क्या बंधे हाथ सेना कर सकती है आतंकियों का मुकाबला?

सुरेश एस डुग्गर
मंगलवार, 30 जनवरी 2018 (14:02 IST)
श्रीनगर। क्या कोई सुरक्षाकर्मी दोनों हाथों को पीठ पीछे रख कर बंदूकधारी आतंकियों का मुकाबला कर सकता है? जवाब हमेशा ना में ही इसलिए रहेगा क्योंकि यह कभी संभव नहीं हो सकता। और अगर उसके हाथों में बंदूक देकर उसे सामने से फायर करने वाले पर गोली न दागने का हुक्म दिया जाए तो यह भी संभव नहीं है। कुछ ऐसा ही राज्य के राजनीतिक दल कश्मीर में चाहते हैं। वे चाहते हैं कि सुरक्षाबलों को आतंकवाद से निपटने की खातिर जो अधिकार उन्हें मिले हुए हैं उन्हें या तो पूरी तरह से हटाया जाए या फिर उनमें कटौती की जाए।
 
सेना समेत अन्य सुरक्षाबल इसके पक्ष में नहीं हैं। आखिर वे इसके पक्ष में हों भी कैसे क्योंकि इन अधिकारों के बिना आतंकवाद का मुकाबला करने के प्रति सोचा भी नहीं जा सकता है। सेना तो अब इसके प्रति चेताने भी लगी है कि अगर इस दिशा में कोई कदम उठाया गया तो सेना को तो नुक्सान पहुंचेगा ही, साथ ही कश्मीर में चल रहे आतंकवाद विरोधी अभियानों को भी जबरदस्त धक्का पहुंचेगा।
 
‘आप खुद सोचें जिन आतंकियों के मुकाबले में आपको खुद कानूनी पचड़े में पड़ने का खतरा हो तो आप उनसे मुकाबला कैसे कर सकते हैं,’एक सेनाधिकारी का कहना था। वह आगे कहता था कि क्या आप यह सोच सकते हैं कि आप जिस आतंकी का मुकाबला करने जा रहे हैं वह आप पर फूल बरसाएगा। ‘संभव नहीं है। तो फिर विशेषाधिकारों में कटौती क्यों,’ रक्षाधिकारियों का मत था।
 
अभी तक रक्षाधिकारियों ने इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की थी लेकिन अब जबकि बार-बार इसके प्रति संकेत दिए जाने लगे हैं कि कश्मीर में आतंकवाद से मुकाबला करने की खातिर अपनी जान की बाजी लगाने वाले सुरक्षाकर्मियों के अधिकारों में कटौती की जा सकती है, तो सेनाधिकारियों ने प्रतिक्रियाएं देनी आरंभ की हैं।
 
वर्ष 1990 में आतंकवाद से मुकाबला करने की खातिर सुरक्षाबलों को मिलने वाले विशेषाधिकारों की वापसी की मांग अक्सर राज्य के राजनीतिक दलों, खासकर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, द्वारा की जाती रही है। नेकां ने भी इस मुद्दे पर कभी कभार उस समय आवाज बुलंद की थी जब उसे पीडीपी से राजनीतिक खतरा महसूस हुआ हो।
 
पर अब जबकि इस मुद्दे पर केंद्र सरकार गंभीरता से विचार करने लगी है, सिर्फ सेना ही नहीं बल्कि वे अन्य सभी सुरक्षाबल इसके खिलाफ आवाज उठाने लगे हैं जो कश्मीर में आतंकवाद से मुकाबले को जान की बाजी लगाए हुए हैं। इसमें जम्मू कश्मीर पुलिस भी शामिल है जिसे इन सालों में कई बार सेना के खिलाफ भी उस समय एफआईआर दर्ज करनी पड़ी थी जब लोगों का आक्रोश बढ़ा था।
 
हालांकि पीडीपी इन विशेषाधिकारों की वापसी की मांग यह आरोप लगाते हुए कर रही है कि इस कारण कश्मीरियों के मानवाधिकारों का हनन हो रहा है। कई बार पीडीपी ने कश्मीरियों के साथ सहानुभूति जताते हुए व्याप्क विरोध प्रदर्शन भी किए हैं जिनके पीछे की कड़वी सच्चाई यही थी कि यह सब वोट की राजनीति की खातिर किया गया था।

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