटनीटॉप, नागपुर इंदौर का नाग मंदिर, भीलट देव का मंदिर, मप्र बड़वानी आदि जगहों के मंदिरों का खास महत्व है।
 
8. आस्तिक देव की पूजा : इन दिन मनसादेवी के पुत्र आस्तिक (आस्तीक) की पूजा की जाती है जिसने अपनी माता की कृपा से सर्पों को जनमेयज के यज्ञ से बचाया था। नाग पंचमी के दिन 'आस्तिक मुनि की दुहाई' नामक वाक्य घर की बाहरी दीवारों पर सर्प से सुरक्षा के लिए लिखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस वाक्य को घर की दीवार पर लिखने से उस घर में सर्प प्रवेश नहीं करता और सर्प दंश का भय भी नहीं रहता है।
 
9. भोजन : इस दिन तवा और लोहे की कड़ाही आदि पर भोजन नहीं पकाया जाता है। इस दिन साग काटने की भी मनाई है। भोजन को खास तरह से बनाकर खाते हैं।
 
10. सुई धागा : इस दिन सुई धागे से किसी तरह की सिलाई भी नहीं की जाती है। इस दिन भूमि की खुदाई नहीं करते हैं।

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