मोहन दास करमचंद गांधी यानी महात्मा गांधी का भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अविस्मरणीय योगदान है। गांधीजी की सबसे बड़ी विशेषता यही थी कि उन्होंने तब के बिखरे हुए समाज को एकजुट कर स्वतंत्रता प्राप्ति के महायज्ञ में लगा दिया था। बापू के नेतृत्व में यूं तो कई छोटे-बड़े कई आंदोलन हुए, लेकिन कुछ ऐसे भी आंदोलन थे जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन और भारतीय समाज की दिशा बदलने का महत्वपूर्ण कार्य किया। आइए, जानते हैं गांधी के 5 बड़े आंदोलनों के बारे में...
चंपारण आंदोलन : बिहार के चंपारण जिले में सन 1917-18 महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह था। इसे चम्पारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। उस समय अंग्रेजों और और उनके पिट्ठू जमींदारों द्वारा हजारों भूमिहीन मजदूर एवं गरीब किसानों को खाद्यान के बजाय नील एवं अन्य नकदी फसलों की खेती करने के लिए मजबूर किया जा रहा था। अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ गांधी ने उस समय चंपारण पहुंचकर इस आंदोलन का शंखनाद किया। उन्होंने उस समय जमींदारों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों को नेतृत्व किया। तब उनके समर्थन में हजारों की संख्या में किसान एकत्रित हो गए थे। पुलिस सुपरिंटेंडेंट ने गांधीजी को जिला छोड़ने का आदेश दिया, लेकिन उन्होंने आदेश को मानने से इंकार कर दिया था।
असहयोग आंदोलन : रॉलेट सत्याग्रह की सफलता के बाद 1 अगस्त 1920 महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन के माध्यम से गांधीजी ने लोगों से आग्रह किया कि जो भारतीय उपनिवेशवाद का खत्म करना चाहते हैं वे स्कूलों, कॉलेजों और न्यायालय न जाएं और न ही कर चुकाएं। यह एक तरह से अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों की असहयोग की शुरुआत थी। तब गांधी जी ने कहा था कि यदि असहयोग का ठीक ढंग से पालन किया जाए तो भारत एक वर्ष के भीतर स्वराज प्राप्त कर लेगा। गांधी के इस आंदोलन ने अंग्रेजी साम्राज्य को हिलाकर रख दिया था।
नमक सत्याग्रह : नमक सत्याग्रह महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए प्रमुख आंदोलन में से एक था। इसे दांडी मार्च के नाम से भी जाना जाता है। नमक पर ब्रिटिश राज के एकाधिकार के खिलाफ 12 मार्च, 1930 में बापू ने अहमदाबाद के पास स्थित साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिनों का पैदल मार्च निकाला था। उस दौर में अंग्रेजों ने ने चाय, कपड़ा, यहां तक कि नमक जैसी चीजों पर अपना एकाधिकार स्थापित कर रखा था। उस समय बापू ने दांडी में नमक बनाकर अंग्रेजी कानून को तोड़ा था।
दलित आंदोलन : पूना समझौते के बाद गांधी जी ने खुद को पूरी तरह से हरिजनों की सेवा में समर्पित कर दिया। जेल से छूटने के बाद उन्होंने 1932 ई. में 'अखिल भारतीय छुआछूत विरोधी लीग' की स्थापना की। साथ ही 8 मई 1933 से छुआछूत विरोधी आंदोलन की शुरुआत की। उनका यह आंदोलन समाज से अस्यपृश्यता मिटाने के लिए था। उन्होंने हरिजन नामक साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन भी किया था। हरिजन आंदोलन में मदद के लिए गांधी जी ने 21 दिन का उपवास किया था। दलितों के लिए हरिजन शब्द गांधी जी ने ही दिया था। हरिजन से उनका तात्पर्य था ईश्वर का आदमी।
भारत छोड़ो आंदोलन : भारत छोड़ो आंदोलन द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 9 अगस्त 1942 को आरंभ किया गया था। क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद बापू ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ अपना तीसरा बड़ा आंदोलन छेड़ने का फैसला लिया। 8 अगस्त 1942 की शाम को बंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बंबई सत्र में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नारा दिया गया था। हालांकि गांधी जी को तत्काल गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन देश भर के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फोड़ के जरिए आंदोलन चलाते रहे। पश्चिम में सतारा और पूर्व में मेदिनीपुर जैसे कई जिलों में स्वतंत्र सरकार की स्थापना कर दी गई थी।