राहुल काल में कैसा होगा कांग्रेस का हाल

विभूति शर्मा
जो लोग यह मानकर चल रहे हैं कि राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने से कांग्रेस अपना खोया गौरव हासिल कर लेगी, तो वे उसी गलतफहमी में जी रहे हैं, जो राजीव गांधी दौर के बाद से कांग्रेस में चली आ रही है।
 
 
1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर के कारण नरसिंहराव के नेतृत्व में भले ही अल्पमत की सरकार बन गई हो, लेकिन तब से अब तक उसे स्पष्ट बहुमत का दौर लौटने का इंतजार ही है। सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद जब कांग्रेस को केंद्र में सरकार बनाने का अवसर मिला, तो सोनिया के विदेशी मूल का होने के मुद्दे ने तूल पकड़ लिया और वे प्रधानमंत्री नहीं बन सकीं, राहुल तब राजनीति के कच्चे खिलाड़ी थे, इसलिए वंशबेल को बढ़ने में सफलता नहीं मिली और मनमोहन सिंह को मजबूरन प्रधानमंत्री बनाना पड़ा।
 
 
इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के सान्निध्य में रहते हुए सोनिया इतनी माहिर तो हो ही चुकी थीं कि राजनीति की बिसात पर किस मोहरे को किस भूमिका में लेना है। इसी के चलते उन्होंने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनवाया था अन्यथा तब प्रणब मुखर्जी ज्यादा योग्य और प्रभावशाली नेता थे। अगर मुखर्जी तब प्रधानमंत्री बन गए होते तो संभवतः आज कांग्रेस से वंशवाद समाप्त हो जाता। अगर आज राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बन रहे हैं तो यह सोनिया की सूझबूझ का ही नतीजा है।
 
 
वैसे देखा जाए तो पिछले दस-पंद्रह सालों में अपना मज़ाक उड़वाते-उड़वाते राहुल गांधी ने आखिर अपने आप को नेता साबित करवा ही लिया, हालांकि अब उनमें परिपक्वता की झलक भी नजर आने लगी है। गुजरात चुनाव से पहले छुट्टियां बिताकर लौटे राहुल में अनेक बदलाव दिखाई दे रहे हैं, अब वे ऐसी बातें नहीं करते जिनका कथित मोदीभक्त मज़ाक बनाते थे। वे भाजपा की चालों का उसी की तर्ज पर जवाब देने लगे हैं। हिन्दू और मुस्लिम कार्ड का सधा हुआ उपयोग करने लगे हैं, उनके भाषणों में पैनापन झलकने लगा है। 
 
वर्तमान दौर में लाख टके का सवाल तो यह है कि अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही कांग्रेस को राहुल गांधी कैसे टेका लगा पाएंगे, क्योंकि वंशवाद के साए में पल रही पार्टी ने कभी दूसरा नेतृत्व पनपने ही नहीं दिया। ऐसा नहीं है कि जवाहरलाल नेहरू के दौर के बाद पार्टी में अच्छे नेताओं का अभाव था, लेकिन इंदिरा गांधी की तिकड़मों और कुछ चापलूसों की हरकतों ने तब कांग्रेस में फूट के बीज बोए और इंदिरा एक सफल नेता होते हुए तानाशाह बनती गईं, उन्होंने पार्टी में दूसरी लाइन का कन्सेप्ट ही समाप्त कर दिया, जिसका खामियाजा पार्टी आज भुगत रही है।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

Chandrayaan-3 को लेकर ISRO का बड़ा खुलासा, क्या सच होगा आशियाने का सपना

Disha Salian Case से Maharashtra में सियासी भूचाल, अब नारायण राणे का बयान, उद्धव ठाकरे का 2 बार आया कॉल

Airlines ने लंदन हीथ्रो Airport पर फिर शुरू कीं उड़ानें, आग लगने से 18 घंटे बाधित था परिचालन

नागपुर हिंसा पर CM फडणवीस का नया बयान, दंगाइयों से होगी नुकसान की वसूली, नहीं चुकाने पर चलेगा बुलडोजर

Microsoft और Google को टक्कर देने की तैयारी में मोदी सरकार, बनाएगी Made in India वेब ब्राउजर

सभी देखें

नवीनतम

UP : मथुरा में होली पर दलितों को जबरन लगाया रंग, एक-दूसरे पर किया हमला, 42 लोगों के खिलाफ FIR दर्ज

UP : मथुरा में महिला से दुष्‍कर्म, दोषी तांत्रिक को 10 साल की सजा

UP : नाबालिग छात्रा को अगवा कर किया दुष्कर्म, आरोपी शिक्षक गिरफ्तार

Farmers Protest : किसानों ने जलाए मुख्यमंत्री भगवंत मान के पुतले, शंभू और खनौरी बॉर्डर से हटाए जाने का किया विरोध

LIVE : यशवंत वर्मा पर लगे आरोपों की जांच के लिए 3 सदस्यीय समिति का गठन

अगला लेख