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बिहार में कैसे बनी 12000 करोड़ की सरकार, गेम चेंजर रहा नीतीश मास्टरस्ट्रोक

वृजेन्द्रसिंह झाला
Bihar Assembly Election Results: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे आ चुके हैं। इन नतीजों ने देश की राजनीति में एक जबरदस्त भूचाल ला दिया है। इस बार के चुनाव परिणाम ने सभी राजनीतिक पंडितों के अनुमानों को झुठला दिया है। NDA ने प्रचंड बहुमत के साथ 200 से अधिक सीटें जीतकर बिहार में अपनी सत्ता बरकरार रखी है। वहीं, तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन 35 सीटों पर सिमटकर बुरी तरह से धराशायी हो गया। लेकिन, सबसे बड़ी और करारी और चौंकाने वाली हार उस नाम की हुई, जिसने नई राजनीति का दावा किया था यानी प्रशांत किशोर। 
 
बिहार की 243 सीटों वाली विधानसभा के चुनाव में सत्ता विरोधी लहर के बावजूद 202 का आंकड़ा छूना वाकई चौंकाने वाला है। हालांकि इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। लेकिन सबसे प्रमुख कारण की बात करें तो वह है तीन किश्तों में 1.21 लाख महिलाओं के खाते में 10-10 हजार रुपए डालना। इस तरह महिलाओं के खाते में कुल 12000 करोड़ रुपए डाले जा चुके हैं।
 
इस तरह पलट गया पासा : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इस योजना ने चुनाव का पासा ही पलटकर रख दिया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो यही है कि 2020 में 43 सीटें जीतने वाले नीतीश की सीटों की संख्या बढ़कर इस बार 85 हो गई। यानी दोगुनी। भाजपा भी 74 से बढ़कर 89 पर पहुंच गई। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि इस बार बिहार में एनडीए की सुनामी आ गई। इसके अलावा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महिला केंद्रित अन्य योजनाएं, जैसे 'लखपति दीदी' और 'जीविका दीदी' ने महिलाओं को रिकॉर्ड तोड़ मतदान के लिए प्रेरित किया। महिलाओं ने एनडीए पर अटूट भरोसा जताया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और 'मोदी की गारंटी' का फायदा भी एनडीए को मिला।
 
इस चुनाव में 71.6 प्रतिशत महिलाओं ने वोट डाला, जो पुरुषों (62.8%) से लगभग 9 फीसदी अधिक था। महिलाओं की इस रिकॉर्ड भागीदारी को एनडीए की प्रचंड जीत का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 1.21 करोड़ से अधिक महिलाओं के खाते में 10,000 रुपए की नकद राशि का सीधा हस्तांतरण बिहार चुनाव में निर्णायक साबित हुआ। यह एक ऐसा लाभ था जो महिलाओं को 'वादे' के रूप में नहीं, बल्कि 'डिलीवरी' के रूप में मिला, जिसने उनके मतदान व्यवहार को सीधे प्रभावित किया। महिलाएं बिहार में 'गेमचेंजर' रहीं।  
 
महागठबंधन पूरी तरह ध्वस्त : उधर, तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन पूरी तरह ध्वस्त हो गया है। 2020 में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी RJD यानी राष्ट्रीय जनता दल महज 25 सीटों पर सिमट गई, जबकि कांग्रेस को मात्र 6 सीटें मिलीं। महागठबंधन की हार के पीछे कई कारण रहे। पहला, स्थानीय नेतृत्व की कमी और कमजोर चुनावी संगठन। विपक्ष की ओर से पूरे ‍चुनाव में एकमात्र नेता तेजस्वी यादव ही नजर आए। दूसरा, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार पर तेजस्वी का पूरा प्रचार महिलाओं के कल्याणकारी वोट बैंक को भेदने में नाकाम रहा। तेजस्वी का महिलाओं को 30 हजार रुपए देने का 'वादा' भी काम नहीं आया। 
 
महागठबंधन में शामिल कांग्रेस और वाम दलों का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। माना जा रहा है कि राहुल गांधी और कांग्रेस हाईकमान को बिहार में महागठबंधन की कमजोर स्थिति का अंदेशा था। हार की स्थिति में, ठीकरा उन पर न फूटे, इसलिए जानबूझकर दूरी बनाई गई। शुरूआती दौर में कांग्रेस और RJD के बीच सीट बंटवारे को लेकर लंबे समय तक खींचतान चली। राहुल गांधी ने चुनाव के शुरुआती दौर में 'वोट अधिकार यात्रा' निकाली और 'वोट चोरी' के आरोपों पर अपना पूरा अभियान केंद्रित किया। हालांकि, चुनावी परिणामों से पता चलता है कि मतदाताओं ने इन आरोपों को महत्व नहीं दिया। राहुल गांधी का हाइड्रोजन बम पूरी तरह 'फुस्स' हो गया। 
 
बिहार ने अनुभव को दी प्राथमिकता : राहुल गांधी की बिहार चुनाव प्रचार से दूरी एक रणनीतिक जोखिम था, जिसे कांग्रेस ने अंततः खराब चुनावी प्रदर्शन के रूप में भुगता। विपक्ष की ओर से सिर्फ तेजस्वी यादव ही किला लड़ाते नजर आए। ऐसा लगता है कि बिहार की जनता ने युवा बनाम अनुभवी के दांव में सुशासन, अनुभव और स्थिरता को चुना।
 
लेकिन इस पूरे चुनाव का सबसे बड़े 'लूजर' प्रशांत किशोर रहे। एक राजनीतिक रणनीतिकार के तौर पर कई राज्यों में जीत दिलाने का दम भरने वाले प्रशांत की पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। उनके 98 प्रतिशत उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई है। प्रशांत किशोर ने खुद कम से कम 10 से 150 सीटें जीतने का दावा किया था। उनकी यह बुरी हार यह साबित करती है कि एक सफल रणनीतिकार होना और एक सफल राजनेता बनना दो अलग बातें हैं।
 
इसमें कोई संदेह नहीं कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में NDA की प्रचंड जीत, जिसका श्रेय महिला शक्ति के साथ ही मोदी-नीतीश के कल्याणकारी मॉडल और सफल गठबंधन को जाता है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन को भी अपनी रणनीति और नेतृत्व पर गंभीर आत्ममंथन करना होगा। अब देखना यह है कि यह नई सरकार बिहार के रोजगार और विकास के वादों को कैसे पूरा करती है।

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