आर्टेमिस संधि से अंतरिक्ष में बढ़ेगी भारत की ताकत

वृजेन्द्रसिंह झाला
Artemis Treaty between India and America: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान यूं तो रक्षा समेत कई अन्य क्षेत्रों में भी अहम समझौते हुए हैं, लेकिन 'आर्टेमिस संधि' को अंतरिक्ष की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस समझौते के बाद भारत शांतिपूर्ण, सतत और पारदर्शी सहयोग के लिए 26 अन्य देशों की फेहरिस्त में शामिल हो गया जिससे वह चंद्रमा, मंगल और अन्य ग्रहों का अन्वेषण कर सकेगा। इससे निश्चित ही अंतरिक्ष में भारत की ताकत में इजाफा होगा। 
 
दरअसल, 1967 की बाह्य अंतरिक्ष संधि पर आधारित आर्टेमिस संधि असैन्य अंतरिक्ष अन्वेषण और 21वीं सदी में इसके इस्तेमाल को दिशा-निर्देशित करने के लिए तैयार किए गए गैर-बाध्यकारी सिद्धांतों का एक ‘सेट’ है। यह 2025 तक चंद्रमा पर मानव को फिर से भेजने का अमेरिका नीत प्रयास है। इसका लक्ष्य मंगल और अन्य ग्रहों तक अंतरिक्ष अन्वेषण करना है।
Space War के लिए भारत कितना तैयार?
 
अमेरिका में नरेन्द्र मोदी की यात्रा पर करीब से नजर रख रहे संयुक्त राष्ट्र के पॉलिसी अधिकारी सिद्धार्थ राजहंस ने वेबदुनिया को बताया कि आर्टेमिस समझौता भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। आर्टेमिस कार्यक्रम उपग्रह के संयुक्त उपयोग और अंतरिक्ष क्षेत्र में व्यापक सहयोग के लिए यह भारत और अमेरिका के बीच अपनी तरह का यह पहला सहयोग है। इससे जलवायु परिवर्तन डाटा, अंतरिक्ष में खोज और पृथ्‍वी से जुड़े डाटा जुटाने में काफी मदद मिलेगी। अमेरिका के साथ स्पेस समझौते के चलते नासा भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को उन्नत प्रशिक्षण भी प्रदान करेगा।
राजहंस कहते हैं कि इस समझौते के बाद इसरो के नासा के साथ मिलकर काम करने की संभावना है क्योंकि वह 2025 तक मानवयुक्त मिशन के साथ चंद्रमा पर जाने की योजना बना रहा है। साथ ही भारत सामान्य प्रोटोकॉल के तहत चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों की खोज के लिए अमेरिका के नेतृत्व वाले आर्टेमिस कार्यक्रम में भाग ले सकता है। 
 
पीएम मोदी की मौजूदा यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका के संयुक्त बयान में कहा गया कि नासा 2024 में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र में भारतीय अंतरिक्ष यात्री को भेजने के संयुक्त प्रयास के लिए टेक्सास के ह्यूस्टन में जॉनसन अंतरिक्ष केंद्र में भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को आधुनिक प्रशिक्षण उपलब्ध कराने की घोषणा भी की गई है। यह समझौता अंतरिक्ष क्षेत्र विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक्स में महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के आयात पर प्रतिबंधों को आसान बनाने का मार्ग भी प्रशस्त करेगा, जिससे भारतीय कंपनियों को अमेरिकी बाजारों के लिए सिस्टम विकसित करने और नवाचार करने में लाभ होगा।
 
राजहंस कहते हैं कि यह संयुक्त रूप से अधिक वैज्ञानिक कार्यक्रमों में भारत की भागीदारी की सुविधा प्रदान करेगा, मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रमों सहित गतिविधियों में दीर्घकालिक प्रतिबद्धताओं के लिए सामान्य मानकों तक पहुंच की अनुमति देगा और माइक्रो-इलेक्ट्रॉनिक्स, क्वांटम, अंतरिक्ष सुरक्षा आदि सहित अधिक रणनीतिक क्षेत्रों में अमेरिका के साथ मजबूत भागीदारी की अनुमति देगा।
 
आर्टेमिस समझौते पर 13 अक्टूबर, 2020 को 8 संस्थापक राष्ट्रों- ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इटली, जापान, लक्जमबगो, यूएई, यूके और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे और अब भारत भी इसका हिस्सा होगा।
 
आर्टेमिस समझौता एक गैर-बाध्यकारी समझौता है जिसमें कोई वित्तीय प्रतिबद्धता नहीं है। इन समझौतों का उद्देश्य आर्टेमिस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के इरादे से नागरिक अन्वेषण और बाहरी अंतरिक्ष के उपयोग के प्रशासन को बढ़ाने के लिए सिद्धांतों, दिशानिर्देशों और सर्वोत्तम प्रथाओं के व्यावहारिक सेट के माध्यम से एक आम दृष्टि स्थापित करना है।
 
प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा है कि आर्टेमिस समझौते में शामिल होने का फैसला करके, हमने अपने अंतरिक्ष सहयोग में एक बड़ा कदम आगे बढ़ाया है। वास्तव में अब साझेदारी के लिए भारत और अमेरिका के सामने असीमित आसमान है। व्हाइट हाउस ने एक बयान में कहा कि भारत ने आर्टेमिस संधि पर हस्ताक्षर किए हैं जो समस्त मानवजाति के लाभ के लिए अंतरिक्ष अन्वेषण का साझा दृष्टिकोण उपलब्ध कराती है।
 

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