अमित शाह के हिंदी पर बयान से विपक्ष नाराज, दक्षिण के राज्यों ने लगाया गंभीर आरोप

Webdunia
शनिवार, 9 अप्रैल 2022 (10:08 IST)
नई दिल्ली/चेन्नई/कोलकाता। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा हिंदी भाषा पर जोर दिए जाने की शुक्रवार को तीखी आलोचना की गई और विपक्षी दलों ने इसे भारत के बहुलवाद पर हमला बताया और कहा कि वे हिंदी थोपने के कदम को विफल करेंगे।

मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने शाह पर हिंदी थोपने का प्रयास करने का आरोप लगाया और कहा कि ऐसा करके वह भाषा का नुकसान कर रहे हैं। 
 
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि हिंदी 'राजभाषा' है, न कि 'राष्ट्रभाषा' जैसा कि राजनाथ सिंह ने संसद में तब कहा था जब वह गृह मंत्री थे। रमेश ने कहा, 'मैं हिंदी के साथ बहुत सहज हूं, लेकिन मैं नहीं चाहता कि इसे किसी पर थोपा जाये। अमित शाह इसे थोपकर हिंदी का नुकसान कर रहे हैं।'
 
 
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि हिंदी का मुद्दा उठाकर गृह मंत्री महंगाई के मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि क्या आपका हिंदी उपदेश महंगाई या बेरोजगारी का समाधान करेगा- नहीं। आपका उद्देश्य चीजों को थोपकर, जबरदस्ती करके आपसी अविश्वास पैदा करना है।
 
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने कहा कि शाह का हिंदी पर जोर भारत की ‘अखंडता और बहुलवाद’ के खिलाफ है और यह अभियान सफल नहीं होगा। स्टालिन की पार्टी द्रमुक हिंदी विरोधी आंदोलनों में आगे रही है जो कई बार हिंसक हो चुका है। यह विचार देश की अखंडता को बर्बाद कर देगा।
 
 
पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने कहा कि गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपने के भाजपा नीत केंद्र के किसी भी प्रयास का विरोध किया जाएगा। तृणमूल ने कहा कि हिंदी देश की राष्ट्रीय भाषा नहीं है। पार्टी ने कहा कि शाह का 'एक राष्ट्र, एक भाषा, एक धर्म' का एजेंडा कभी पूरा नहीं होगा।
 
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सिद्धरमैया ने कहा कि हिंदी भारत की राष्ट्र भाषा नहीं है। उन्होंने भाजपा पर गैर-हिंदी भाषी राज्यों के खिलाफ ‘‘सांस्कृतिक आतंकवाद’’ के अपने एजेंडे को शुरू करने की कोशिश करने का आरोप लगाया।
 
सिद्धरमैया ने ट्वीट किया कि एक कन्नड़भाषी के रूप में, मैं गृह मंत्री अमित शाह की राजभाषा और संचार के माध्यम को लेकर की गई टिप्पणी का विरोध करता हूं। हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा नहीं है और हम ऐसा कभी नहीं होने देंगे।
 
उन्होंने कहा कि भाषाई विविधता हमारे देश का सार है और हम एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करेंगे। बहुलवाद ने हमारे देश को एक साथ रखा है और भाजपा द्वारा इसे खत्म करने के किसी भी प्रयास का कड़ा विरोध किया जायेगा।
 
 
उन्होंने सदस्यों को बताया कि मंत्रिमंडल का 70 प्रतिशत एजेंडा अब हिंदी में तैयार किया जाता है। वक्त आ गया है कि राजभाषा हिंदी को देश की एकता का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया जाए। हिंदी की स्वीकार्यता स्थानीय भाषाओं के नहीं, बल्कि अंग्रेजी के विकल्प के रूप में होनी चाहिए।

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