क्या अल नीनो की वजह से मंडरा रहा है सूखे का खतरा, 10 साल में 3 बार जून में कम बारिश

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
शुक्रवार, 26 मई 2023 (14:40 IST)
हर वर्ष जून की शुरुआत में ही दक्षिण-पश्चिम मानसून केरल में दस्तक दे देता है। मौसम विभाग ने इस वर्ष दक्षिण-पश्चिम मानसून के लेट आने की आशंका जताई है। IMD के अनुसार, केरल में इस बार मानसून 4 जून तक दस्तक देगा। दक्षिण-पश्चिम मानसून सामान्य रूप से 1 जून को केरल में प्रवेश करता है। दक्षिणी राज्य में मानसून पिछले साल 29 मई, 2021 में 3 जून और 2020 में 1 जून को पहुंचा था। 
 
क्या होता है सूखा : मौसम विभाग के अनुसार, जब देश में बारिश की कमी 10 प्रतिशत हो तो उसे सूखा वर्ष माना जाता है। जब देश के 20 से 40 प्रतिशत हिस्से में 10 फीसदी बारिश कम हो तो उसे अखिल भारतीय सूखा वर्ष माना जाता है। 40 प्रतिशत से ज्याद हिस्से में 10 फीसदी बारिश कम होने पर भी सूखा वर्ष माना जाता है। गर्मी की अवधि जल वाष्पीकरण को तेज करके सूखे की स्थिति को काफी खराब कर सकती है।
 
3 तरह का सूखा : सामान्यत: देश में सूखा 3 तरह का होता है। मौसम आधारित सूखा, जलीय सूखा और कृषि सूखा। जब देश में लगातार 4 सप्ताह तक बारिश की कमी हो तो उसे कृषि सूखा कहते हैं। सामान्य से 25 फीसदी कम बारिश को जलीय सूखा यानी जलवायुक सूखा कहते हैं। अगर खेतों तक पानी नहीं पहुंच रहा है तो उसे कृषि सूखा कहते हैं।
 
इन क्षेत्रों में क्यों पड़ता है सूखा: वर्षा जल समेत अन्य जल स्रोतों से उपलब्ध पानी के भंडारण एवं संरक्षण की कोई ठोस व्यवस्था नहीं होने के कारण बुंदेलखंड, मराठवाड़ा, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश समेत कई क्षेत्रों को हर साल सूखे के संकट से गुजरना पड़ता है। देश में जल संरक्षण की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण हर साल अरबों घनमीटर वर्षा जल बेकार चला जाता है। भूजल स्तर लगातार गिर रहा है और प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता घटकर चिंताजनक स्थिति में पहुंच गई है। 
 
जून में कम बारिश : 2009, 2014 और 2019 में भी अल नीनो से मानसून में देरी हुई थी। जून में 15.9 सेमी औसत बारिश होती है, लेकिन 2019 में इस माह केवल 10.43 सेमी बारिश ही हुई। मौसम विभाग के अनुसार बीते 100 सालों में यह 5वां जून था, जो सूखा रहा। हालांकि 2019 में जुलाई, अगस्त और सितंबर में अच्छी बारिश हुई थी।
 
क्या है अल नीनो : अल नीनो एक जलवायु पैटर्न है जो पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में सतही जल के असामान्य रूप से तापन की स्थिति को दर्शाता है। यह घटना ला नीना की तुलना में अधिक बार होती है लेकिन यह स्थिति 1 वर्ष से ज्यादा समय तक नहीं रहती। स्पेनिश प्रवासियों ने इसे अल नीनो कहा जिसका अर्थ स्पेनिश में 'छोटा लड़का' होता है। 
 
क्या है ला नीना (La Nina) : स्पेनिश भाषा में ला नीना का अर्थ होता है छोटी लड़की। यह पैटर्न पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागरीय क्षेत्र के असामान्य शीतलन को दर्शाता है। ला नीना की घटनाएं एक वर्ष से 3 वर्ष तक बनी रह सकती हैं।
 
2015 में 9 राज्यों में हाल बेहाल : 2015 में कम बरसात की वजह से महाराष्ट्र, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, राजस्थान, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना समेत देश के 9 राज्यों में हाल बेहाल था। महाराष्‍ट्र में सरकार को ट्रेन से पानी पहुंचाना पड़ा था। सूखे और जल संकट पर शीर्ष अदालत ने बड़े ही तल्ख लहजे में कहा था कि देश के 9 राज्य सूखाग्रस्त हैं और सरकार इस पर आंखें बंद नहीं कर सकती। यह बुनियादी जरूरतों में से एक है और सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह प्रभावित लोगों को इस समस्या से निजात दिलाए।
 
क्या इस वर्ष कम गिरेगा पानी : हालांकि अप्रैल में मौसम एजेंसी स्काईमेट वेदर के अनुसार सामान्य बारिश होने की सिर्फ 25 प्रतिशत संभावना है। इस साल 20 प्रतिशत सूखा पड़ सकता है। लॉन्ग पीरियड एवरेजका 94 प्रतिशत बारिश होने का अनुमान है। सूखा पड़ने की भी 20% संभावना है।
 
स्काईमेट के अनुसार इस बार मानसून पर अल नीनो का खतरा मंडरा रहा है। इस कारण से बारिश सामान्य से काफी कमजोर रहती है और देश को सूखा झेलना पड़ सकता है। मौसम ज्यादा गरम रहने से फसलों पर भी बुरा असर पड़ने की संभावना है।
 
हालांकि आईएमडी ने पिछले महीने कहा था कि भारत में अल नीनो की स्थिति के बावजूद दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम के दौरान सामान्य बारिश होने की उम्मीद है।
 
सूखे ने किया था सिंधू घाटी सभ्यता का अंत : अप्रैल 2018 में भारतीय तकनीकी संस्थान (आईआईटी), खड़गपुर के शोधकर्ताओं की एक टीम ने लंबे अध्ययन के बाद दावा किया था कि हिमालय क्षेत्र में लगभग 900 साल तक जारी सूखे की वजह से ही इस सभ्यता का वजूद खत्म हो गया था। अध्ययन के दौरान पता चला कि उत्तर-पश्चिम हिमालय में लगभग 900 साल तक बरसात ठीक से नहीं हुई। नतीजतन जिन नदियों के किनारे सिंधु घाटी सभ्यता फल-फूल रही थी उनके स्रोत धीरे-धीरे सूखते गए। नतीजतन इस सभ्यता के लोग बेहतर जीवन की तलाश में अपना घर-बार छोड़ कर दूसरे इलाकों में चले गए थे।

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