Fake news: ‘नफरत की पाठशाला’ बनाती ‘व्‍हाट्सएप्‍प’ यूनिवर्सिटी

नवीन रांगियाल

अगर किसी से पूछा जाए कि इस वक्‍त की सबसे खतरनाक चीज क्‍या है तो जवाब होगा कोरोना वायरस। लेकिन हम कहें कि कोरोना वायरस से भी ज्‍यादा खतरनाक एक और चीज है तो क्‍या आप इस सच को मानेंगे?

जी हां, कोराना वायरस से ज्‍यादा भयावह है तेजी से फैलती फेक न्‍यूज। कोरोना के लक्षण मिलने पर आप अस्‍पताल जाकर डॉक्‍टर से इलाज ले सकते हैं, लेकिन इस फेक न्‍यूज का कोई इलाज नहीं है। इससे देश की आंतरि‍क व्‍यवस्‍था बि‍गड़ सकती है। दंगे हो सकते हैं और सांप्रदायि‍क सौहार्द खराब हो सकता है।

इसका दुखद पहलू यह है कि पढ़े-लिखे और एज्‍युकेटेड लोग अपनी व्‍हाट्सएप्‍प यूनिवर्सिटी से नफरत की यह पाठशाला तैयार कर रहे हैं। बि‍ना सोचे-समझे व्‍हाट्एप्‍प से फेक न्‍यूज, फोटो और वीडि‍यो वायरल कर देने वाली यह मानसिकता एक होड़ में तब्‍दील हो चुकी है। चिंता वाली बात यह है कि जाने या अनजाने में पाकिस्‍तान और चीन की साजिशों का शि‍कार हो सकते हैं।

हाल ही में भारतीय सेना के रिटायर्ड अधि‍कारियों ने राष्‍ट्रपति को चिट्टी लिखी है जो व्‍हाट्सएप्‍प यूनि‍वर्सिटी द्वारा फेलाई जा रही नफरत की पाठशाला का खुलासा करती है।

दरअसल, भारतीय नौसेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल रामदास समेत भारत के क़रीब 120 रिटायर्ड अधिकारियों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक ख़त लिखा है। खत में भारतीय सेना के 'मुस्लिम रेजिमेंट' को लकर सोशल मीडिया में फैलाई जा रही फ़ेक न्यूज़ को रोकने और यह खबरें वायरल करने वालों पर सख़्त कार्रवाई की मांग की है।

अधिकारियों ने लिखा कि सोशल मीडिया पर साल 2013 से ही एक झूठ फैलाया जा रहा है कि 1965 के भारत-पाकिस्तान जंग में भारतीय सेना की मुस्लिम रेजिमेंट ने पाकिस्तान से लड़ने से मना कर दिया था। जबकि सच यह है कि इस तरह के नाम का कोई रेजिमेंट भारतीय सेना में कभी रहा ही नहीं।

अभी भारत के साथ चीन और पाकिस्‍तान की तनातनी चल रही है, ऐसे में यह फेक न्‍यूज देश के भीतर ही तनाव पैदा कर सकती है।

ख़त में लेफ़्टिनेंट जनरल अता हसैन (रिटायर्ड) के एक ब्लॉग का भी ज़िक्र है जिसमें वो कहते हैं कि यह फ़ेक न्यूज़ पाकिस्तानी सेना के साई ऑप्स (मनोवैज्ञानिक ऑपरेशन) का हिस्सा हो सकता है।

जाहिर है देश की आंतरि‍क शांति‍ और व्‍यवस्‍था बि‍गाड़ने के लिए पाकिस्‍तान अपनी फर्जी आईटी सेल से फर्जी या फेक न्‍यूज फैला रहा है। मसलन मुस्‍लिम रेजि‍मेंट वाली फेक न्‍यूज इसलिए फैलाई जा रही है ताकि यहां यह दिमाग में डाला जाए कि सेना में मुसलमानों का कोई योगदान नहीं रहा है और हिंदू इससे मुसलमानों से नफरत करे। हिंदू और मुसलमानों के बीच तनाव हो जाए। बता दें कि भारत में पहले से ही अलग-अलग मुद्दों को लेकर सांप्रदायिक तनाव बना हुआ है। ऐसे में इस तरह की फेक न्‍यूज आग में घी का काम करेगी।

क्‍या रहा है फौज में मुसलमानों का इतिहास?
1857 का विद्रोह बंगाल आर्मी के सिपाहियों ने किया था। बंगाल आर्मी में जिन इलाकों से भर्ती होती थी, वहां से बाद में भर्ती कम हो गई। ये इलाके थे अवध से लेकर बंगाल तक। यहां से न मुसलमान फौज में लिए जाते थे, न ब्राह्मण, क्योंकि इन्होंने बगावत में हिस्सा लिया था। मुसलमानों से अंग्रेज़ कुछ ज़्यादा नाराज़ थे क्योंकि अवध और बंगाल के नवाब उनके खिलाफ लड़े थे। लेकिन 1857 के बाद भी अंग्रेज़ दूसरे इलाकों के मुसलमानों को फौज में भर्ती करते रहे। ये मुसलमान भारत उत्तर पश्चिम से होते थे। मतलब पठान, कुरैशी, मुस्लिम जाट, बलूच आदि। आज़ादी के पहले लगभग 30 फीसदी फौजी मुसलमान होते थे।

पाकिस्तान के खिलाफ 1965 में हुई जंग में खेमकरण की लड़ाई में हवलदार अब्दुल हामिद को मरणोपरांत परमवीर चक्र दिया गया था। ठीक इसी तरह पाकिस्तान के जिन्‍ना के ऑफर को बलूच रेजिमेंट के ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान ने ठुकरा दिया और वे भारत में ही रहे और कबायली हमले में लड़ते हुए शहीद हुए।

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