पं‍डि‍त जसराज, जो वि‍देशी धरती पर भारतीय शास्‍त्रीय संगीत की लौ की तरह जगमगाते रहे

नवीन रांगियाल
किसी देवस्‍थल के समक्ष जलता हुआ दीपक जैसे भारतीय परंपरा में प्रार्थना का प्रतीक होता है, ठीक वैसे ही पंडि‍त जसराज अमेरिका में भारत के शास्‍त्रीय संगीत का प्रतीक थे। वे वि‍देशी धरती पर भारतीय शास्‍त्रीय संगीत की लौ की तरह जगमगाते रहे थे।

विदेशी धरती पर लंबा वक्‍त गुजारने के बाद भी उन्‍होंने कृष्‍ण और हनुमान की भक्‍त‍ि और अपने संगीत का साथ नहीं छोड़ा था। यहां तक कि अपना पहनावा भी नहीं।

शास्त्रीय गायक पंडित जसराज का 90 साल की उम्र में अमेरिका के न्‍यूजर्सी में निधन हो गया। मेवाती घराने से ताल्लुक रखने रखने वाले पंडित जसराज का जन्म 28 जनवरी 1930 को हिसार में हुआ था।

जानकार हैरानी होगी कि भारतीय शास्‍त्रीय संगीत का यह सबसे अग्रणी नाम क्रिकेट का भी दीवाना था। एक इंटरव्‍यू में उन्‍होंने कहा था कि उन्‍हें 80 के दशक से ही क्र‍िकेट से प्‍यार है। यह वह दौर था जब क्रिकेट की दीवानगी लोगों के सि‍र चढ़कर बोलती थी। पंडि‍त जी रेडि‍यो को अपने कान पर लगाकर घंटों तक कमेंटरी सुनते थे। हर चौके, छक्‍के से लेकर हर विकेट पर अपनी प्रति‍क्रि‍या देते थे।

दीवाना बनाना है तो...
बेगम अख्‍तर की गजल ‘दीवाना बनाना है तो दीवाना बना’ से किसे प्‍यार नहीं है, लेकिन पंडि‍त जी उसके सबसे बड़े दीवाने थे। जहां भी यह गजल बजती थी वे रुक जाते और सुनकर ही आगे बढ़ते थे। कहा तो यहां तक जाता है कि वे अपने स्‍कूल से बंक मारकर कई घंटों तक उस रेस्‍तरां में बैठे रहते थे, जहां रेडि‍यो में बेगम अख्तर का यह गीत बजता था।

संगीत की जो वि‍रासत पंडि‍त जी छोड़कर गए ऐसा नहीं है कि वो विरासत उन्‍हें बेहद आसानी से मिल गई थी, संगीत के सफर की शुरुआत में उन्‍होंने अपने पिता से प्रशिक्षण शुरू किया, लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण उन्होंने अपने भाई और गुरु पंडित मनीराम के साथ एक तबलावादक के रूप में भी काम करना पड़ा।

...और ले ली प्रतीज्ञा
साल 1946 में जब वे कलकत्ता चले गए तो वहां उन्होंने एक शास्त्रीय आयोजन में तबले का वादन किया और इसके बाद वह ऑल इंडिया रेडियो के कलाकार के रूप काम करने लगे। पहले वे तबला वादक ही बनना चाहते थे। लेकिन उस दौर में तबला वादक को कुछ हीन भावना से देखा जाता था, जिसके बाद उन्‍होंने एक ऐसे संगीत कलाकार बनने की ठान ली जि‍सकी ख्याति‍ भारत से लेकर विदेशों तक हो। 14 साल की उम्र में जसराज ने एक प्रतिज्ञा ली की जब तक वह एक संगीतकार नहीं बन जाते तब तक वह अपने बाल नहीं कटवाएंगे। 16 की उम्र में गायन का प्रशिक्षण का श्रीगणेश किया और 22 की उम्र में पहला लाइव शो किया।

जब बड़े गुलाम अली को कहा ना
एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था साल 1960 में एक अस्पताल में उनकी मुलाकात बड़े गुलाम अली खान से हुई थी, तब गुलाम अली ने जसराज को उनका शिष्य बनने के लिए कहा, लेकिन जसराज ने मना कर दि‍या। उन्‍होंने कहा था कि मनीराम उनके पहले से ही गुरू हैं, वे कैसे अब दूसरा गुरू बना ले।

अपने संगीत सफर के दौरान उन्‍होंने कई सम्‍मान मिले। एक उम्र के बाद वे अमेरिका में बस गए, लेकिन न तो भारतीय वेशभुषा को त्‍यागा और न ही संगीत के सुरों को छोड़ा। इसके विपरीत वे भारतीय संगीत परंपरा को तमाम विदेशी धरती पर प्रसारित करते रहे। उन्‍हें भारतीय शास्‍त्रीय संगीत की झि‍लमिलाती लौ की तरह हमेशा याद रखा जाएगा।  

सम्बंधित जानकारी

Show comments

महाराष्ट्र में कौनसी पार्टी असली और कौनसी नकली, भ्रमित हुआ मतदाता

Prajwal Revanna : यौन उत्पीड़न मामले में JDS सांसद प्रज्वल रेवन्ना पर एक्शन, पार्टी से कर दिए गए सस्पेंड

क्या इस्लाम न मानने वालों पर शरिया कानून लागू होगा, महिला की याचिका पर केंद्र व केरल सरकार को SC का नोटिस

MP कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और MLA विक्रांत भूरिया पर पास्को एक्ट में FIR दर्ज

टूड्रो के सामने लगे खालिस्तान जिंदाबाद के नारे, भारत ने राजदूत को किया तलब

कोविशील्ड वैक्सीन लगवाने वालों को साइड इफेक्ट का कितना डर, डॉ. रमन गंगाखेडकर से जानें आपके हर सवाल का जवाब?

Covishield Vaccine से Blood clotting और Heart attack पर क्‍या कहते हैं डॉक्‍टर्स, जानिए कितना है रिस्‍क?

इस्लामाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला, नहीं मिला इमरान के पास गोपनीय दस्तावेज होने का कोई सबूत

पुलिस ने स्कूलों को धमकी को बताया फर्जी, कहा जांच में कुछ नहीं मिला

दिल्ली-NCR के कितने स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी, अब तक क्या एक्शन हुआ?

अगला लेख