खाकी की खादी को सलामी: मध्यप्रदेश में पुलिस का नया तमाशा, अब हर विधायक को सैल्यूट का ड्रामा!

वेबदुनिया न्यूज डेस्क
मंगलवार, 29 अप्रैल 2025 (16:54 IST)
फरमान के पीछे का 'सियासी तमाशा' : सोशल मीडिया पर इस आदेश को लेकर बहस छिड़ी है। कुछ का मानना है कि यह नौकरशाही और जनप्रतिनिधियों के बीच तनाव कम करने की कोशिश है। लेकिन विपक्ष ने इसे पुलिस की बेइज्जती करार दिया। पीसीसी चीफ जीतू पटवारी ने कहा, "यह आदेश खाकी का अपमान है। पुलिस का मनोबल तोड़कर लोकतंत्र पर हमला किया जा रहा है।" सवाल वाजिब है—जब पुलिस सल्यूट ठोकने में व्यस्त होगी, तो अपराधियों को कौन रोकेगा?

क्या दूसरे राज्यों में भी ऐसा सर्कस?
हमने अन्य राज्यों में इस तरह के आदेशों की खोज की, लेकिन मध्यप्रदेश जैसा अनोखा तमाशा कहीं नहीं मिला। हालांकि, कुछ राज्यों में पुलिस और जनप्रतिनिधियों के बीच तनाव की खबरें जरूर हैं। 2023 में उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में बीजेपी विधायक प्रदीप चौधरी पर थाने में हंगामा करने का आरोप लगा था। 2024 में बिहार के पटना में जेडीयू विधायक गोपाल मंडल और पुलिस के बीच तीखी झड़प हुई, जब विधायक ने पुलिस पर पक्षपात का इल्जाम लगाया। लेकिन इन राज्यों में कहीं भी पुलिस को सल्यूट करने का लिखित फरमान नहीं जारी हुआ।

छत्तीसगढ़ में 2022 में एक अनौपचारिक प्रथा की खबर आई थी, जहां पुलिस को नेताओं के स्वागत में विशेष व्यवस्था करने को कहा जाता था, लेकिन वहां भी कोई आधिकारिक आदेश नहीं था। मध्यप्रदेश ने इस 'सैल्यूट सर्कस' में सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।

जनता का तल्ख तंज : "एक्स" पर लोग इस आदेश पर जमकर मजे ले रहे हैं। एक यूजर ने लिखा, "अब पुलिसवाले सल्यूट करते-करते थक जाएंगे, और चोर-डकैत मजे में घूमेंगे।" भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 हर नागरिक को समानता और सुरक्षा का हक देते हैं। पुलिस का काम है कानून लागू करना, न कि नेताओं की चापलूसी।

सैल्यूट या सलामती?
इस फरमान ने मध्यप्रदेश की सियासत में नया रंग भर दिया। कुछ इसे वोट की राजनीति बता रहे हैं, तो कुछ नौकरशाही पर नकेल कसने की कोशिश। एक पुलिसकर्मी ने मजाक में कहा, "अब हम सैल्यूट का हिसाब रखेंगे—विधायक जी को दो, सांसद जी को तीन, और पार्षद जी को आधा!"

लेकिन असल सवाल यह है—क्या हम चाहते हैं कि हमारी पुलिस अपराधियों से लड़े, या सैल्यूट की परेड करे? यह आदेश न सिर्फ पुलिस का मनोबल तोड़ रहा है, बल्कि आम आदमी की सुरक्षा पर भी सवाल उठा रहा है। मध्यप्रदेश का यह 'सैल्यूट ड्रामा' हमें सोचने पर मजबूर करता है कि खाकी की असली ताकत कानून लागू करने में होनी चाहिए, न कि खादी की चाकरी में। तो, अगली बार जब आप मध्यप्रदेश में किसी पुलिसवाले को सैल्यूट ठोकते देखें, तो हंसिए मत—यह खाकी का खादी को सलाम है। लेकिन सवाल वही—आम आदमी की सलामती का क्या? हमें अपनी राय जरूर शेयर करें।
नोट: यह लेख व्यंग्यात्मक है और इसका मकसद मनोरंजन के साथ-साथ विचार उत्पन्न करना है

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