प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ग्रेजुएशन डिग्री से संबंधित मामले को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट बड़ा आदेश दिया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के आदेश को दिल्ली हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया है। दिल्ली यूनिवर्सिटी ने केंद्रीय सूचना आयोग के आदेश को चुनौती दी थी। CIC ने 2016 में दायर एक RTI याचिका के आधार पर दिल्ली यूनिवर्सिटी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मोदी की ग्रेजुएशन डिग्री से संबंधित जानकारी की जांच करने का निर्देश दिया था।
क्या कहा था सीआईसी ने
यूनिवर्सिटी ने तीसरे पक्ष से संबंधित जानकारी साझा न करने के नियमों का हवाला देते हुए इसे अस्वीकार कर दिया। मुख्य सूचना आयोग (CIC) ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया और दिसंबर 2016 में डीयू को निरीक्षण की अनुमति देने का आदेश दिया। सीआईसी ने कहा कि किसी भी सार्वजनिक व्यक्ति खासकर प्रधानमंत्री की शैक्षिक योग्यताएं पारदर्शी होनी चाहिए। सीआईसी ने यह भी कहा कि इस जानकारी वाले रजिस्टर को एक सार्वजनिक दस्तावेज माना जाएगा। इसी आदेश के खिलाफ यूनिवर्सिटी ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जहां उसका प्रतिनिधित्व भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और उनकी कानूनी टीम ने किया।
दिल्ली विश्वविद्यालय ने दिया था आदेश
सीआईसी के आदेश को दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) ने चुनौती दी थी। डीयू ने 2017 में सीआईसी के उस आदेश के खिलाफ याचिका दायर की थी। इसमें 1978 में बीए प्रोग्राम पास करने वाले छात्रों के रिकॉर्ड की जांच की अनुमति दी गई थी, जब प्रधानमंत्री मोदी ने भी परीक्षा पास की थी।
कोर्ट ने कहा- अजनबी को नहीं दिखाई जा सकती डिग्री
हाईकोर्ट ने 27 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले पर सुनवाई के दौरान दिल्ली यूनिवर्सिटी ने कहा था कि वो कोर्ट को डिग्री दिखा सकती है लेकिन किसी अजनबी को नहीं। दिल्ली यूनिवर्सिटी की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि एक ऐसे छात्र की डिग्री मांगी जा रही है, जो आज देश के प्रधानमंत्री हैं। उन्होंने कहा था कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है। यूनिवर्सिटी हर साल का रजिस्टर मेंटेंन करती है। मेहता ने कहा था कि दिल्ली यूनिवर्सिटी कोर्ट को डिग्री दिखा सकती है लेकिन किसी अजनबी को डिग्री नहीं दिखाया जा सकता है। इनपुट एजेंसियां Edited by : Sudhir Sharma