Amit Shah news in hindi : राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के खिलाफ विशेषाधिकार हनन नोटिस गुरुवार को खारिज कर दिया। शाह ने अपने बयान को प्रमाणित करने के लिए 1948 की एक सरकारी प्रेस विज्ञप्ति का हवाला दिया था कि कांग्रेस के एक नेता प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष के प्रबंधन का हिस्सा थे।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी पर आक्षेप लगाने का आरोप लगाते हुए शाह के खिलाफ नोटिस दिया था। धनखड़ ने विशेषाधिकार हनन नोटिस को खारिज करते हुए कहा कि मैंने इसे ध्यानपूर्वक पढ़ा है। मुझे लगता है कि इसमें कोई उल्लंघन नहीं हुआ है।
धनखड़ ने कहा कि शाह ने 25 मार्च को राज्यसभा में आपदा प्रबंधन विधेयक, 2024 पर हुई बहस का जवाब देते हुए कुछ टिप्पणियां करने के बाद अपने बयान को प्रमाणित करने पर सहमति व्यक्त की थी।
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#Rajyasabha Chairman dismissed the privilege notice against Amit Shah, citing verified records from 1948 that upheld his statement on PMNRF and PM CARES, finding no procedural lapse...
— SansadTV (@sansad_tv) March 27, 2025
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उन्होंने कहा कि मंत्री ने 24 जनवरी, 1948 को भारत सरकार के प्रेस सूचना ब्यूरो द्वारा जारी एक प्रेस बयान का हवाला दिया, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने PMNRF (प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष) शुरू करने की घोषणा की थी। इसका प्रबंधन प्रधानमंत्री, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष और कुछ अन्य लोगों की एक समिति द्वारा किया जाना था।
क्या होता है विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव: सांसदों को कई तरह के निजी, व्यक्तिगत और सामूहिक अधिकार और संरक्षण मिले हैं। ताकि वे अपने दायित्वों के निर्वाहन कारगर तरीके से कर सकें। जब कभी ऐसी स्थिति हो कि इन अधिकारों और संरक्षणों का किसी लोकसभा और राज्यसभा के सांसद के द्वारा उल्लंघन किया जाता है तो उसे विशेषाधिकार हनन की स्थिति कहते हैं। संसद के कानून के तहत यह दंडनीय अपराध माना जाता है।
कैसे लाया जाता है विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव : कोई भी सांसद एक प्रस्ताव के रूप में नोटिस देकर किसी ऐसे सदस्य के खिलाफ ला सकता है जिस वह विशेषाधिकार हनन का दोषी मानता है। कानून के अनुसार, दोनों ही सदन को किसी भी पदाधिकारी या प्रतिष्ठित व्यक्ति को अवमानना (विशेषाधिकार हनन सहित) के कार्य पर सजा देने का अधिकार है।
क्या होती है सजा : आमतौर पर विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव संसद में पास नहीं होते। बहुत कम मामलों में सजा की अनुशंसा की गई है। सांसदों को अस्थायी रूप से निलंबित किया जा सकता है। यहां तक की सांसद की संसद सदस्यता भी छिनी जा सकती है। 1978 में इंदिरा गांधी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव पास किया गया था। इस वजह से उनकी सदस्यता चली गई थी।