इसरो रच सकता है बड़ा विश्व रिकॉर्ड, मंगल और शुक्र पर नजर

Webdunia
सोमवार, 13 फ़रवरी 2017 (07:17 IST)
बेंगलूरु। भारत पहली बार शुक्र पर पहुंचने जा रहा है और जल्द ही वह एक बार फिर लाल ग्रह मंगल पर अपनी वापसी करेगा। नए प्रारूप वाले इलेक्ट्रॉनिक बजट के सैकड़ों दस्तावेजों के बीच सरकार की ओर से पृथ्वी के ठीक पड़ोसी ग्रहों पर नई अंतर-ग्रही यात्राओं से जुड़ी पहली औपचारिक स्वीकारोक्ति दर्ज है।
यह खबर ऐसे समय आई है, जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपने एक बड़े प्रक्षेपण की कोशिश कर रहा है। इस बड़े प्रक्षेपण के तहत वह अंतरिक्ष में दो या तीन नहीं, बल्कि पूरे 104 उपग्रह एक ही अभियान के तहत प्रक्षेपित करेगा। दुनिया के किसी भी अन्य देश ने एक ही अभियान में सौ उपग्रह प्रक्षेपित करने की कोशिश तक नहीं की है। पिछला विश्व रिकॉर्ड रूस के नाम है, जिसने वर्ष 2014 में एक ही अभियान में 37 उपग्रह प्रक्षेपित किए थे। इसके लिए उसने परिष्कृत अंतर-द्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल का इस्तेमाल किया था।
 
यदि सबकुछ योजना के अनुरूप चलता है तो 15 फरवरी की सुबह इसरो पीएसएलवी के इस्तेमाल से तीन भारतीय और 101 छोटे विदेशी उपग्रह अंतरिक्ष में भेजेगा। भारत पिछले विश्व रिकॉर्ड की तुलना में बेहतर करने और वह भी ढाई गुना बेहतर करने की कोशिश कर रहा है। अरबों डॉलर के प्रक्षेपण बाजार के नए खिलाड़ी इसरो को उम्मीद है कि वह इस दिशा में एक अहम मापदंड स्थापित करेगा।
 
अंतरिक्ष के प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रेम सर्वविदित है। ऐसा लगता है कि सरकार भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी से प्रसन्न है और तभी वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट में अंतरिक्ष विभाग के लिए 23 प्रतिशत का भारी इजाफा किया है। अंतरिक्ष विज्ञान के हिस्से में, बजट में 'मंगलयान अभियान-2 और शुक्र अभियान' का जिक्र है। मंगल के लिए दूसरे अभियान की अवधि 2021-22 रखी गई है। मौजूदा योजनाओं की मानें तो इसमें लाल ग्रह पर एक रोबोट उतारा जाना भी शामिल है।
 
भारत का वर्ष 2013 का पहला मंगल अभियान पूरी तरह भारतीय था लेकिन इस बार मार्स रोवर बनाने में फ्रांसीसी अंतरिक्ष एजेंसी समन्वय करना चाहती है। इस माह जब नासा की जेट प्रणोदक प्रयोगशाला के निदेशक माइकल एम वाटकिन्स ने भारत की यात्रा की थी तो उन्होंने कहा कि वह कम से कम एक टेलीमेटिक्स मॉड्यूल तो लगाना ही चाहेंगे ताकि नासा के रोवर और भारतीय उपग्रह आपस में बात कर सकें। भारत के दूसरे मंगल अभियान का उद्देश्य संभवत: अच्छा वैज्ञानिक अनुसंधान करना है।
 
शुक्र पर भेजे जाने वाला भारत का पहला अभियान संभवत: एक आधुनिक कक्षा अभियान रहने वाला है। वाटकिन्स ने कहा कि शुक्र आधारित अभियान बेहद अहम है क्योंकि इस ग्रह के बारे में बहुत कम समझ बन पाई है और नासा निश्चित तौर पर भारत की पहली शुक्र यात्रा में साझेदारी करना चाहेगा। इस संदर्भ में नासा और इसरो इस माह बातचीत शुरू कर चुके हैं। इनकी बातचीत का केंद्र इस अभियान के लिए विद्युत प्रणोदन इस्तेमाल करने से जुड़ा अध्ययन है।
 
भारत के अंतर-ग्रही स्वप्नदृष्टा और इसरो के पूर्व अध्यक्ष के. कस्तूरीरंगन का कहना है, 'भारत को इस वैश्विक अन्वेषण का हिस्सा बनना चाहिए। शुक्र और मंगल का अन्वेषण बेहद अहम है क्योंकि इंसानों को निश्चित तौर पर पृथ्वी से परे किसी अन्य आवास स्थल की जरूरत है।' अपने 39वें प्रक्षेपण के करीब भारत का पीएसएलवी रॉकेट अंतरिक्ष में 1378 किलोग्राम के रोबोटों को तैनात करने के लिए लेकर जाएगा।
 
पहला उपग्रह भारत का उच्च विभेदन क्षमता वाला काटरेसैट-2 श्रेणी का उपग्रह होगा, जो भारत के पड़ोसियों- पाकिस्तान और चीन पर करीबी नजर रख सकता है। शेष दो छोटे भारतीय उपग्रहों में प्रत्येक का वजन 10 किलोग्राम है। ये उपग्रहों की नई श्रेणी इसरो नैनो सेटेलाइट्स का हिस्सा हैं।
 
इसके बाद पीएसएलवी अंतरिक्ष में 500 किलोमीटर से अधिक की उंचाई पर 101 सहयात्री उपग्रहों को प्रक्षेपित करेगा। इनमें इस्राइल, कजाकिस्तान, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात से एक-एक और अमेरिका के 96 उपग्रह हैं। चूंकि भारत किफायती और विश्वसनीय विकल्प उपलब्ध करा रहा है, इसलिए हाल ही में अमेरिकी निजी कंपनियों ने इसरो से अपने संबंधों को मजबूत करना शुरू किया है। सभी 101 उपग्रहों को 600 सेकंड से भी कम समय में 27 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से अंतरिक्ष में भेजा जाएगा।
 
कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि धन कमाने के लिए असल में इसरो अंतरिक्ष में कचरा पैदा करने का भागीदार बन रहा है क्योंकि ये छोटे उपग्रह बहुत उपयोगी नहीं हैं। लेकिन अमेरिका में यूनियन ऑफ कन्सर्न्ड साइंटिस्ट्स, कैंब्रिज के वैश्विक सुरक्षा कार्यक्रम से जुड़ी वरिष्ठ वैज्ञानिक लौरा ग्रेगो का कहना है, 'मुझे लगता है कि ये प्रक्षेपण जिम्मेदार तरीके से किए जा सकते हैं और इनसे सभी लोगों को लाभ उपलब्ध कराया जा सकता है। जिम्मेदार अंतरिक्ष प्रक्षेपण और अभियानों की संस्कृति विकसित करना अहम है क्योंकि ज्यादा से ज्यादा देश अंतरिक्ष तक पहुंच रहे हैं।'
 
कस्तूरीरंगन ने कहा कि 'भारत के पास एक ही प्रक्षेपण में कई उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की क्षमता है और इस क्षमता का प्रदर्शन करना निश्चित तौर पर गलत नहीं है क्योंकि इससे भारत की साख बढ़ती है और बाद में यदि इसरो अपने उपग्रहों द्वारा सामूहिक तौर पर कार्य कराने की ओर बढ़ता है तो यह उसके लिए लाभदायक रहेगा।' (भाषा)
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