Narendra Modi cabinet 3.0: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने 72 सदस्यीय जंबो मंत्रिमंडल के साथ काम की शुरुआत कर दी है। तीन कार्यकाल में मोदी का यह सबसे बड़ा मंत्रिमंडल है। 2014 में उन्होंने 46 मंत्रियों के साथ काम शुरू किया था, जबकि 2019 में यह संख्या बढ़कर 58 हो गई थी। मोदी ने तीसरे कार्यकाल की शुरुआत में किसान सम्मान निधि की किश्त जारी कर सबसे पहला निर्णय किसानों के हित में लिया है। इसका 9.3 करोड़ किसानों को फायदा होगा। हालांकि भाजपा को पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में किसानों की नाराजगी के चलते भाजपा को सीटें गंवानी पड़ी हैं।
मोदी ने एक और चौंकाने वाले फैसला लिया है। उत्तर प्रदेश में 29 सीटों गंवाने के बावजूद सबसे ज्यादा मंत्रियों की संख्या इसी राज्य से है। यूपी से 10 मंत्री हैं। इनमें 2 सहयोगी दलों के हैं। दूसरे नंबर पर बिहार से 8 मंत्री बनाए गए हैं। मोदी सरकार 2.0 के 34 मंत्रियों को बरकरार रखा गया है। इस बीच, एक और चौंकाने वाली खबर है कि केरल से सांसद बने मलयाली फिल्म अभिनेता सुरेश गोपी ने शपथ लेने के अगले ही इस्तीफे की पेशकश की है। उन्हें राज्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई थी। हालांकि सुरेश गोपी ने इस खबर के सामने आने के बाद कहा कि यह झूठ है, उन्होंने इस्तीफे की पेशकश नहीं की है।
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स्मृति ईरानी, निरंजन ज्योति, राजीव चंद्रशेखर, अजय मिश्रा उन नेताओं में शुमार हैं, जो चुनाव ही नहीं जीत पाए, जबकि मीनाक्षी लेखी और जनरल वीके सिंह जैसे दिग्गजों को पार्टी ने इस बार टिकट ही नहीं दिया। गुजरात की राजकोट सीट से चुनाव जीते पूर्व कैबिनेट मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला को राजपूत समाज से हुए विवाद का खामियाजा भुगतना पड़ा। अनुराग ठाकुर चुनाव तो जीते हैं, लेकिन उन्हें संगठन में कोई जिम्मेदारी दी जा सकती है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस बार मोदी मंत्रिमंडल में बड़ी भूमिका में नजर आ सकते हैं।
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नाराजगी भी शुरू : लोकसभा चुनाव के बाद एक बात तो साफ हो गई है कि इस बार मोदी सरकार बैसाखियों के सहारे ही चलने वाली है। हालांकि एनडीए के सहयोगियों को मिला लें तो सांसदों की संख्या 293 है, जो कि बहुमत के आंकड़े से 21 ज्यादा है। मोदी सरकार को चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पाटी, नीतीश कुमार के जनता दल, शिवसेना, आरएलडी, जनसेना जैसे दलों का समर्थन प्राप्त है।
मंत्रिमंडल गठन में सभी सहयोगियों को साधने की कोशिश भी की गई है, लेकिन सरकार गठन के साथ ही रूठने का दौर भी शुरू हो गया है। एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल ने यह कहकर स्वतंत्र प्रभार वाला मंत्रालय लेने से साफ इंकार कर दिया कि वे मनमोहन सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं, ऐसे में यदि वे मंत्री पद स्वीकार करते हैं तो यह उनका डिमोशन होगा। शिवसेना सांसद शिवसेना सांसद श्रीरंग बारणे ने कहा कि 7 सांसद होने के बाद भी कैबिनेट मंत्री का पद नहीं मिला। महाराष्ट्र चुनाव से पहले इन दोनों ही दलों की नाराजगी भाजपा की मुश्किलें बढ़ा सकती है। रूठने-मनाने का यह दौर पूरे पांच साल ही चलने की संभावना है। क्योंकि भाजपा नीत सरकार को हर समय सहयोगियों की नाराजगी का डर बना रहेगा।
इस बीच, एमवीए नेताओं ने भी एनसीपी और शिवसेना पर जमकर निशाना साधा। शिवसेना-यूबीटी के प्रवक्ता संजय राउत ने शिवसेना और एनसीपी पर निशाना साधते हुए कहा कि कहा कि मोदी मंत्रिमंडल में दोनों दलों के बहुत कम प्रतिनिधित्व ने साबित कर दिया कि भाजपा ने उन्हें उनकी जगह दिखा दी है। जब आप किसी का गुलाम बनने का फैसला करते हैं तो यही पाते हैं। कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने कहा- यदि अजित पवार नीत राकांपा राज्यमंत्री का पद स्वीकार नहीं करती है, तो उन्हें भविष्य में कोई कैबिनेट मंत्री पद भूल जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अजित पवार को देर-सवेर महसूस होगा कि भाजपा के पास अपने सहयोगियों के लिए इस्तेमाल करो और हटाओ की नीति है।
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नीतीश कुमार पर रहेगी नजर : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजग की बैठक में प्रधानमंत्री के रूप में तीसरे कार्यकाल के लिए मोदी के नाम का प्रस्ताव रखा और कहा कि उनकी पार्टी मोदी के कार्यकाल में हर दिन भाजपा के साथ खड़ी रहेगी। उन्होंने कहा कि हम मोदी के सभी फैसलों में उनके साथ खड़े रहेंगे। इतना ही नहीं नीतीश तो मोदी के पांवों में भी झुक गए। लेकिन, उनके पलटी मारने के इतिहास से भाजपा भी पूरी तरह वाकिफ है। उनकी पार्टी ने यह कहकर सनसनी फैलाने की कोशिश की थी कि नीतीश को प्रधानमंत्री पद ऑफर हुआ था। नीतीश कब पलट जाएं कोई नहीं जानता। यह भी देखना होगा कि समान नागरिक संहिता, एनआरसी आदि के मुद्दे पर नीतीश भाजपा का साथ देते हैं या फिर उससे पल्ला झाड़ते हैं।
यह भी सवाल लोगों के मन में है कि क्या मोदी सरकार नीतीश द्वारा बिहार में शुरू की गई जाति आधारित जनगणना का समर्थन करेगी? तेलुगू देशम पार्टी पर एनडीए में सबसे बड़े दल के रूप में शामिल है, ऐसे में पीएम मोदी को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि चंद्रबाबू नायडू किसी बात को लेकर नाराज न हों। इस बीच, विपक्ष ने भी कहना शुरू कर दिया है कि यह सरकार लंबी नहीं चल पाएगी। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से कहा है कि वे तैयार रहें, 6 महीने से 1 साल के भीतर मध्यावधि चुनाव हो सकते हैं। ऐसे में कोई संदेह नहीं कि मोदी का तीसरा कार्यकाल सबसे चुनौतीपूर्ण रहने वाला है।
अब नए भाजपा अध्यक्ष की तलाश : मोदी मंत्रिमंडल में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को भी कैबिनेट मंत्री के रूप में स्थान दिया गया है। अब इस बात को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई कि पार्टी का नया अध्यक्ष कौन होगा। वैसे भी नड्डा एक्सटेंशन पर चल रहे थे। भाजपा अध्यक्ष पद की दौड़ में तीन नाम सबसे ऊपर चल रहे हैं। इनमें विनोद तावड़े, सुनील बंसल और अनुराग ठाकुर के नाम प्रमुख हैं।
बंसल को अमित शाह का करीबी माना जाता है, इसलिए वे इस दौड़ में सबसे आगे बताए जा रहे हैं। वहीं, पार्टी को अगला चुनाव महाराष्ट्र में लड़ना है, इस लिहाज से विनोद तावड़े मुफीद रहेंगे। कहा तो यह भी जा रहा है कि ठाकुर के नाम की लाटरी भी लग सकती है। वैसे मोदी-शाह की लोगों को चौंकाने की आदत रही है, ऐसे में कोई नया नाम भी सामने आ सकता है। यदि महिला अध्यक्ष की बात चलती है तो स्मृति ईरानी का नाम भी आगे आ सकता है। इससे पहले शिवराज सिंह चौहान, धर्मेन्द्र प्रधान और भूपेन्द्र यादव का नाम भी अध्यक्ष पद के लिए चला था, लेकिन इन तीनों को ही मोदी मंत्रिमंडल में जगह मिल गई है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala