बिहार नीतीश कुमार और भाजपा कैसे बने एक दूसरे की जरूरी मजबूरी?

विकास सिंह
गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025 (15:55 IST)
बिहार में चुनावी साल में बुधवार को नीतीश कैबिनेट का विस्तार हो गया है। कैबिनेट विस्तार में भाजपा के 7 विधायकों को मंत्री बनाया गया। इसके साथ ही बिहार मंत्रिमंडल में अब पूरे 36 मंत्री बन गए हैं, जिसके साथ ही कैबिनेट का कोटा फुल हो गया है। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार मंत्रिमंडल के अंतिम विस्तार में सात नए मंत्री शामिल किये गए,लेकिन इनमें नीतीश की पार्टी का एक भी विधायक मंत्री नहीं बना।

इसे गठबंधन की मजबूरी या भाजपा का दबाव कहेंगे कि नीतीश कुमार एक ऐसे लाचार मुख्यमंत्री हैं जिन्हें भाजपा के इशारों पर चलना पड़ रहा है। दरअसल नीतीश कुमार ने पहले आरजेडी के साथ बिहार में सरकार बनाई फिर बीच भंवर में आरजेड़ी का साथ छोड भाजपा के साथ हो लिए और सरकार बनाई। वहीं अब जब राज्य चुनावी मोड में आ चुका है तब नीतीश कुमार के लिए भाजपा एक मजबूरी हो गई है, वे न भाजपा का साथ छोड़ सकते हैं और न साथ रह सकते हैं।

मंत्रिमंडल विस्तार में नीतीश कुमार की बेचारगी का एहसास होता है, नीतीश कुमार जिन्हें बिहार की राजनीति में पलटूराम भी कहा जाता  है वह पिछले 20 वर्षों के मुख्यमंत्रित्व काल में इतने असहज कभी नहीं दिखे कि भाजपा या अन्य किसी सहयोगी ने कोई बात कही और वे सीधे मान गए। अगर इस बार नीतीश ने आंख मूंद कर भाजपा की लिस्ट को ओके किया तो यह उनका  सियासी पतन या उनकी कोई रणनीति हो सकती है, जो  वक्त के साथ ही साफ होगा।

बिहार की राजनीति की जानकार वरिष्ठ पत्रकार दीपक कोचगवे कहते हैं चुनाव विस्तार यह बताता है कि भाजपा अकेले चुनाव में उतरने की पूरी संभावना तलाश रही है पिछले दिनों पीएम मोदी ने जिस तरह से भागलपुर में किसान सम्मेलन में शामिल हुए उसके बाद भाजपा कार्यकर्ता जिस तरह से एक्टिव दिखाई दे रहे है वह इस बात का संकेत है कि भाजपा बिहार में हर संभावना की तलाश रही है। वहीं भाजपा को अकेले सत्ता में लाने के लिए आरएसएस भी अब पूरी तरह से बिहार में सक्रिय है।  

बिहार में भाजपा के लिए नीतीश कुमार आज एक जरूरी मजबूरी भी बन गए है, लेकिन बिहार विधानसभा के चुनाव से ठीक पहले नीतीश बाबू एक और करवट नहीं लेंगे ,इसकी कोई गारंटी नहीं है। वरिष्ठ पत्रकार दीपक कोचगवे कहते हैं कि यह साफ है कि बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा और आरजेडी के बीच ही मुख्य मुकाबला होगा। इसलिए नीतीश कुमार भाजपा के साथ हैं और पूरी तरह नतमस्तक भी हैं। वहीं भाजपा की पूरी कोशिश है कि इस बार बिहार में वह सत्ता में आए। लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा,महाराष्ट्र और दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भाजपा का हौसला बढ़ा हुआ है।

वरिष्ठ पत्रकार दीपक कोचगवे कहते हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव में जातीय वोटबैंक एक महत्वपूर्ण फैक्टर है और नीतीश कुमार और चिराग पासवान के पास एक अपना वोटबैंक है जिसके भाजपा चुनाव में अपने साथ लाना चाहती है। यहीं कारण है कि पिछले दिनों पीएम मोदी ने मंच से नीतीश कुमार की खुलकर तारीफ की और मोदी  के दौरे के तुरंत बाद बिहार में कैबिनेट विस्तार भी हो गया और नीतीश कुमार पूरी तरह खमोश दिखाई दिए। 

बिहार में भाजपा ने जिस तरह से पहले विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी के नेता नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद सौंपा और अब चुनाव से पहले कैसे उनकी घेराबंदी करने में जुट गई है, उससे साफ संकेत है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा अपने लिए एक अवसर देख रही है। वरिष्ठ पत्रकार दीपक कोचगवे कहते हैं बिहार में आज की तारीख में एनडीए बढ़त में दिखाई दे रही है वहीं विपक्ष पूरी तरह बिखरा हुआ दिखाई दे रहा है। विपक्ष में आरजेड़ी पूरी तरह से तेजस्वी यादव पर निर्भर है वहीं कांग्रेस पूरी तरह कन्फूयज दिखाई दे रही है। दूसरी तरफ भाजपा पूरी ताकत के साथ बिहार में जातीय समीकरण को साधने की कोशिश में जुटी हुई दिखाई दे रही है। आज बिहार में नीतीश कुमार और भाजपा दोनों एक दूसरे लिए जरूरी मजबूरी बन गए है।  
 

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