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भारतीय सैनिकों की हिम्मत देख पहाड़ भी झुका लेते हैं सिर

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सुरेश एस डुग्गर

, मंगलवार, 6 अक्टूबर 2020 (18:20 IST)
जम्मू। लद्दाख में चीन सीमा पर हवा के तूफानी थपेड़े ऐसे की एक पल के लिए खड़ा होना आसान नहीं। तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे जाने लगा है। ऊपर से हिमपात के होने का डर और जब हिमपात होगा तो उसके कारण चारों ओर बर्फ की ऊंची-ऊंची दीवार बन जाएगी। लेकिन इन सबके बावजूद दुश्मन से निपटने के लिए खड़े भारतीय जवानों की हिम्मत देख वे पहाड़ भी अपना सिर झुका लेते हैं, जिनके सीनों पर वे खड़े होते हैं।
पहले कश्मीर सीमा की एलओसी, सियाचिन हिमखंड तथा कारगिल के इलाकों पर ऐसे दृश्य आम थे। यह सच है कि सिर्फ कश्मीर सीमा पर ही नहीं बल्कि कारगिल तथा सियाचिन हिमखंड में भी ये भारतीय सैनिक अपनी वीरता की दास्तानें लिख रहे हैं। और अब ऐसी वीरता की दास्तानों का नया मोर्चा लद्दाख फ्रंटियर का खुल गया है, जहां करीब एक लाख जवानों की तैनाती की पहली सर्दी होगी। ऐसा भी नहीं है कि वीरता की दास्तानें सिर्फ शत्रु पक्ष को मारकर ही लिखी जाती हैं बल्कि इन क्षेत्रों में प्रकृति पर काबू पाकर भी ऐसी दास्तानें इन जवानों को लिखनी पड़ेंगी जिसकी तैयारी अब अंतिम चरण में है।
अभी तक कश्मीर सीमा की कई ऐसी सीमा चौकियां थीं जहां सर्दियों में भारतीय जवानों को उस समय राहत मिल जाती थी जब वे नीचे उतर आते थे। कारगिल युद्ध से पूर्व तक ऐसा ही होता था क्योंकि पाकिस्तानी पक्ष के साथ हुए मौखिक समझौते के अनुरूप कोई भी पक्ष उन सीमा चौकियों पर कब्जा करने का प्रयास नहीं करता था जो सर्दियों में भयानक मौसम के कारण खाली छोड़ दी जाती रही हैं।
 
लेकिन, करगिल युद्ध के उपरांत ऐसा कुछ नहीं हुआ। नतीजतन भयानक सर्दी के बावजूद भारतीय जवानों को अब करगिल के साथ साथ लद्दाख पर एलएसी पर भी उन सीमा चौकियों  पर भी कब्जा बरकरार रखना पड़ रहा है, जो करगिल युद्ध से पहले तक सर्दियों में खाली कर दी जाती रही हैं तो अब उन्हें कारगिल के बंजर पहाड़ों पर भी पूरे साल चौकसी व सतर्कता बरतने की खातिर चट्टान बनकर तैनात रहना पड़ रहा है। ऐसा ही अनुभव पाने के लिए वे लद्दाख सीमा पर भी रिहर्सल में जुट गए हैं क्योंकि चीन की सेना लद्दाख में एलएसी को पार कर कई किमी भीतर आकर बैठ चुकी है।
 
ऐसे में दाद देनी पड़ती है भारतीय जवानों की जो लद्दाख, सियाचिन हिमखंड, कारगिल तथा कश्मीर के उन पहाड़ों पर अपनी डयूटी बखूबी निभा रहे हैं, जहां कभी एक सौ तो कभी डेढ़ सौ किमी प्रति घंटा की रफ्तार से बर्फीली हवाएं चलती हैं। ऐसे में भी वे सीना तान पाक व चीनी सेना जवानों के साथ साथ प्रकृति की दुश्मनी का भी सामना कर रहे हैं।
 
चौंकाने वाली बात यह है कि भयानक सर्दी तथा खराब मौसम के बावजूद करगिल में टिके हुए जवानों के लिए यह अफसोस की बात हो सकती है कि सर्दी में इन स्थानों पर तैनाती का उनका 21वां वर्ष है और अभी तक वे सहूलियतें भारतीय सेना उन्हें पूरी तरह से मुहैया नहीं करवा पाई है जिनकी आवश्यकता इन क्षेत्रों में है। हालांकि सियाचिन हिमखंड में यह जरूरतें अवश्य पूरी की जा चुकी हैं। अब यही चिंता लद्दाख में खुले नए मोर्चे को लेकर भी है। 
 
इस सच्चाई से कोई अनभिज्ञ नहीं है कि लद्दाख, कश्मीर, कारगिल तथा सियाचिन हिमखंड जैसे सीमांत क्षेत्रों में पाक व चीनी सेना भारतीय पक्ष की दुश्मन तो है ही प्रकृति सबसे बड़ी शत्रु के रूप में सामने आ रही है। मगर इन सब बाधाओं को पार करने वालों का नाम ही भारतीय जवान है। 
 
हालांकि आधिकारिक आंकड़े इसे स्पष्ट करते हैं कि कारगिल, कश्मीर सीमा तथा सियाचिन हिमखंड पर होने वाली सैनिकों की मौतों में से 97 प्रतिशत के लिए वह प्रकृति जिम्मेदार होती है जिसका मुकाबला करने की खातिर भारतीय जवान सीना तान खड़े हैं। उम्मीद यही की जा रही है कि लद्दाख के मोर्चे पर जवानों को ऐसी परिस्थितियों से दो-चार नहीं होना पड़ेगा।

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