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कारवां-ए-अमन के 13 साल पूरे, अरमान अधूरे

हमें फॉलो करें कारवां-ए-अमन के 13 साल पूरे, अरमान अधूरे
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सुरेश एस डुग्गर

श्रीनगर। कश्मीर के दोनों हिस्सों में रह रहे बिछुड़े परिवारों को मिलाने की खातिर आरंभ हुई कारवां-ए-अमन यात्री बस सेवा ने इस माह की 7 तारीख को अपने परिचालन के 13 साल पूरे कर चुकी है, पर कश्मीरियों के अरमान अभी भी अधूरे ही हैं। 13 साल की इस अवधि में कुल गैर सरकारी तौर पर 28 हजार के करीब लोगों ने इस सेवा का लाभ उठाया पर अभी भी 31 हजार से अधिक लोग अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं जिस कारण आम कश्मीरी यह कहने को मजबूर हुआ है कि यह बस सेवा उनके अरमान पूरे नहीं कर पाई है।


अभी भी इस कश्मीर के लोगों को इस यात्री बस सेवा पर नाराजगी इसलिए है क्योंकि वे बाबूगिरी के चलते इसका सफर नहीं कर पा रहे हैं जबकि अगले कुछ दिनों में इसके फेरों को बढ़ाने की कवायद भी आरंभ हो गई है। पहले यह माह में दो बार चलती थी अब चार बार चल रही है जबकि कश्मीरी इसे प्रतिदिन चलाने की मांग कर रहे हैं। सबसे अहम बात इस मार्ग के प्रति यह है कि कश्मीरी चाहते हैं कि इस सड़क मार्ग को सिर्फ चहेतों के लिए ही नहीं बल्कि आम कश्मीरी के लिए खोला जाना चाहिए ताकि वे उस कश्मीर में रहने वाले अपने बिछुड़े परिवारों से बेरोकटोक मिल सकें।

यही कारण है कि अभी भी कश्मीरियों को शिकायत है कि इस सड़क मार्ग का इस्तेमाल सिर्फ ऊंची पहुंच रखने वालों द्वारा ही किया जा रहा है और आम कश्मीरी इससे कोसों दूर है। श्रीनगर के लाल चौक में दुकान चलाने वाला मसूद अहमद कहता है कि 13 साल हो गए वह उस कश्मीर में रहने वाली अपनी बहन से मिलने की इजाजत नहीं पा सका। हर बार मेरे आवेदन को कोई न कोई टिप्पणी लगा कर लौटा दिया जाता है और मेरा पड़ोसी दो बार उस पार हो आया ऊंची पहुंच के कारण, जबकि उसका कोई रिश्तेदार भी उस पार नहीं रहता है।

भारतीय अधिकारियों को 45 हजार से अधिक कश्मीरियों ने उस पार जाने के लिए आवेदन दिया था। 37000 को वे मंजूर कर उस पार पाकिस्तानी अधिकारियों को भेज चुके हैं पर पाकिस्तानी अधिकारियों ने सिर्फ 22200 को ही अभी तक मंजूरी दी है। ऐसी ही शिकायतें अन्य कश्मीरियों को भी हैं। वे अपने बिछुड़े परिवारों से मिलने उस पार जाना चाहते हैं पर बाबूगिरी उनकी राह में रोड़ा है। यही कारण है कि वे इस सड़क मार्ग को आम सड़क बनाने की मांग करते हैं। साथ ही चाहते हैं कि अमन सेतु को भी चौड़ा किया जाए ताकि यहीं की यात्री बस उस पार जाएं।

उड़ी का नूर मुहम्मद कहता था कि 7 दिनों के बाद कारवां-ए-अमन को चलाने का कोई लाभ नहीं है क्योंकि इस तरह से तो कश्मीर के हजारों बिछुड़े परिवारों को उस पार अपनों से मिलने में सालों लगेंगे। वह कहता था कि प्रतिदिन उस कश्मीर के लिए यात्री बस सेवा आरंभ की जानी चाहिए और उन लोगों को भी उस कश्मीर का दौरा करने की अनुमति दी जानी चाहिए चाहे जिनका कोई भी उस पार न रहता हो। वैसे मिली जानकारी के मुताबिक, इस बस के फेरे बढ़ाने की कवायद तेज कर दी गई है और इसे सप्ताह में दो बार चलाया जा सकता है।

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