जैन समाज के विरोध के आगे झुकी झारखंड सरकार, सम्मेद शिखर नहीं बनेगा पर्यटन स्थल

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
नई दिल्ली। झारखंड सरकार ने जैन समाज के विरोध के आगे झुकते हुए सम्मेद शिखर को पर्यटन केन्द्र बनाने का अपना फैसला बदल दिया है। दरअसल, गिरिडीह जिले में स्थित जैन समाज के पवित्र स्थल सम्मेद शिखर को पर्यटन केन्द्र घोषित करने की अधिसूचना के खिलाफ देशभर में पूरा समाज सड़क पर उतर आया था।

11 दिसंबर से पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुए, वहीं 25 दिसंबर से आमरण अनशन की तैयारी थी। इस बीच, खबर है कि झारखंड सरकार ने समाज के विरोध के आगे झुकते हुए अपना फैसला बदल दिया है। अर्थात अब सम्मेद शिखर पर यथास्थिति कायम रहेगी। 
 
स्वयं आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने पारस चैनल पर इस संबंध में घोषणा की है। जिनवाणी चैनल पर भी इस बारे में जानकारी सामने आ रही है। झारखंड सरकार के खिलाफ कई शहरों में जैन समाज के लोगों ने अपने प्रतिष्ठान भी बंद रखे थे, वहीं खून से ‍हस्ताक्षर कर फैसले के खिलाफ अभियान चलाया गया था। 
सद्भावना पारमार्थिक ट्रस्ट के अध्यक्ष निर्मल कुमार पाटोदी ने कहा कि 2019 में झारखंड सरकार के प्रस्ताव पर केन्द्र सरकार ने राजपत्र सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल बनाने संबंधी अधिसूचना राजपत्र में जारी की गई थी। यह समग्र जैन समाज की आस्था के साथ खिलवाड़ है। झारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित यह पर्वत पूरे जैन समाज की आस्था का केन्द्र है। यह पर्वत पर 20 तीर्थंकर भगवंतों का मुक्ति स्थल है। यहां उनके चरण चिन्ह प्राचीन काल से ही अंकित हैं। यहां अनंतानंत आत्माओं ने मुक्ति पाई है। यदि पर्वत पर होटल या अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठान बनाए जाते हैं तो इसकी शुद्धता खत्म हो जाती। 
 
उन्होंने बताया कि 11 दिसंबर से विश्व जैन संगठन के अध्यक्ष संजय जैन के नेतृत्व में झारखंड सरकार के फैसले के खिलाफ पूरे देश में अभियान चलाया गया। 18 दिसंबर को जैन एवं हिन्दू संतों के साथ ही सभी धर्मों के सांसदों ने एक स्वर में अधिसूचना वापस लेने की मांग की थी। कहा जा रहा है कि झारखंड सरकार ने फैसला वापस ले लिया है। यदि सरकार अपना फैसला वापस नहीं लेती तो 25 दिसंबर से आमरण अनशन की तैयारी थी। 
दिगंबर जैन महासमिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक जैन ने कहा कि हमारी एक ही मांग थी कि पर्वत की पवित्रता नष्ट न की जाए। जिस पर्वत पर हम यानी जैन समाज के लोग चप्पल पहनकर नहीं जाते, वहां पर्यटन स्थल बनने के बाद वहां लोग जूते-चप्पल पहनकर पहुंचते, शराब-मांस आदि का सेवन करते, जबकि हम लोग तो प्याज-लहसुन भी नहीं खाते। जैन ने बताया कि हम इस पवित्र पर्वत पर 27 किलोमीटर पैदल चलकर नंगे पैर ही पहुंचते हैं। हमने झारखंड सरकार से किसी भी तरह की सुविधा की मांग नहीं की है, हम सिर्फ यही चाहते हैं कि सम्मेद शिखर जी की पवित्रता भंग न हो। 

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